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ग्लोबल वर्मिंग की वजह से राख होते जा रहे जंगल, इंसानों का बढ़ता दखल भी बड़ा कारण

ग्लोबल वर्मिंग की वजह से जंगलों में आग लगने की घटनाएं हो रही है। इसके अलावा बड़े पैमाने पर ग्लेशियर भी पिघलते जा रहे हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sun, 01 Sep 2019 06:38 PM (IST)Updated: Sun, 01 Sep 2019 06:38 PM (IST)
ग्लोबल वर्मिंग की वजह से राख होते जा रहे जंगल, इंसानों का बढ़ता दखल भी बड़ा कारण
ग्लोबल वर्मिंग की वजह से राख होते जा रहे जंगल, इंसानों का बढ़ता दखल भी बड़ा कारण

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ग्लोबल वर्मिंग की वजह से अमेजन के जंगल और हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने का सिलसिला जारी है। ये समस्या दिनोंदिन विकराल होती जा रही है। इसके अलावा जंगलों का खत्म होने का एक बड़ा कारण इंसानों का जंगलों में बढ़ता दखल भी माना जा रहा है। इंसानों की गतिविधियां भी इन इलाकों में बढ़ रही है। 

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बढ़ती गर्मी, सूखा और तेज हवाएं

इन दिनों मौसम में बदलाव ही देखने को मिल रहा है, जिन महीनों में बरसात होती थी उन महीनों में पानी का नामोनिशान तक नहीं है। गर्मी से बुरा हाल है, यही मौसम लगभग सभी जगहों पर बना हुआ है इस वजह से समस्याएं बनी हुई है। सूखा, गर्म और तेज हवाओँ वाला मौसम आग को भी खूब भड़काता है। आग से तबाह हुए कई इलाके ऐसे हैं जहां तापमान में बढ़ोतरी और सूखे के कारण ऐसे अनुमान लगाए गए थे। वो सटीक बैठे। 

 

गर्मी से कभी भी लग जाती है आग

दरअसल अभी तक मई, जून और जुलाई माह में ही सबसे अधिक आग लगने की घटनाएं प्रकाश में आती थी क्योंकि इन दिनों गर्मी अधिक पड़ती थी मगर अब ग्लोबल वर्मिंग की वजह से ये सब बदल गया है। अब अगस्त माह में भी आग लगने की बड़ी घटनाएं सामने आ रही है। अमेजन के जंगलों में लगी आग इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

लगातार कम होती जा रही जमीन की नमी

ग्लोबल वर्मिंग की वजह से जमीन की नमी कम होती जा रही है। तापमान बढ़ने और बारिश कम होने के कारण पानी की तलाश में पेड़ों और झाड़ियों की जड़ें मिट्टी में ज्यादा गहराई तक जा रही हैं और वहां मौजूद पानी के हर कतरे को सोख ले रही हैं, जड़ें ऐसा इसलिए कर रही हैं ताकि अपनी पत्तियों और कांटों को पोषण दे सकें। इसका मतलब साफ है कि अब तक जमीन में जो नमी रहती थी और आग को फैलने से रोकती थी वो अब पूरी तरह से गायब हो चुकी है इस वजह से आग लगने के बाद वो बहुत तेजी से फैलती है। जबकि जमीन की नमी और यहां लगे छोटे हरे पेड़ पौधे ऐसी आग को बढ़ने से भी रोक दिया करते थे। 

बिजली गिरने का खतरा

वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह से कंक्रीट के जंगलों में बढ़ोतरी हो रही है उससे बिजली गिरने का खतरा भी बढ़ गया है। जितनी गर्मी होगी उतनी ज्यादा बिजली गिरेगी, ऐसे में आग लगने के साथ अन्य घटनाएं भी बढ़ेगी। वैज्ञानिकों ने भी इस बात पर मोहर लगाई है कि उत्तरी इलाकों में अक्सर बिजली गिरने से आग लगती है। वैसे भी पूरी दुनिया के जंगलों में आग लगने की 95 फीसदी घटनाएं इंसानों की वजह से ही हो रही है। 

जंगलों के जलने से बड़े पैमाने पर बन रहा कार्बन

जंगलों में आग लगने से बड़े पैमाने पर कार्बनडाइ आक्साइड बनता है। जंगल पृथ्वी के जमीनी क्षेत्र से पैदा होने वाले 45 फीसदी कार्बन और इंसानों की गतिविधियों से पैदा हुईं 25 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों को सोख लेते हैं हालांकि जंगल के पेड़ जब मर जाते हैं या जल जाते हैं तो कार्बन की कुछ मात्रा फिर जंगल के वातावरण में चली जाती है, इस तरह से जलवायु परिवर्तन में उनकी भी भूमिका बनती है।

सूखे में उग रहे पेड़ पौधे

इन दिनों पेड़ पौधों की नई प्रजातियां पनप रही है। ये सूखे में भी उग रही हैं। नई प्रजातियां मौसम के हिसाब से अपने आप को अनुकूलित कर रही हैं, इस वजह से कम पानी में उगने वाले पेड़ पौधों की तादाद बढ़ती जा रही है, नमी में उगने वाले पौधे गायब हो रहे हैं और उनकी जगह दूसरे पेड़ पौधे पैदा हो रहे है। 

सूखे पेड़-पौधे, झाड़ी और घास

मौसम सूखा होगा तो वनस्पति सूखेगी और आग को ईंधन मिलेगा। सूखे पेड़-पौधों, और घास में आग न सिर्फ आसानी से लगती है बल्कि तेजी से फैलती भी है। सूखे मौसम के कारण जंगलों में ईंधन का एक भरा पूरा भंडार तैयार हो जाता है। गर्म मौसम में हल्की सी चिंगारी या फिर कुछ अन्य कारणों से यहां पर आग लग जाती है जो जंगलों को नुकसान पहुंचाती है। 

तापमान बढ़ा तो झिंगुरों का आतंक भी

बताया जाता है कि तापमान बढ़ने के कारण झिंगुर उत्तर में कनाडा के जंगलों की ओर चले गए, वहां पहुंचने पर उन्होंने भारी तबाही मचाई, झिंगुरों का झुंड जिस रास्ते से होकर निकलता है वो उस रास्ते में पड़ने वाले पेड़ पौधों को खोखला कर देता है, उनकी हरियाली गायब हो जाती है कुछ दिनों के बाद वो खुद ही गिर जाते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक झिंगुर ना सिर्फ पेड़ों को खत्म कर देते हैं बल्कि जंगल को आग के लिहाज से ज्यादा मुफीद बना देते हैं।  


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