मुंबई की ग्लैमर इंडस्ट्री का बदबूदार सच, Toilet के लिए भी संघर्ष करती हैं एक्ट्रेसेज़
बड़े एक्टर्स, जो सक्षम हैं, अपनी वैनिटी वैन ख़रीद लेते हैं। मगर, शूटिंग स्टाफ़, यहां तक कि छोटे कलाकार भी इस परेशानी से जूझते रहते हैं।
अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। अक्षय कुमार की फ़िल्म 'टॉयलेट: एक प्रेम कथा' आज रिलीज़ हो चुकी है। फ़िल्म की कहानी एक ऐसे प्रेमी की है, जो अपने प्यार के लिए ताजमहल नहीं घर में संडास बनवाता है। इस फ़िल्म में भले ही एक ग्रामीण महिला और गांव की कहानी दर्शायी जा रही हो, लेकिन हक़ीक़त में देखें, तो टॉयलेट और स्वच्छता से जुड़ी ये समस्या सिर्फ़ गांव की महिलाओं के साथ नहीं है। आपको ये जानकर हैरानी हो सकती है कि ग्लैमर इंडस्ट्री तक टॉयलेट को लेकर दिक्कतों से जूझ रही है।
दर्शकों के मनोरंजन के लिए फिल्में और सीरियल का निर्माण करने वाली इंडस्ट्री में महिलाएं हर दिन इस परेशानी से जूझती हैं। बड़े एक्टर्स, जो सक्षम हैं, अपनी वैनिटी वैन ख़रीद लेते हैं। मगर, शूटिंग स्टाफ़, यहां तक कि छोटे कलाकार भी इस परेशानी से जूझते रहते हैं।
टीवी के सेट पर है दोहरा व्यवहार- ईगो हर्ट हो जाता है प्रोड्यूसर का
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मुंबई के स्टूडियोज़ में हर दिन अलग-अलग लोकेशन पर कई टेलीविज़न शोज़ का निर्माण होता है। टीवी के सीरियल निर्माण सेट का हाल तो फ़िल्मों के सेट से कई अधिक दयनीय है। चूंकि टीवी में लीड कलाकारों को तो वैनिटी या सेपरेट रूम्स दिये जाते हैं, जहां उन्हें सेपरेट टॉयलेट दिये जाते हैं। उनकी साफ-सफाई का भी पूरा ख्याल रखा जाता है. लेकिन सेकेंड लीड स्टार्स या तकनीशियन्स पर कोई ध्यान नहीं देता। इसके बावजूद प्रोड्यूर्स को कोई शिकायत नहीं होती। चूंकि कोई भी नेगेटिव बातें कहकर नौकरी नहीं गंवाना चाहता।
सहयोगी किरदार निभाने वाली एक सीनियर और लोकप्रिय अभिनेत्री ने यह बात स्वीकारी है कि एक बार उन्होंने अपने प्रोड्यूसर से इस बात की शिकायत की थी कि 12 घंटे की शिफ्ट में उन्हें कई अन्य महिलाओं के साथ वॉशरूम शेयर करना पडता है। अभिनेत्री बताती हैं कि प्रोड्यूसर का सिर्फ इस बात से ईगो हर्ट हो गया था और उन्होंने इस मुद्दे को बिल्कुल ईगो पर ले लिया। फिर प्रोड्यूसर ने साफ़-साफ़ कहा कि इसमें एडजस्ट कीजिए, वरना कुछ और देख लीजिए। सीनियर अभिनेत्री खुद हैरान थीं कि इतनी छोटी और आवश्यक मांग पर उन्हें किस तरह खरी-खोटी सुननी पडी।
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टीवी की लोकप्रिय अभिनेत्री वाहबिज़ दोराबजी ने आॅन रिकॉर्ड टीवी इंडस्ट्री की इस सच्चाई को ज़ाहिर किया।वाहबिज़ बताती हैं कि यह बिल्कुल सच है कि प्रोड्यूर्स के ज़हन में सिर्फ़ उनके लीड कलाकार होते हैं, जबकि वह भूल जाते हैं कि हर दिन हम भी 12 घंटे की शिफ्ट करते हैं, उन्हें वैनिटी मिल जाती है या सेपरेट कमरा। बाकी कास्ट को वॉशरूम शेयर करना पडता है। एक ही वाशरूम में कई बार कई महिला आर्टिस्ट तकनीशियन्स इस्तेमाल करते हैं। यही नहीं, इसके बावजूद दिन में बार-बार इसकी सफाई नहीं होती है। हाईजीन का ख्याल नहीं रखा जाता।
एक लोकप्रिय महिला टीवी आर्टिस्ट का कहना है कि मेल आर्टिस्ट फिर भी कुछ इंतज़ाम कर लेते हैं। महिला आर्टिस्ट के साथ काफी परेशानी है। चूंकि टीवी सीरियल में हेवी कॉस्टयूम के साथ ब्रेक में अगर शौच जाना हो तो उनकी हालत ख़राब हो जाती है। एक तो भव्य सेट दिखने वाले टीवी सीरियल्स के सेट पर टॉयलेट किसी भयानक से और अंधेरे वाली जगह पर ही टूटी-फूटी हालत में होती है। साथ ही बदबू और गंदगी इतनी कि कोशिश होती है कि कम पानी पीकर काम चला लिया जाये। उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह एक बार वह हेवी कॉस्टयूम में वॉशरूम में गयी थीं, तो फ्लश ख़राब होने की वजह से पानी लीकेज हो रहा था और वह पूरी तरह गंदे पानी से भीग गयी थीं। उन्होंने बाहर आकर जब व्यथा सुनायी, तब भी प्रोडक्शन टीम ने बात को अनसुना कर दिया था।
मुंबई के फिल्म स्टूडियोज़ का है बुरा हाल
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यह बात हैरान कर सकती है, लेकिन हकीकत यही है कि जिन स्टूडियोज़ में संजय लीला भंसाली जैसे निर्देशकों के भव्य सेट सजते हैं। उसी मुंबई के स्टूडियोज़ के टॉयलेट रूम की हालत बदतर है। गोरेगांव स्थित फिल्मिस्तान स्टूडियो में आप जायें तो एक तो आपको फौरन शौचालय मिलेंगे नहीं और जो भी हैं, वह गंदे और बदबू से भरे होते हैं। सेनेटाइज़र तो दूर की बात है। वहां पानी की भी व्यवस्था नहीं हैं। मुंबई के सबसे बडे स्टूडयो फिल्म सिटी की भी हालत यही है। वहां हालांकि परमानेंट सेट्स पर शौचालय तो हैं, लेकिन वह साफ-सुथरे नहीं हैं। एक महिला सुरक्षाकर्मी ने नाम ना बताने की शर्त पर अपनी व्यथा सुनाई है कि फिल्म सिटी में इतनी दूरी पर अंदर की तरफ जाकर शौचालय हैं कि कई बार वह झाडियों के पीछे जाती हैं।
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नायगांव में स्थित स्टूडियोज की तो हालत और बुरी है। वहां रोजाना टीवी सेट्स पर जाने वाले तकनीशियंस बताते हैं कि गंदगी की वजह से मच्छरों का उत्पात मचा रहता है। आउटडोर लोकेशन और टॉयलेट की समस्या हाल ही में एसोसिएशन आॅफ सिने और टेलीविज़न आर्ट डायरेक्टर्स और कॉस्टयूम डिज़ायनर्स ने इसी समस्या को लेकर इस महिला दिवस पर एक ओपन इंटरेक्शन का आयोजन किया था। कमेटी के प्रेसिडेंट सुकांत पाणिग्रही ने स्वीकारा कि उनकी पत्नी आर्ट डायरेक्टर थीं और वह कई बार इस बारे में मुझसे आकर डिस्कस करती थी।सुकांत का मानना है कि यह सच है कि इस बात को लेकर सीरिसयनेस नहीं है।
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नेशनल अवॉर्ड कॉस्टयूम डिज़ाइनर लवलीन बेन्स स्वीकारती हैं कि सेफ वॉशरूम ह्यूमन राइट है, लेकिन इस राइट पर बात नहीं करते। उनका मानना है कि रिमोट लोकेशन में शूटिंग के दौरान अधिक परेशानी होती है। वहां महिला तकनीशियन्स के वॉशरूम के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं होती। उन्हें स्टार्स के ही वैनिटी वैन यूज़ करने को कहा जाता है, लेकिन कई बार स्टार्स भी तैयार नहीं होते तो उन्हें फिर जंगल में या गांव में किसी के घर में जाना होता है। कई बार माहवारी के दौरान और परेशानी होती है। चूंकि सेनिटरी नैपकीन का भी इंतज़ाम नहीं होता। तो कभी बार-बार नैपकीन बदलने के लिए सही स्थान नहीं मिलता।
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इसी इंटरेक्शन के दौरान कॉस्टयूम डिज़ाइनर पिया बेनगल ने यह बात सामने लायी कि कई बार पहाडों के पीछे, रात में भी जाना पडता है। इस दौरान अंधेरे में कई बार चोटें भी लगती हैं। कई जगहों पर पुरुष और महिलाओं को एक ही वॉशरूम का भी इस्तेमाल करना पडता है।