बोरिस जॉनसन की लापरवाही से ब्रिटेन में कोरोना से गई 23 हजार लोगों की जान, जांच में लगाए गए गंभीर आरोप
ब्रिटेन में कोविड महामारी के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के अगंभीर रवैये और निर्णय लेने में देरी का खामियाजा आमजनों को भुगतना पड़ा, परिणामस्वरूप 23 हजार लोग ज्यादा मारे गए। यह निष्कर्ष है ब्रिटेन में हुई जांच की रिपोर्ट का, जो गुरुवार को पूरी हुई है।

बोरिस जॉनसन की लापरवाही से ब्रिटेन में कोरोना से गई 23 हजार लोगों की जान (फोटो- रॉयटर)
पीटीआई, लंदन। ब्रिटेन में कोविड महामारी के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के अगंभीर रवैये और निर्णय लेने में देरी का खामियाजा आमजनों को भुगतना पड़ा, परिणामस्वरूप 23 हजार लोग ज्यादा मारे गए। यह निष्कर्ष है ब्रिटेन में हुई जांच की रिपोर्ट का, जो गुरुवार को पूरी हुई है।
कोविड से ब्रिटेन में कुल 2,30,000 लोग मारे गए थे
वैसे कोविड से ब्रिटेन में कुल 2,30,000 लोग मारे गए थे। जांच में पता चला है कि कोविड के दौरान बचाव के लिए नियमों को बनाने में देरी करने और लागू नियमों का पालन न होने से महामारी तेजी से फैली। सरकार की अराजक और विषाक्त कार्यशैली से समस्या बढ़ी और उससे निपटने में देरी हुई।
जांच में बोरिस जॉनसन लगाए गए गंभीर आरोप
कोविड के दौरान प्रधानमंत्री आवास में हुई पार्टी और खुद जॉनसन के बंदिशों को तोड़कर लंदन से बाहर जाने से जनता में गलत संदेश गया। इस दौरान जॉनसन के सलाहकार डोमिनिक कमिंग्स की भूमिका भी सवालों के घेरे में रही। जिस जांच के ये निष्कर्ष हैं उसके लिए जॉनसन ने ही मई 2021 में आदेश दिया था।
जांच दल की प्रमुख पूर्व न्यायाधीश हीथर हैलेट ने कहा, बोरिस जॉनसन 2020 में कोरोना वायरस के खतरे का आकलन कर पाने में विफल रहे। जिस समय वायरस से निपटने में ऊर्जा लगानी चाहिए थी उस समय सरकार अन्य कार्यों में व्यस्त थी। इनमें से एक कार्य यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के अलगाव की प्रक्रिया थी।
प्रधानमंत्री के रूप में जॉनसन को महामारी से निपटने में जो सक्रियता दिखानी चाहिए थी वह नहीं दिखा पाए। हैलेट ने कहा, 23 मार्च 2020 में जब जॉनसन ने देश में लॉकडाउन की घोषणा की, उस समय बहुत देरी हो चुकी थी और उसका असर बहुत कम रहा।
जॉनसन ने लॉकडाउन लगाने में काफी देरी की
ब्रिटेन के निर्णय में स्काटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड के प्रशासन का कोई तालमेल नहीं था। अगर जानसन सरकार ने एक सप्ताह पहले 16 मार्च को लॉकडाउन का एलान कर दिया होता और उसे गंभीरता से लागू करती तो 23 हजार लोगों की जान बचाई जा सकती थी। देरी से लाकडाउन का नतीजा यह रहा कि ज्यादा मौतों के साथ ही बड़ी संख्या में पीडि़तों की संख्या बढ़ी जिसके कारण बाद में फिर लॉकडाउन लगाना पड़ा।

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