बच्चों की नींद और बचपन छीन रही REEL, दिमाग पर पड़ रहा सीधा असर; रिपोर्ट में बड़े दावे
एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि शार्ट वीडियो और रील्स बच्चों की नींद और बचपन को छीन रही हैं, जिससे उनके दिमाग पर सीधा असर पड़ रहा है। ये वीडियो ...और पढ़ें

शार्ट वीडियो बच्चों की नींद में डाल रहे खलल- स्टडी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ट्रेन का सफर हो या मेट्रो का कोच। घर में लोंगों का टाइमपास हो हाउसिंग सोसायटी का सिक्योरिटी गार्ड। हर जगह आपको स्मार्टफोन पर शार्ट वीडियो या रील्स देखते हुए लोग मिल जाएंगे। इसकी लोकप्रियता इस हद तक बढ़ गई है कि बड़े हों, बच्चे हों या बुजुर्ग कोई भी इसके ग्लैमर से अछूता नहीं है।
शार्ट वीडियो और रील्स तो बच्चों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए हैं। स्कूल में भी वह इसी के बारे में बात करते हैं। पहले लोग कुछ मिनटों के लिए ही शार्ट वीडियो देखते थे लेकिन अब ये वीडियो तय कर रहे हैं कि बच्चे और युवा कैसे आराम करेंगे, केसे बातचीत करेंगे और अपनी राय कैसे बनाएंगे।
शार्ट वीडियो बच्चों की नींद में डाल रहे खलल
टिकटाक, इंस्टाग्राम रील्स, डौयिन और यूट्यूब शार्ट्स 18 वर्ष से कम आयु के करोड़ों यूजर्स को अंतहीन फीड से अपने मोहपाश में बांध रहे हैं। जीवंत और अंतरंग कंटेंट से लुभाते हैं एप ये एप यूजर्स को जीवंत और अंतरंग कंटेंट मुहैया कराते हैं। इसके जरिये यूजर्स एक क्लिक पर हंसाने वाले, ट्रेंड से जुड़े वीडियो एक्सेस कर सकते हैं।
ये वीडियो जानबूझ कर इतने दिलचस्प बनाए जाते हैं कि कोई भी उनको घंटो तक तेजी से स्क्रोल करते हुए देखता रहे। आपको बस स्क्रोल करना है और शार्ट वीडियो का अंतहीन सिलसिला चलता रहता है।
ड़े लोग भले ही इसे मैनेज कर सकते हैं लेकिन बच्चों के लिए ऐसा करना मुश्किल होता है। कम नींद और मानसिक विकास पर असर इस तरह के वीडियो बच्चों को ध्यान में रख कर नहीं बनाए गए हैं लेकिन बडी संख्या में बच्चे रोज और अक्सर अकेले ऐसे वीडियो देखते हैं।
मानसिक विकास पर पड़ रहा है सीधा असर
ये प्लेटफार्म चीजों को पहचानने और दिलचस्पी जगाने में कुछ बच्चों की मदद करते हैं वहीं बहुत से बच्चों के लिए कंटेंट का प्रवाह उनकी नींद को बाधित करता है और कई बार ऐसे कंटेंट भी उनकी नजर से गुजरते हैं, जो उनको नहीं देखने चाहिए।
शार्ट वीडियो देखते हुए काफी वक्त गुजारने वाले बच्चों के पास इतना समय नहीं बचता है कि वह परिवार के सदस्यों या अपने दोस्तों से बातचीत करें, जो बचपन की एक सहज प्रक्रिया है। उनके मानसिक विकास के लिहाज से यह प्रक्रिया काफी अहम है। इस तरह के वीडियो देखने में समस्या समय से ज्यादा पैटर्न को लेकर है।
वीडियो इस तरह के होते हैं कि बच्चे लगातार स्क्राल करते रहते हैं, उनके लिए इसे रोकना मुश्किल हो जाता है। इस तरह का पैटर्न लंबी अवधि में उनकी नींद, मूड और किसी चीज पर फोकस करने की क्षमता, पढ़ाई और रिश्तों पर असर डालता है।
ध्यान केंद्रित करने की क्षमता हो रही कमजोर
नयेपन की भूख शांत करते हैं वीडियो शार्ट वीडियो आम तौर पर 15 सेकेंड से 90 सेकेंड तक के होते हैं। इनको इस तरह से बनाया गया है कि यह लोगों की नई चीजों की भूख को शांत करते हैं। हर स्वाइप पर आपको कुछ अलग तरह का कंटेंट दिखता है। चाहे वह जोक हो, मजाक हो या स्तब्ध करने वाला।
शार्ट वीडियो का फीड शायद ही कभी बंद होता है। ऐसे में लोग घंटो तक इसमें लगे रहते हैं। 2023 में 71 अध्ययनों और करीब एक लाख प्रतिभागियों के विश्लेषण में बहुत ज्यादा शार्ट वीडियो देखने और किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता के साथ आंतरिक नियंत्रण कमजोर होने बीच एक जुड़ाव पाया गया।
बच्चों के लिए जोखिम अधिक ज्यादातर अध्ययर्नों में किशोरों पर फोकस किया गया है लेकिन 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे उतने परिपक्व नहीं होते हैं कि वह खुद को आसानी से रोक सकें।
वह नई चीजों को उसनी आसानी से पहचान कर यह तय भी नहीं कर पाते हैं कि इस तरह का कंटेंट उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है। बच्चे तेजी से आ रहे कंटेंट के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं।

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