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ऐसे एक हुए दिलीप-सायरा

मुंबई। दिलीप कुमार की जिंदगी में 'नया दौर' का कोर्टरूम ड्रामा, शुरुआती फेज में समीक्षकों के निशाने पर होना और पांचवें दशक तक मधुबाला व उसके बाद वैजयंतीमाला के साथ उनका रोमांस उनकी जिंदगी के अहम व चर्चित अध्याय रहे। लेकिन सुपरस्टार बनने के बाद उनकी एक से दो बनन

By Edited By: Published: Mon, 23 Dec 2013 12:22 PM (IST)Updated: Mon, 23 Dec 2013 12:40 PM (IST)
ऐसे एक हुए दिलीप-सायरा

मुंबई। दिलीप कुमार की जिंदगी में 'नया दौर' का कोर्टरूम ड्रामा, शुरुआती फेज में समीक्षकों के निशाने पर होना और पांचवें दशक तक मधुबाला व उसके बाद वैजयंतीमाला के साथ उनका रोमांस उनकी जिंदगी के अहम व चर्चित अध्याय रहे। लेकिन सुपरस्टार बनने के बाद उनकी एक से दो बनने की प्रक्रिया में श्योर-शॉट बदलाव आने शुरू हुए। 1953 में एक प्रतिष्ठित मैगजीन को दिए इंटरव्यू में दिलीप कुमार ने कहा था, 'जीवनसंगिनी के तौर पर मुझे ऐसे जिंदादिल हमसफर की तलाश है, जो मुझे, मेरे परिवार, मेरे दोस्तों व इंसानियत के प्रति मेरी ड्यूटी के बीच न आए। मुझे अल्ट्रा-आधुनिक संगिनी नहीं चाहिए, जिसका यकीन स्वार्थी सोच व अप्रासंगिक और अप्रचलित पड़ चुकी मान्यताओं में हो।'

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तब तक दिलीप कुमार की जिंदगी में सायरा बानो का आगमन नहीं हुआ था। आगे चलकर दोनों की शादी हुई। सायरा बानो के लिए वह बचपन का सपना साकार होना सरीखा था। वे तरुणावस्था से ही दिलीप कुमार की फिल्में देखती थीं और उनकी दीवानी थीं। वे दिलीप कुमार की इतनी बड़ी फैन थीं कि मिसेज दिलीप कुमार होना चाहती थीं। सायरा मशहूर अभिनेत्री नसीम बानो की बेटी थीं, जो तीसरे और चौथे दशक की नामी हीरोइन थीं। उनका विवाह मोहम्मद एहसान से हुआ, पर दोनों के बीच खटपट चलती रहती थी। बहरहाल, दोनों ने ताज महल पिक्चर्स नाम से प्रोडक्शन कंपनी 1940 में खोली। उसके एक साल बाद मसूरी में सायरा बानो का जन्म हुआ। सात साल बाद हिंदुस्तान-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ और एहसान पाकिस्तान चले गए। नसीम बानो हिंदुस्तान में ही रह गई। हालांकि बाद में वे लंदन चली गई। वहीं सायरा और उनके भाई सुल्तान की शीक्षा-दीक्षा हुई। 1959 में सायरा लंदन से वापस आई। उन्होंने शम्मी कपूर के अपोजिट फिल्म 'जंगली' से अपने करियर का आगाज किया।

अपनी पहली ही फिल्म से सायरा बानो सुपरस्टार बन गई। उनकी बाद की फिल्मों ने भी कमाल किया। सायरा सुपरस्टार तो बन गई, पर दिलीप कुमार के अपोजिट उनके काम करने का सपना अधूरा रहा। उसकी वजह यह थी कि दिलीप कुमार उनके काम का हवाला देकर अपने अपोजिट कास्ट नहीं करवाना चाहते थे। लिहाजा सायरा को फिल्मकार दिलीप कुमार के बाद के सुपरस्टार जुबली कुमार राजेंद्र कुमार के साथ कास्ट करते रहे।

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इत्तफाकन दोनों की ऑनस्क्रीन जोड़ी लोगों को पसंद भी पड़ने लगी। दोनों की साथ में कई फिल्में हिट होती गई। गॉसिप लिखने वालों को मसाला भी मिलने लगा। लोगों ने राजेंद्र कुमार और सायरा बानो के बीच कथित रोमांस की खबरें उड़ा दीं। नसीम बानो को जब यह बात पता चली, तो वे चिंतित हो गई। वजह यह थी कि एक तो राजेंद्र कुमार हिंदू थे, दूसरी बात यह कि वे शादीशुदा और तीन बच्चों के बाप भी थे। उन्होंने दिलीप कुमार के मेंटोर शशिधर मुखर्जी से मध्यस्थता कर दिलीप कुमार से इस मामले में मदद करने की गुहार की। शशिधर की बात शुरुआती दौर में खारिज करने के बाद दिलीप कुमार ने मदद को हामी भरी। मामला सायरा बानो के जन्मदिन तक पहुंचा। 23 अगस्त 1966 को सायरा जी का जन्मदिन था। दिलीप कुमार आमंत्रित थे, पर उन्होंने पहले ही समारोह में शरीक न होने का खेद पत्र भिजवा दिया। सायरा खासी अपसेट थीं। मामला तब और तूल पकड़ता दिखने लगा, जब समारोह में राजेंद्र कुमार अपनी पत्नी के साथ पहुंच गए। मामले की गंभीरता भांप नसीम बानो दिलीप कुमार के घर गई और सिचुएशन संभालने की मिन्नतें करने लगीं। दिलीप साहब ना नहीं कह सके और सायरा के जन्मदिन पर आए।

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इस समारोह के छह हफ्ते बाद सबको हैरान करने वाली खबर आई कि दोनों 2 अक्टूबर 1966 को मंगनी करने जा रहे हैं। सब हैरान थे कि आखिर सायरा बानो के जन्मदिन के महज दो महीनों में ऐसा क्या हुआ कि दिलीप कुमार मंगनी और फिर निकाह को राजी हो गए? बाद में पता चला कि जन्मदिन की रात दिलीप कुमार से सायरा बानो को समझाने को कहा गया कि वे राजेंद्र कुमार के साथ कथित लव स्टोरी पर अपना स्टैंड क्लियर करें। उनसे संलिप्तता की बेवकूफी भरी हरकत न करें। दिलीप कुमार उन्हें समझाते रहे। सायरा मान गई, पर हैरत भरी शर्त के साथ। यही कि अगर दिलीप कुमार उनसे शादी को राजी हो जाएं, तो वे राजेंद्र कुमार का पीछा छोड़ देंगी। आखिरकार दिलीप कुमार को सायरा बानो की जिद के आगे झुकना पड़ा। इस तरह उसी साल यानी 1966 की चार नवंबर को दोनों विवाह बंधन में बंध गए। क्रमश :

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