लश्कर का संगठन TRF कैसे जुटाता है आतंकी गतिविधियों के लिए पैसा? NIA जांच में खुलासा
पाकिस्तान की आतंकी चाल फिर उजागर हो गई है। अमेरिका ने द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) को विदेशी आतंकी संगठन घोषित किया है जो लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा है। एनआईए की जांच में टीआरएफ की गतिविधियों का खुलासा हुआ है जिससे पाकिस्तान पर एफएटीएफ का शिकंजा कस सकता है। टीआरएफ के जरिए पाकिस्तान कश्मीर में आतंक को बढ़ावा दे रहा था लेकिन अब उसका यह खेल खत्म होने की कगार पर है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पाकिस्तान की आतंकी चाल एक बार फिर दुनिया के सामने बेपर्दा हो गई है। अमेरिका ने हाल ही में द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) को विदेशी आतंकी संगठन और विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकी इकाई घोषित किया है। अब सामने आया है कि ये संगठन विदेशी फंडिंग पर चलती है।
यह कदम पाकिस्तान के लिए करारा झटका है, क्योंकि टीआरएफ कोई और नहीं, बल्कि लश्कर-ए-तैयबा का एक मुखौटा है। भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने टीआरएफ की गतिविधियों की जांच में ऐसी सनसनीखेज जानकारियां उजागर की हैं। ये प्रूफ पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के शिकंजे में और कस सकती हैं।
पाकिस्तान का खूनी खेल होगा खत्म?
इससे साफ होता है कि कैसे टीआरएफ के जरिए पाकिस्तान कश्मीर में आतंक को स्थानीय रंग देने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अब उसका यह खेल खत्म होने की कगार पर है। टीआरएफ को 2019 में बनाया गया था, ताकि कमजोर पड़ चुके हिजबुल मुजाहिदीन की जगह ली जाए और लश्कर-ए-तैयबा को छिपाने का एक नया चेहरा मिले।
पाकिस्तान की मंशा थी कि कश्मीर में होने वाले आतंकी हमलों को स्थानीय बगावत का नाम देकर दुनिया की आंखों में धूल झोंकी जाए। लेकिन एनआईए की जांच ने साबित कर दिया कि टीआरएफ न तो स्थानीय है और न ही स्वतंत्र। यह पूरी तरह से पाकिस्तान और लश्कर-ए-तैयबा के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली है।
विदेशी फंडिंग का 'मकड़जाल'
एनआईए की जांच में सामने आया है कि टीआरएफ का जम्मू-कश्मीर में गहरा नेटवर्क है। ये आतंकी संगठन विदेशी फंडिंग पर चलता है। जांच में एक शख्स, सज्जाद अहमद मीर का नाम उभरकर सामने आया है। वह मलेशिया में रहता है।
एक संदिग्ध शख्स यासिर हयात के फोन कॉल्स से पता चला कि वह मीर के संपर्क में था और टीआरएफ के लिए फंड जुटाने की कोशिश कर रहा था। हयात ने कई बार मलेशिया का दौरा किया और वहां से 9 लाख रुपये की रकम जुटाई। ये रकम टीआरएफ के एक अन्य ऑपरेटिव शफात वानी को दी गई थी।
वानी टीआरएफ का अहम किरदार है। उसने भी मलेशिया का दौरा किया था। उसने दावा किया कि वह एक यूनिवर्सिटी के कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने गया था, लेकिन जांच में पता चला कि यूनिवर्सिटी ने उसका कोई खर्च नहीं उठाया था।
यह साफ है कि उसका मकसद फंड जुटाना था। एनआईए को यह भी पता चला कि हयात दो पाकिस्तानी नागरिकों के संपर्क में था और उसका काम विदेशी संपर्कों के जरिए टीआरएफ के लिए पैसा इकट्ठा करना था।
पाकिस्तान पर शिकंजा कसने की तैयारी
एनआईए की जांच अब टीआरएफ के फंडिंग नेटवर्क को पूरी तरह बेनकाब करने की दिशा में बढ़ रही है। हयात के फोन में 463 कॉन्टैक्ट्स मिले हैं, जिनमें से कई नंबर पाकिस्तान और मलेशिया के हैं। इन कॉल्स की जांच से फंडिंग के पूरे तंत्र का खुलासा हो सकता है।
यह जानकारी भारत के लिए बेहद अहम है, क्योंकि इसके जरिए वह एफएटीएफ के सामने पाकिस्तान को आतंकवाद के वित्तपोषण का दोषी साबित कर सकता है। भारत लंबे समय से पाकिस्तान को एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में वापस डालने की कोशिश कर रहा है, और टीआरएफ की फंडिंग का यह खुलासा उस दिशा में एक बड़ा कदम है।
पाकिस्तान ने टीआरएफ को इस तरह पेश किया था कि यह कश्मीर की स्थानीय बगावत का हिस्सा हो, लेकिन असल में यह लश्कर-ए-तैयबा का ही एक नया चेहरा था। इसका मकसद था कि पाकिस्तान आतंकी हमलों को प्रायोजित करता रहे और एफएटीएफ की नजरों से बचा रहे। लेकिन एनआईए की गहरी जांच ने पाकिस्तान की इस चाल को नाकाम कर दिया है।
क्या आगे क्या?
एनआईए अब इस फंडिंग ट्रेल को और गहराई से खंगाल रही है। अगर यह साबित हो जाता है कि टीआरएफ को पाकिस्तान और विदेशी संपर्कों से व्यवस्थित ढंग से फंडिंग मिल रही थी, तो यह पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका होगा।
एफएटीएफ की नजर में पाकिस्तान की साख और कमजोर होगी और उसे ग्रे लिस्ट में वापस धकेला जा सकता है। भारत के लिए यह एक मौका है कि वह दुनिया को दिखाए कि पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देने और उसकी फंडिंग करने का पुराना खिलाड़ी है।
(समाचार एजेंसी IANS की इनपुट के साथ)
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