पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री की चेतावनी, दुनिया को कट्टरपंथी इस्लामी समूहों से जैविक आतंकवाद का खतरा
टोनी ब्लेयर ने जोर देकर कहा है कि आतंकवादी हमलों में कमी के बावजूद इस्लामवादी विचारधारा और हिंसा दोनों पहले दर्जे का सुरक्षा खतरा हैं। भले ही यह भी अभी हमसे दूर हो लेकिन यह हमारे पास आएगा। जैसा कि हमने 9/11 को देखा था।

नई दिल्ली, आइएएनएस। पश्चिमी जगत अभी भी कट्टरपंथी इस्लामी समूहों द्वारा 9/11 शैली के हमलों के खतरे का सामना कर रहा है। लेकिन इस बार ये समूह जैविक आतंकवाद से दुनिया को चौंका सकते हैं। द गार्जियन के मुताबिक ये चेतावनी पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने दी है।
11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर अल कायदा के आतंकवादी हमलों की 20वीं बरसी पर रक्षा थिंकटैंक रुसी को संबोधित करते हुए ब्लेयर ने कहा कि आतंकवादी खतरा अव्वल दर्जे का मुद्दा बना हुआ है। उल्लेखनीय है ब्लेयर 2001 में ब्रिटिश प्रधान मंत्री थे, और इराक और अफगानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप का समर्थन करते थे।
द गार्जियन में छपी रिपोर्ट के अनुसार ब्लेयर ने जोर देकर कहा कि आतंकवादी हमलों में कमी के बावजूद, इस्लामवादी विचारधारा और हिंसा दोनों पहले दर्जे का सुरक्षा खतरा हैं। भले ही यह भी अभी हमसे दूर हो लेकिन यह हमारे पास आएगा। जैसा कि हमने 9/11 को देखा था।
कोरोना ने हमें घातक रोगजनकों के बारे में सिखाया है। जैविक आतंक की संभावनाएं विज्ञान कथाओं की तरह लग सकती हैं। लेकिन हमको अब समझदार होना पड़ेगा। नान स्टेट एक्टर्स द्वारा उनके संभावित उपयोग के लिए हमें तैयार होना पड़ेगा। अफगानिस्तान मुद्दे पर उन्होंने जोर देकर कहा कि एक देश को फिर से खड़ा करने की हमारी योजना विफल रही। वे लोग नहीं चाहते थे कि देश का निर्माण हो। निश्चित रूप से, हम बेहतर कर सकते थे, लेकिन अफगानों ने तालिबान के अधिग्रहण को नहीं चुना।
2019 के ओपीनियन पोल में अफगान लोगों के बीच उन्हें मात्र चार फीसद समर्थन था। उन्होंने देश को अनुनय-विनय से नहीं, हिंसा से जीता। राष्ट्र-निर्माण में बाधा आमतौर पर लोग नहीं हैं, बल्कि कई वर्षो से भ्रष्टाचार सहित खराब संस्थागत क्षमता और शासन है। सबसे बड़ी चुनौती बाहरी तत्वों के साथ मिलकर आंतरिक तत्वों को नष्ट करने की कोशिश करना है। रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने बाहरी तत्वों का नाम तो नहीं लिया लेकिन वे लंबे समय से मानते हैं कि पाकिस्तान, तालिबान का समर्थन करता है।
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