भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखक वीएस नायपॉल नहीं रहे
वे रवींद्रनाथ टैगोर के बाद साहित्य का नोबेल हासिल करने वाले भारतीय अथवा भारतीय मूल के सिर्फ दूसरे लेखक थे।
लंदन, प्रेट्र। समकालीन दौर में विश्व के महानतम उपन्यासकारों में शामिल सर विद्याधर सूरज प्रसाद नायपॉल का निधन हो गया है। शनिवार को 85 वर्ष की आयु में अपने लंदन स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। प्रशंसकों के बीच 'सर विदिया' के नाम से मशहूर नायपॉल ने उपनिवेशवाद, आदर्शवाद, धर्म और राजनीति जैसे विषयों पर हमेशा मुखर होकर लिखा। उनको वर्ष 2001 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे रवींद्रनाथ टैगोर के बाद साहित्य का नोबेल हासिल करने वाले भारतीय अथवा भारतीय मूल के सिर्फ दूसरे लेखक थे। वर्ष 1961 में प्रकाशित 'अ हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास' उनकी सबसे मशहूर एवं लोकप्रिय किताब है। इस उपन्यास से सिर्फ 31 वर्ष की उम्र में नायपॉल पूरी दुनिया में मशहूर हो गए। उनको 'मास्टर ऑफ इंग्लिश' भी कहा जाता है।
राष्ट्रपति कोविंद, प्रधानमंत्री मोदी ने जताया शोक
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित कई लोगों ने नायपॉल के निधन पर शोक जताया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट किया कि उनके निधन से साहित्य जगत खासकर भारतीय-अंग्रेजी लेखन को बहुत नुकसान हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर लिखा कि सर नायपॉल अपने व्यापक लेखन के चलते हमेशा याद किए जाएंगे। इतिहास, संस्कृति, उपनिवेशवाद और राजनीति से लेकर तमाम विषयों पर उन्होंने लिखा। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान, ओडिशा के नवीन पटनायक, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे समेत कई अन्य नेताओं ने भी उनके निधन पर शोक जताया है।
1951 में प्रकाशित हुआ पहला उपन्यास
बता दें कि वीएस नायपॉल का पूरा नाम विद्याधर सूरज प्रसाद नायपॉल था। उनका जन्म 17 अगस्त, 1932 में त्रिनिडाड के चगवानस में हुआ था। उनकी पढ़ाई ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से हुई थी। उनका पहला उपन्यास 'द मिस्टिक मैसर' साल 1951 में प्रकाशित हुआ था।
कभी की थी आत्महत्या की कोशिश
साहित्य की दुनिया की इतनी चर्चित शख्सियत ने कभी आत्महत्या करने की भी कोशिश की थी। कहते हैं कि छात्र जीवन में नायपॉल ने अवसाद के कारण आत्महत्या करने की भी कोशिश की थी।
'अ हाउस फॉर बिस्वास'...चर्चित उपन्यास
लेखन की दुनिया में उन्होंने काफी शोहरत हासिल की। नायपॉल की कई किताबें अंग्रेजी हूकूमत, इसके उपनिवेश के काले दौर पर थीं। उनकी पहली किताब 'द मिस्टिक मैसर' साल 1951 में प्रकाशित हुई थी। उनकी किताब 'अ हाउस फॉर बिस्वास' और 'द बेंड इन द रिवर' काफी चर्चित किताब है। उन्हें अपना चर्चित उपन्यास 'अ हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास' को लिखने में उन्हें तीन साल से ज्यादा का वक्त लगा था।
नायपॉल के नाम पुरस्कार
- 2001 में उनकी जबरदस्त लेखनी के लिए साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
- 1971 में बुकर प्राइज से भी सम्मानित किया गया था।
अपने लंदन स्थित आवास पर 85 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस
नायपॉल को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें वर्ष 1971 में मिला 'मैन बुकर प्राइज' और वर्ष 1990 में मिला 'नाइटहुड' शामिल है। उनकी पत्नी नादिरा नायपॉल ने एक बयान में कहा, 'उन्होंने जो हासिल किया वह महान था और उन्होंने अंतिम सांस अपने प्रियजनों के बीच ली। उनका जीवन अद्भुत रचनात्मकताओं एवं प्रयासों से भरा था।'
विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल का जन्म 17 अगस्त, 1932 में त्रिनिदाद में एक भारतीय हिंदू परिवार में हुआ था। उनका बचपन बेहद गरीबी और अभाव में बीता। 18 साल का होने पर वह छात्रवृत्ति हासिल कर ऑक्सफोर्ड में पढ़ने के लिए चले आए। जीवन के संघर्षो ने यहां भी उनका साथ नहीं छोड़ा। इसी दौरान वे अपनी सहपाठी पैट्रीशिया एन हेल के करीब आए। पैट्रीशिया के कहने पर उन्होंने कहानियां लिखना शुरू किया। 1955 में परिजनों के विरोध के बावजूद वे दोनों शादी के बंधन में बंध गए। इसके बाद वह इंग्लैंड में बस गए। 1996 में पैट्रीशिया का निधन हो गया और उसी वर्ष उन्होंने पाकिस्तानी पत्रकार नादिरा अल्वी से शादी कर ली।
30 से ज्यादा किताबों के लेखक
नायपॉल विश्व साहित्य के आकाश में सूर्य की तरह उगे और अगले कई दशकों तक चमकते रहे। उन्होंने अपने जीवन में कथा और कथेतर विधा में 30 से अधिक किताबें लिखीं। 'द मिस्टिक मैसूर' उनका पहला उपन्यास था। इसका प्रकाशन 1955 में हुआ था। इसके अलावा 'द मिमिक मेन' (1967), 'इन ए फ्री स्टेट' (1971), 'गुरिल्लाज' (1975), 'ए बेंड इन द रिवर' (1979), 'ए वे इन वर्ल्ड' (1994), 'द इनिग्मा ऑफ अराइवल' (1987), 'बियॉन्ड बिलिफ : इस्लामिक एक्सकर्जन अमंग द कन्वर्टेड पीपुल्स' (1998), 'हाफ ए लाइफ' (2001), 'द राइटर एंड द वर्ल्ड' (2002), 'लिटरेरी ऑकेजन्स (2003), 'द नॉवेल मैजिक सीड्स' (2004) आदि उनकी मशहूर रचनाओं में शामिल हैं।