यूपी विधानसभा चुनावः यूपी में बनेगी जनता की सरकार, नारे करेंगे बेड़ा पार!
भले ही सभी दलों के पास स्टार प्रचारकों की लंबी फौज नहीं है, लेकिन वह नारे गढऩे में कतई पीछे नहीं है। यह नारे किसका बेड़ा पार करेंगे, यह परिणाम तय करेंगे।
इलाहाबाद [धर्मेश अवस्थी़]। चुनाव में बड़े नेताओं के वार-पलटवार का कार्यकर्ताओं पर असर नहीं है। वह तो नारों की बदौलत पूरे जोश में अपने प्रत्याशी का 'टेम्पो हाई करने में जुटे हैं। भले ही सभी दलों के पास स्टार प्रचारकों की लंबी फौज नहीं है, लेकिन वह नारे गढऩे में कतई पीछे नहीं है। यह नारे किसका बेड़ा पार करेंगे, यह परिणाम तय करेंगे।
राजनीतिक दलों की विचारधारा और संस्कृति को नारे बयां करते हैं। 'जो जीता वही सिकंदर की तर्ज पर चुनाव विश्लेषक किसी भी प्रत्याशी की जीत-हार में नारों को भी अहम मानते हैं। भला कौन भूल सकता है 1977 का इंदिरा हटाओ, देश बचाओ का संपूर्ण क्रांति का नारा। 2008 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में 'यस वी कैन नारे ने ओबामा को हीरो बना दिया। ऐसे ही 2014 में 'अबकी बार, मोदी सरकार के नारे ने लंबे समय बाद देश को पूर्ण बहुमत की सरकार दी। यूपी के चुनाव में भी नारों ने राजनीतिक दलों की सरकारें बनाई और दूसरों के समीकरण बिगाड़े हैं। इस बार भी नारों की धूम मची है। दलों के पास एक-दूसरे को जनता के बीच घेरने के लिए वादे भले ही कम हों, लेकिन नारों का पिटारा फुल है। विधानसभा चुनाव के मतदान की प्रक्रिया अपनी गति से चल रही है उसी तरह से नारों के शब्द भी बदल रहे हैं। अब पूरब के जिलों में ही मतदान शेष है। इसलिए वहां मानों नारों की बौछार चल पड़ी है।
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भाजपा : बाबा विश्वनाथ हों या फिर बाबा गोरखनाथ की धरती वहां अन्य नाम के साथ ही राम लोगों की जुबां पर है। उसका असर 'राम-राम हरे-हरे, कमल खिले घरे-घरे नारे पर है। ऐसे ही गोरखपुर के आसपास 'बिना योगी, जीत नहीं होगी का नारा खूब गुनगुनाया जा रहा है। इसी तरह 'देशद्रोहियों पर कार्रवाई, अबकी बार दो-तिहाई, 'कालेधन पर प्रहार, अबकी बार भाजपा सरकार नारे से संदेश दिया जा रहा है। आक्रामक नारों में 'गुंडागर्दी के ठेकेदार, नहीं चाहिए सपा सरकार, घोटालों की भरमार, नहीं चाहिए बीएसपी सरकार। कार्यकर्ता घर-घर में यही समझा रहे हैं कि 'दो बातें कभी न भूल, नरेंद्र मोदी कमल का फूल।
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सपा : समाजवादी पार्टी के होर्डिंग्स में एवं मंच से भले ही 'नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव की चर्चा होती है, लेकिन नारों में अखिलेश सब पर भारी हैं। 'ये जवानी है कुर्बान, अखिलेश भइया तेरे नाम और 'सपा को ये साथ पसंद है का नारा सपाइयों की जुबान पर है। कार्यकर्ता यह अपील करते हैं कि 'बोलो दिल से, अखिलेश फिर से और 'यूपी की मजबूरी है, अखिलेश यादव जरूरी है, 'विकास का पहिया अखिलेश भैया के नारों में सपाइयों ने भाभी यानी अखिलेश की पत्नी को भी शामिल किया है 'जीत की चाबी, डिंपल भाभी।
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बसपा : बहुजन समाज पार्टी में नारों के केंद्र में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ही हैं। वह 'बेटियों को मुस्कुराने दो, बहनजी को आने दो और 'गांव-गांव को शहर बनाने दो, बहन जी को आने दो नारों के जरिए लोगों को लुभा रही हैं। वहीं, 'डर से नहीं हक से वोट दो, बेईमानों को चोट दो और कमल, साइकिल, पंजा होगा किनारे, यूपी चलेगा हाथी के सहारे जैसे मतदाताओं को संदेश दे रही हैं।
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कांग्रेस : कांग्रेस पार्टी के मुख्य निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा है नारों में भी इन्हीं दोनों पर निशाना साधा गया है। 'कर्जा माफ, बिजली हाफ, बेइमानों का करो हिसाब से लोगों को लुभाया जा रहा है। नोटबंदी का जिक्र करके 'गरीबों से खींचों, अमीरों को सीचों का नारा दिया गया है। साथ ही गरीबों का दर्द 'सूटबूट की सरकार, रुलाए गरीबों को बार-बार नारे के जरिए बांटने की कोशिश हो रही है।
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अन्य दल : सूबे के सत्ता संग्राम में प्रमुख दलों के अलावा अन्य दल भी जीत के लिए सारे जतन कर रहे हैं। उनके निशाने पर चिर-प्रतिद्वंद्वी तो है ही साथ ही मुख्यमंत्री अखिलेश और पूर्व मुख्यमंत्री माया मुख्य निशाने पर हैं। इसीलिए 'लैपटॉप बांटे, मूर्तियां बनवाई, अखिलेश व माया को गरीबी कहां सताई जैसे नारे जनता के बीच उछाले जा रहे हैं।
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