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    पाकिस्तानी पत्रकारों ने PDM कानून को किया खारिज, बताया मौलिक अधिकारों के खिलाफ

    By Manish PandeyEdited By:
    Updated: Sat, 11 Sep 2021 12:54 PM (IST)

    पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार लगातार पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए नए नए कानून ला रही है। हाल ही में लगाए गए कानून पाकिस्तान मीडिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीएमडीए) को पाकिस्तानी पत्रकारों ने खारिज कर दिया है।

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    पत्रकारों ने पीएमडीए कानून को देश के संविधान के खिलाफ करार दिया है।

    इस्लामाबाद, एएनआइ। खैबर-पख्तूनख्वा के पाकिस्तानी पत्रकारों ने गुरुवार को प्रस्तावित कानून 'पाकिस्तान मीडिया डेवलपमेंट अथॉरिटी' (पीएमडीए) को खारिज कर दिया है। उन्होंने इसे संविधान द्वारा प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताया है। द न्यूज इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, विभिन्न समाचार संगठनों से जुड़े पत्रकारों, पेशावर प्रेस क्लब और खैबर यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (खुज) के सदस्यों ने एक दिवसीय संगोष्ठी के बाद एक सर्वसम्मत प्रस्ताव को पारित किया।

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    विभिन्न समाचार संगठनों और प्रेस संघों से जुड़े पत्रकारों ने पीएमडीए कानून को देश के संविधान के अनुच्छेद 19 के खिलाफ करार दिया, जो लोगों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। समूहों ने यह भी बताया कि प्रस्तावित कानून न केवल पत्रकारों और मीडिया संगठनों को प्रेस की स्वतंत्रता से वंचित करेगा, बल्कि नागरिक समाज, छात्रों, वकीलों, शिक्षकों, कानून निर्माताओं, ट्रेड यूनियनों, राजनीतिक, धार्मिक कार्यकर्ताओं और देश की 22 करोड़ जनता को भी अपने मूल अधिकारों से वंचित करेगा।

    विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की प्रेस की स्वतंत्रता खतरे में है। इमरान खान के नेतृत्व वाली देश की सरकार मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के लिए नए नए कानून ला रही है, जिसनें से एक पाकिस्तान मीडिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीएमडीए) को लागू करना है।

    लेखक मेहमिल खालिद ने मीडिया मैटर्स फार डेमोक्रेसी (एमएमएफडी) द्वारा जारी एक आकलन रिपोर्ट 'पाकिस्तान फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन रिपोर्ट 2020' का हवाला देते हुए कहा कि देश ने उन सभी संकेतकों में खराब प्रदर्शन किया है जो मुक्त भाषण निर्धारित करते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दारान पाकिस्तान ने डिजिटल सेंसरशिप को और बढ़ा दिया है।

    पाकिस्तान ने असेसमेंट रिपोर्ट इंडेक्स में 100 में से 30 अंक हासिल किए है। विश्लेषकों का कहना है कि यह इस तथ्य को साबित करता है कि सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया है और लोगों को विशेष रूप से महामारी और संबंधित जानकारी के बारे में बात करने की अनुमति नहीं दी है।