Bihar News: 4638 सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति पर हाईकोर्ट ने दिया ये आदेश, जानें अदालत ने क्या-क्या कहा?
पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह कहा कि राज्य में विभिन्न अंगीभूत कॉलेजों के लिए बहाल होने वाले 4638 सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति प्रक्रिया में प्रत्येक विश्वविद्यालय का उसके विषयवार रिक्तियों के अनुसार आरक्षण रोस्टर अलग-अलग तय होना चाहिए। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और न्यायाधीश हरीश कुमार की खंडपीठ ने राज्य सरकार की तरफ से दायर की गई अपील याचिकाओं पर सुनाया।
राज्य ब्यूरो, पटना। Patna High Court On Assistant Professors: पटना हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले से यह तय किया है कि राज्य में विभिन्न अंगीभूत कॉलेजों के लिए बहाल होने वाले 4638 सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति प्रक्रिया में प्रत्येक विश्वविद्यालय का उसके विषयवार रिक्तियों के अनुसार आरक्षण रोस्टर अलग-अलग तय किया जाना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन एवं न्यायाधीश हरीश कुमार की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा दायर अपील याचिकाओं पर आंशिक मजूरी देते हुए यह फैसला सुनाया।
कोर्ट ने ये अपने आदेश में ये कहा
खंडपीठ ने एकलपीठ के फैसले के उस हिस्से को निरस्त कर दिया, जिसमें राज्य के तमाम विश्वविद्यालय की रिक्तियों को एक साथ जोड़कर उस पर आरक्षण रोस्टर निर्धारण करने का निर्देश था।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हमें नहीं लगता कि विज्ञापन में अलग से कोई बैकलॉग रिक्तियां निर्दिष्ट की गई हैं। राज्य के जवाबी हलफनामे के अनुसार भी त्रुटिपूर्ण गणना की गई थी।
बैकलॉग को मौजूदा रिक्तियों से निर्धारित करने का दिया आदेश
यदि बैकलॉग को मौजूदा रिक्तियों से निर्धारित किया जाना है, तो कम से कम पिछले तीन भर्ती वर्षों के लिए आरक्षण के आवेदन पर गौर करना होगा, ताकि पता लगाया जा सके कि कार्यरत संख्या में शामिल आरक्षित श्रेणी के शिक्षकों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर हुई थी या आरक्षित उम्मीदवार के रूप में।
अदालत ने जताई नाराजगी
अदालत ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि विज्ञापन को चुनौती दिए जाने के कारण 4,000 से अधिक रिक्तियों को भरने का काम लगभग चार वर्षों से रुका हुआ है। अदालत ने अपने आदेश मे कहा कि चुनौती विभिन्न आवेदकों द्वारा दी गई है, जो केवल एक विशिष्ट विषय, पद के लिए विचार किए जाने के हकदार हैं।
आरक्षण रोस्टर विश्वविद्यालय-वॉर और विषय-वॉर तैयार किया जाता है और उस परिस्थिति में किसी व्यक्ति द्वारा किसी विषय के लिए अपनी उम्मीदवारी पेश करने पर उस विशेष विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालयों में केवल उस विषय के संबंध में विज्ञापन को चुनौती दी जानी चाहिए। इस मामले में महाअधिवक्ता पीके शाही ने सरकार का पक्ष रखा था।
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