रूस के साथ आने वाले देशों में जुड़ा एक और नाम, अमेरिकी विरोधी राष्ट्रों के बीच बन रही है भविष्य को लेकर रणनीति!
यूक्रेन पर हमले के चलते आर्थिक प्रतिबंधों की मार झेल रहा रूस अब लगातार अपने नए राजनीतिक और रणनीतिक साझेदार तलाश कर रहा है। उसके इस कदम में पहले ही कुछ देश जुड़ गए हैं अब म्यांमार भी उसके करीब आ गया है।
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। रूस के साथ आने वाले देशों में एक नाम और जुड़ता दिखाई दे रहा है। ये नाम म्यांमार का है। म्यांमार में फिलहाल सैन्य शासन है और वहां पर लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट कर मिन आंग हलिंग पिछले वर्ष फरवरी में सत्ता के शीर्ष पर बैठे थे। म्यांमार के इस शासक और सरकार के कई अधिकारियों पर पश्चिमी जगत ने कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं। ऐसे में रूस और म्यांमार के बीच पक रही खिचड़ी पर अमेरिका समेत अन्य देशों की पूरी नजर है।
रूस के साथ लगातार ऐसे देश जुड़ रहे हैं जिनका अमेरिका से छत्तीस का आंकड़ा है। इनमें ईरान, तुर्की, चीन, उत्तर कोरिया का नाम पहले से शामिल है। म्यांमार इन सभी देशों में आर्थिक और रणनीतिक तौर पर काफी कमजोर है, लेकिन इसके बाद भी इसका रूस के करीब जाना खासा मायने रखता है। इस ग्रुप में नए जुड़े म्यांमार के सैन्य शासक मिन आंग हलिंग अगले सप्ताह रूस के आधिकारिक दौरे पर जाने वाले हैं। मिन वहां पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
यहां पर ये बात काफी दिलचस्प है कि रूस के साथ इस ग्रुप में जितने भी देश शामिल हैं उन सभी पर पश्चिमी देशों द्वारा कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं। मिन भी इससे अलग नहींं हैं। रूस के दौरे पर मिन ईस्टर्न इकोनामिक फोरम में हिस्सा लेंगे। इस फोरम की एक अलग दिलचस्प कहानी है। इसमें दरअसल, चीन, भारत, जापान, कजाखिस्तान समेत कुछ और देशों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
म्यांमार में मिन द्वारा आंगसांग सू की की सरकार का तख्तापलट करने के बाद रूस की पहली यात्रा नहींं है। इससे पहले वे जुलाई में रूस की निजी यात्रा पर गए थे। उनकी ये यात्रा केवल आर्थिक मुद्दों पर होने वाली बातचीत के तहत ही सीमित नहीं रहेगी बल्कि इसमें अमेरिका के खिलाफ बन रहे गठबंधन को लेकर भी बात जरूर होगी। इसके अलावा माना ये भी जा रहा है आने वाने समय में रूस-चीन-उत्तर कोरिया-ईरान-म्यांमार के इस गठबंधन के बीच कोई औपचारिक मुलाकात या बैठक भी हो।
दरअसल, रूस की कोशिश आर्थिक प्रतिबंधों के बीच नए राजनीतिक समीकरण बनाने हैं। यूरोप द्वारा प्राकृतिक गैस के लिए दूसरे विकल्प तलाशे जाने के बाद रूस को इस बात की भी चिंता जरूर है कि इससे उसको आर्थिक तौर पर चपत न लग जाए। ऐसे में रूस नए सिरे से अपने सहयोगी बनाने की भी कवायद कर रहा है। माना ये भी जा रहा है कि भविष्य में रूस अपने नेतृत्व में नाटो के समानांतर कोई अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाए। हालांकि फिलहाल ये भी दूर की कौड़ी है।