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Bihar News: कब बदलेगी बिहार की किस्मत? सात चुनावों से वादों में जिंदा, फाइलों में दफन ये जलाशय परियोजना

Patna News बिहार में चुनाव आते हैं जाते हैं लेकिन कई परियोजनाओं का कुछ हल नहीं हो पा रहा है। गत सात चुनावों से वादों में जिंदा यह परियोजना फाइलों में दफन हो गई है। जबकि इसके नाम पर पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम से लेकर अबतक न जाने कितने प्रत्याशी किसानों का समर्थन प्राप्त कर संसद में पहुंच चुके हैं।

By Jai Shankar Bihari Edited By: Sanjeev Kumar Published: Thu, 07 Mar 2024 11:09 AM (IST)Updated: Thu, 07 Mar 2024 11:10 AM (IST)
फाइलों में दफन ये जलाशय परियोजना (जागरण)

जागरण संवाददाता, पटना। Patna News: लोकसभा चुनाव की अधिसूचना शीघ्र जारी होने वाली है। ऐसे में प्रदेश के नौ जिले बक्सर, रोहतास, कैमूर, भोजपुर, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, गया एवं पटना की 50 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचित करने की महात्वाकांक्षी कदवन जलाशय परियोजना (अब इंद्रपुरी जलाशय परियोजना) की याद स्वाभाविक है।

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गत सात चुनावों से वादों में जिंदा यह परियोजना फाइलों में दफन हो गई है। जबकि इसके नाम पर पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम से लेकर अबतक न जाने कितने प्रत्याशी किसानों का समर्थन प्राप्त कर संसद में पहुंच चुके हैं।

शाहाबाद को धान का कटोरा कहा जाता है, लेकिन हर वर्ष किसान धान की रोपनी का लक्ष्य हासिल करने में पिछड़ जाते हैं। इसका प्रमुख कारण समय पर खेतों को पानी नहीं मिलना है। 2019 के आम चुनाव के बाद सरकार ने इस पर पहल भी शुरू की, लेकिन कोई नतीजा धरातल पर नहीं दिखा।

प्रस्तुत है आरा से कंचन किशोर की रिपोर्ट :-

क्यों पड़ी परियोजना की आवश्यकता

वाण सागर परियोजना के निर्माण काल में राज्य सरकार के साथ करार हुआ था कि ब्रिटिश शासनकाल में बने इंद्रपुरी जलाशय परियोजना को प्राथमिकता एवं सीडब्लयूसी के नियमानुसार जल उपलब्ध कराया जाएगा। बिहार के लिए रिजर्व 10 लाख घन फिट पानी वाण सागर से उपलब्ध नहीं कराया जाता है। एमपी-यूपी के लिए सरप्लस होने के बाद ही इधर पानी छोड़ते हैं। इस कारण नई परियोजना की आवश्यकता पड़ी।

130 वर्ष पुरानी है सोन नहर प्रणाली

ब्रिटिश सरकार द्वारा 130 वर्ष पहले निर्मित सोन नहर प्रणाली रोहतास, कैमूर, भोजपुर, बक्सर, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, गया और पटना जिले के किसानों के लिए जीवन रेखा है। इसी नहर प्रणाली से इन जिलों के अधिकांश भूमि में सिंचाई होती है। सोन नहर में पानी देने के लिए पहले डेहरी आन-सोन में सोन के दोनों पाटों को ऊंचा कर इसके पूरब और पश्चिम सिरों से मुख्य नहरें निकाली गईं थीं। इसमें बालू भरता गया, सोन में जल प्रवाह कम हुआ तो 1968 में इंद्रपुरी में बराज बना, इससे सोन नहर को जोड़ा गया।

इंद्रपुरी बराज की जल संग्रह क्षमता बहुत कम 

इंद्रपुरी बराज की जल संग्रह क्षमता बहुत ही कम है। जल संग्रह के लिए डैम की आवश्यकता है। अभी इंद्रपुरी जलाशय को मध्य प्रदेश के वाणसागर डैम से पानी मिलता है। यहां से अप स्ट्रीम में उत्तर प्रदेश में पानी के इस्तेमाल के बाद जो बचता है, वह इंद्रपुरी जलाशय के हिस्से में आता है। इसी समस्या से निपटने से लिए इंद्रपुरी से 70 किलोमीटर अपस्ट्रीम में पलामू के कदवन में उत्तर कोयल नदी का पानी भंडारण के लिए जलाशय निर्माण की योजना बनाई गई। 1990 में राजीव गांधी की सरकार ने योजना को मंजूरी दी और इंद्रपुरी में डिवीजन भी खोला गया, लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं हुआ।

बिहार के विभाजन के बाद शुरू हुआ गतिरोध

बिहार के विभाजन के बाद कदवन झारखंड के पलामू जिले का हिस्सा बन गया। इससे योजना में गतिरोध उत्पन्न हो गया। झारखंड की आपत्ति थी कि कदवन में डैम बनने से 200 से ज्यादा गांव डूब क्षेत्र के दायरे में आ जाएंगे। वहां के स्थानीय लोग डैम बनाने का विरोध करने लगे। ऐसे में अब इस योजना का केंद्र स्थल रोहतास जिले का नौहट्टा में दक्षिणी सीमांत गांव मठियांव किया गया। इसके बाद परियोजना को इंद्रपुरी जलाशय कहा जाने लगा।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ली थी रुचि 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 24 फरवरी, 2017 को मठियांव गांव स्थित निर्माण स्थल का निरीक्षण किया था। सोन नहर प्रणाली को भविष्य की पीढ़ी के लिए जीवंत रखने को इंद्रपुरी जलाशय निर्माण को डीपीआर तैयार करने का निर्देश दिया। प्रस्तावित डैम में 68.916 वर्ग किलोमीटर में पानी का जमाव होना है। इससे बिहार, उत्तरप्रदेश और झारखंड के 90 गांव डूब क्षेत्र में आएंगे। तब लगभग 12 हजार करोड़ रुपये का अनुमानित बजट केंद्रीय जल आयोग को समर्पित किया गया था। 2019 की चुनावी सभाओं में इस जलाशय का उल्लेख सभी राजनीतिक दलों ने किया था। चुनाव के बाद बक्सर सांसद अश्विनी चौबे ने इसे लोकसभा में भी उठाया था।

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