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    मुझे 'माय च्‍वाइस' जैसी वीडियो बनाने की जरूरत नहीं: सोनम

    बॉलीवुड एक्‍ट्रेस दीपिका पादुकोण के वीडियो 'माय च्‍वाइस' पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। कंगना रनौत और सोनाक्षी सिन्‍हा के बाद सोनम कपूर ने भी दीपिका की मंशा पर सवाल उठाए हैं। लेखिका क्षमा शर्मा का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं है कि औरतों को

    By Tilak RajEdited By: Updated: Sat, 04 Apr 2015 09:47 AM (IST)

    मुंबई। बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण के वीडियो 'माय च्वाइस' पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। कंगना रनौत और सोनाक्षी सिन्हा के बाद सोनम कपूर ने भी दीपिका की मंशा पर सवाल उठाए हैं। लेखिका क्षमा शर्मा का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं है कि औरतों को हमेशा से यौन शुचिता के कोड़े से पीटा जाता रहा है।

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    दीपिका की 'चॉइस' को अब कंगना ने लिया आड़े हाथ!

    दीपिका के 'माय च्वाइस' वीडियो का विरोध बाहर नहीं बॉलीवुड में ज्यादा हो रहा है। खासतौर पर बॉलीवुड अभिनेत्रियां दीपिका की 'मर्जी' पर सवाल उठा रही हैं। सोनम कपूर ने कहा, 'नारीवाद को लेकर हमेशा से ही उच्च वर्ग की महिलाओं की सोच गलत रही है। उन्हें लगता है कि पुरुषों को बुरा-भला कहने से, उनसे नफरत करने से ही वे सही मायने में नारीवादी बनती हैं।'

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    एक न्यूज पेपर को दिए इंटरव्यू में सोनम ने कहा, 'लेकिन मुझे अपने विचार रखने के लिए कोई वीडियो बनाने की जरूरत नहीं है। मेरे एक्शंस ही मेरी सोच बयां करते रहे हैं। मुझे औरत होने पर गर्व है और मैं अपनी आजादी की इज्जत करती हूं। मैं किसी मुद्दे पर अपनी राय देने से नहीं डरती। यही तो नारीवाद है।'

    इससे पहले कंगना रनौत और सोनाक्षी सिन्हा ने भी सवाल उठाए थे। सोनाक्षी ने कहा था, 'महिला सशक्तिकरण का यह मतलब नहीं होता कि आप किस तरह के कपड़े पहनते है या फिर किसके साथ शारीरीक संबंध बनाना चाहते हैं। मेरे ख्याल से महिला सशक्तिकरण का मतलब महिलाओं को रोजगार देना और ताकत देना होता है।'

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    दीपिका पादुकोण के वीडिया 'माय च्वाइस' पर स्वतंत्र लेखिका क्षमा शर्मा का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं है कि औरतों को हमेशा से यौन शुचिता के कोड़े से पीटा जाता रहा है। दुनिया के हर धर्म और पुरुषवादी सत्ताओं ने स्त्रियों के मुकाबले पुरुषों को इतने अधिकार दिए कि उन्हें निरंकुश बना दिया। इसीलिए स्त्रियों की तरफ से अकसर ये सवाल पूछे जाते रहे हैं कि अगर इस तरह के संबंध बनाकर आदमी की कोई इज्जत नहीं जाती, समाज में कोई उसे अस्वीकार नहीं करता तो औरतों पर ही यह शर्त क्यों लागू है।

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    हालांकि क्षमा शर्मा कहती हैं कि क्या औरतों के विकास के लिए उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, बुद्धिमत्ता, कौशल, बड़े मसले नहीं हैं। यही नहीं यदि डाक्टरों की मानें तो एक से अधिक लोगों से संबंध का मतलब है एड्स और सर्वाइकल कैंसर तथा अन्य गंभीर यौन रोग। लेकिन बाजार में सबसे बिकने वाली चीजें सेक्स और हिंसा ही हैं, पर मात्र देह के प्रदर्शन और विमर्श को ही स्त्री सशक्तीकरण नहीं कहा जा सकता।