उत्तराखंड विधानसभा चुनावः 65 साल से सरकार बनाने वाली गंगोत्री
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में यह देखना है कि 65 साल पहले गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री से जिस मिथक की नींव पड़ी, वह बरकरार रहती है या नहीं।
उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: इसे संयोग कहें या कुछ और, मगर यह सच है कि 65 साल पहले गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री से जिस मिथक की नींव पड़ी, वह नहीं टूटा है। चूंकि, वर्तमान में फिजां में सियासी गर्माहट है तो बात भी इसी से जुड़े मिथक की हो रही है। यह जुड़ा है उत्तरकाशी जनपद की गंगोत्री विधानसभा सीट से।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में यह देखना है कि यह मिथक टूटता है या नहीं। अविभाजित उत्तर प्रदेश से अब तक के परिदृश्य को देखें तो यहां से चुनाव जीतकर विधानसभा में प्रवेश करने वाले विधायक के दल ही सूबे में सरकार बनती आई है। यह खूबी इस सीट को वैशिष्टय प्रदान करती है। यही वजह भी है कि चुपके-चुपके ही सही, मगर सियासी दल इस मिथक को नजरअंदाज नहीं कर पाते।
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आजादी मिलने के बाद देश में पहला आम चुनाव 1952 में हुआ। तब यह सीट गंगोत्री नहीं, उत्तरकाशी हुआ करती थी और पहले चुनाव में जयेंद्र सिंह बिष्ट निर्दलीय चुनाव जीते और फिर कांग्रेस में शामिल हो गए।
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तब उप्र में पं. गोविंद बल्लभ पंत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी। 1957 के चुनाव में जयेंद्र निर्विरोध निर्वाचित हुए और कांग्रेस ही सत्तासीन हुई। 1958 में विधायक जयेंद्र की मृत्यु के बाद कांग्रेस के ही रामचंद्र उनियाल विधायक बने।
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इस बीच टिहरी रियासत का हिस्सा रहे उत्तरकाशी को वर्ष 1960 में अलग जनपद बनाया, लेकिन यह सियासी मिथक बरकरार रहा। 1977 में जनता पार्टी के प्रत्याशी बरफियालाल जुवांठा यहां चुनाव जीते तो सरकार जनता पार्टी की बनी।
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1991 में भाजपा के ज्ञानचंद जीते और राज्य में भाजपा ने सरकार बनाई। 1996 में फिर ज्ञानचंद जीते तो सरकार भाजपा की आई।
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नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद भी यह मिथक बना रहा। ये बात अलग है कि सीट का नाम बदलकर उत्तरकाशी की जगह गंगोत्री कर दिया गया।
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उत्तराखंड में 2002 में हुए पहले विस चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के विजयपाल सजवाण जीते तो सरकार कांग्रेस की आई। 2007 में भाजपा के गोपाल सिंह रावत जीते तो सरकार बनी भाजपा की। 2012 में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण ने भाजपा से यह सीट छीनी तो तब भी मिथक बरकरार रहा और कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई।
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सूबे में अब फिर से विस चुनाव हो रहे हैं। भले ही बदलते वक्त के साथ सियासी समर में उतरे राजनीतिक दल व प्रत्याशी सूचना तकनीकी के साथ ही धनबल से लैस हैं। लेकिन, इस सीट के मिथक को कोई नजरंदाज करने का जोखिम कोई लेना चाहता। बात चाहे जो भी हो, मगर यह भी सच है कि मिथक के चलते गंगोत्री सीमांत सीट होते हुए भी सरकार बनने तक हमेशा ही चर्चा के केंद्र में बनी रहती है।
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