Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ब्रिटेन में हो सकता है दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हादसा, भूल जाएंगे चेरनोबिल और हिरोशिमा

    By Amit SinghEdited By:
    Updated: Tue, 16 Jul 2019 09:02 AM (IST)

    UK के न्यूक्लियर संयंत्र में खतरा इस कदर बढ़ चुका है कि उस एरिया को यूरोप की सबसे खतरनाक जगह घोषित कर दिया गया है। अगर यहां हादसा हुआ तो वो इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना होगी।

    Hero Image
    ब्रिटेन में हो सकता है दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हादसा, भूल जाएंगे चेरनोबिल और हिरोशिमा

    नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आधुनिक युग में बेहिसाब ऊर्जा और खतरनाक हथियारों से लैस होने के लिए दुनिया के हर देश में न्यूक्लियर पावर बनने की होड़ मची हुई है। तकरीबन हर देश चोरी-छिपे खुद को न्यूक्लियर पावर बनाने में जुटा हुआ है। इसी के साथ दुनिया के सामने परमाणु खतरे भी तेजी से बढ़ रहे हैं। खतरा केवल परमाणु हमला से ही नहीं है, बल्कि गुपचुप तरीके से तमाम देशों में चल रहे न्यूक्लियर प्लांट में हादसों से भी है। चूंकि कार्यक्रम बहुत गोपनीय होता है, इसलिए इस तरह के हादसों और उनकी गुंजाइशों को हमेशा छिपाया दिया जाता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ऐसे में यूके (यूनाइटेड किंगडम) के न्यूक्लियर प्लांट में इतिहास के सबसे बड़े परमाणु खतरे की खबर ने दुनिया भर को चौंका दिया है। बताया जा रहा है कि यूके के परमाणु संयंत्र में अगर हादसा हुआ तो वह चेरनोबिल परमाणु संयंत्र हादसे और हिरोशिमा परमाणु हमले से भी कहीं ज्यादा बड़ा और घातक होगा। जानकारों का मानना है कि यूके के न्यूक्लियर प्लांट में इतिहास का सबसे बड़ा हादसा कभी भी हो सकता है। इसे पश्चिमी यूरोप की सबसे खतरनाक औद्योगिक इमारत करार दिया गया है।

    दो साल में मिली 25 गड़बड़ियां
    The Sun की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो वर्षों में लंदन स्थित इस न्यूक्लियर प्लांट में एक-दो नहीं, बल्कि 25 बड़ी गड़बड़ियां पायी गईं हैं, जो सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हो सकती थीं। इन खतरों में संयंत्र में पानी की पाइप लाइन से लीक होने वाला रेडियशन (विकरण), परमाणु कचरे वाले कंटेनर को पूरी तरह से बंद नहीं करना, यूरेनियम पाउडर गिरा हुआ मिलना व एक फटे हुए पाइप से एसिड का रिसाव शामिल है। आपको जानकर हैरानी होगी कि ये बस कुछ गड़बड़ियां हैं, जो सामने आयी हैं। इस प्लांट में पायी गयीं गड़बड़ियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।

    2017 में बेकाबू हुए थे हालात
    प्लांट के रिकॉर्ड बताते हैं कि अक्टूबर 2017 में एक गंभीर रसायन की वजह से यहां हालात बेकाबू हो गए थे, जिसके बाद बम निरोधक दस्ते को बुलाया गया था। इसके एक महीने बाद पता चला था कि प्लांट का एक कर्मचारी निम्न स्तर के विकिरण (रेडियेशन) का शिकार हुआ था। इसके बाद इस वर्ष की शुरूआत में जब एक हाई वोल्टेज बिजली का तार क्षतिग्रस्त होने से संयंत्र में बिजली चली गई थी। इसके बाद न्यूक्लियर रेगुलेशन ऑफिस को वहां से स्थानांतरित कर दिया गया था। इसकी वजह ऑफिस में सुधारकार्यों को बतायी गई थी।

    आसपास के लोगों में दहशत
    अंतरराष्ट्रीय मीडिया के अनुसार Cumbria परिसर में 140 टन प्लूटोनियम का भंडार है। इसके अलावा यहां यूके के क्रियाशील परमाणु रिएक्टरों का कचरा भी आता है, जो बहुत ज्यादा रेडियोधर्मी (Radioactive) होता है। इसी वजह से इस परिसर को यूरोप में सबसे खतरनाक जगह घोषित कर दिया गया है। इस वजह से इसके आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों में दहशत का माहौल का, क्योंकि संयंत्र में कोई बड़ी दुर्घटना हुई तो वहां मौजूद कर्मचारियों के बाद आसपास के इलाकों में रहने वाले लोग ही उसका सबसे पहला शिकार बनेंगे।

    प्लांट प्रबंधन ने किसी गड़बड़ी से इंकार किया
    वहीं मामले में संयंत्र के प्रवक्ता का कहना है कि पिछले दो वर्षों में यहां कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। हम पारदर्शिता को लेकर प्रतिबद्ध हैं और छोटी से छोटी गड़बड़ी की विस्तृत जांच करते हैं। पारदर्शिता के लिए हम उस जांच रिपोर्ट को अपनी वेबसाइट पर भी अपलोड करते हैं।

    चेरनोबिल परमाणु दुर्घटना
    जानकारों के अनुसार परमाणु संयंत्रों में एक छोटी सी चूक भी बहुत गंभीर साबित हो सकती है। यहां किसी चूक की गुंजाइश नहीं है। यहां होने वाली छोटी सी दुर्घटना बहुत बड़े इलाके में अब तक की सबसे बड़ी आपदा ला सकती है। ये हादसा 26 अप्रैल 1986 को यूक्रेन के चेरनोबिल स्थित परमाणु संयंत्र में हुई दुर्घटना से भी बहुत बड़ा होगा। चेरनोबिल हादसे में प्लांट के न्यूक्लियर रिएक्टर चार में धमाका हो गया था। ये धमाका 500 परमाणु बम के धमाकों के बराबर था। विस्फोट इतना ताकतवर था कि संयंत्र के ऊपर बनी 1000 टन की छत उड़ गई थी। इस विस्फोट में तकरीबन 50 लोग मारे गे थे। इसके अलावा संयंत्र में मौजूद 190 टन यूरेनियम डाईऑक्साइड का चार प्रतिशत हिस्सा हवा में फैल गया था। इससे चेर्नोबिल के बहुत बड़े इलाके में रेडियशन फैल गया था। इस संयंत्र से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर बड़ा रिहायशी क्षेत्र था। 30 घंटे बाद इन लोगों को बाहर निकालना शुरू किया गया। तब तक हजारों लोग विकिरण की चपेट में आ चुके थे। बाद में छह लाख लोगों विकिरण रोकने के काम में जुटे। अनुमान है कि इससे रुस, यूक्रेन और बेलारूस के 50 लाख से ज्यादा लोग विकिरण की चपेट में आए थे। इस वजह से आज भी इनकी संतानें अपंगता का शिकार हो रही हैं।

    हिरोशिमा परमाणु हमला
    विश्व इतिहास में जापान के हिरोशिमा और नागाशाकी में अब तक एक मात्र हमला हुआ है। छह अगस्त 1945 को अमेरिकी सेना के विमानों ने हिरोशिमा में लिटिल ब्वॉय नाम का एक शक्तिशाली परमाणु गिराया था। जब बम फटा वहां का तापमान अचानक 10 लाख सेंटीग्रेड पहुंच गया था। धमाका इतना तेज था कि धूल और धुएं के गुब्बार कई किलोमीटर ऊपर तक उठे। करीब 15 किमी के दायरे में इसका असर देखा गया। बम धमाके की गर्मी की वजह से वहां तेज बारिश शुरू हो गई, जिसमें गंदगी, धूल और विस्फोट पैदा हुए रेडियोएक्टिव तत्व मौजूद थे। बारिश इतनी काली थी, लगा मानों ग्रीस बरस रहा हो।

    नागाशाकी परमाणु हमला
    इसके तीन दिन बाद 9 अगस्त 1945 को अमेरिकी सेना के जहाजों ने जापान के एक और शहर नागाशाकी पर फैट मैन नाम का दूसरा परमाणु बम गिराया था। इससे एक किलोमीटर के एरिया में मौजूद हर चीज का अस्तित्व खत्म हो गया था। आठ किमी दूर तक इसका असर देखा गया। इस धमाके में भी हजारों लोगों की मौत हुई थी। हिरोशिया और नागाशाकी के कई किलोमीटर दूर मौजूद लोग भी इसके रेडिएशन का शिकार हुए और आज भी वहां अपंग बच्चे पैदा होते हैं। इन दोनों धमाकों में तकरीबन ढाई लाख लोग मारे गए थे।

    फुकुशिमा न्यूक्लियर हादसा
    जापान में 11 मार्च 2011 को आए सुनामी भूकंप के बाद उठी विनाशकारी समुद्री लहरों ने फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र को भी बुरी तरह से प्रभावित किया था। इसके बाद विकिरण के खतरे को देखते हुए काफी बड़े एरिया को खाली करा दिया गया था। इसे यूक्रेन के चेरनोबिल में हुए परमाणु हादसे के बाद सबसे बड़ा न्यूक्लियर हादसा माना गया। अंतरराष्ट्रीय न्यूक्लियर इवेंट स्केल पर इसका स्तर सात था। विश्व इतिहास में चेरनोबिल और फुकुशिमा परमाणु हादसे को ही सात स्केल पर रखा गया है।