जैश, लश्कर और हिज्बुल में भर्ती से लेकर ट्रेनिंग तक सब देखेगी पाक सेना, ISI के साथ मिलकर तैयार करेंगे हाईटेक आतंकी कैंप
ऑपरेशन सिंदूर में हार के बाद पाकिस्तान जैश-ए-मोहम्मद लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी समूहों को पुनर्गठित कर रहा है। ISI इन समूहों को तैयार करने के लिए सालाना 100 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बना रही है जिसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों को अंजाम देना है। पाकिस्तान सेना बलूचिस्तान में शांति बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ऑपरेशन सिंदूर में भारत के हाथों बुरी तरह पिटने के बाद पाकिस्तान ने तीन प्रमुख आतंकी समूहों, जैश ए मोहम्मद, लश्कर ए तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन, को नए सिरे से तैयार करने का ब्लू प्रिंट तैयार किया है। इस ब्लू प्रिंट के पीछे दिमाग खुफिया एजेंसी आइएसआइ का है, जबकि पाकिस्तान सेना के पास इन आतंकी समूहों को अत्याधुनिक तरीके से तैयार करने का जिम्मा रहेगा।
आइएसआइ ने इन समूहों पर सालाना 100 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा है। इनको तैयार करने के पीछे मंशा ये है कि ये आतंकी समूह पाकिस्तान की धरती से ही जम्मू और कश्मीर में आतंकी हमले अंजाम दे सकें और भारतीय सेना को उलझाए रख सकें ताकि पाकिस्तान सेना अपना ध्यान बलूचिस्तान में शांति कायम करने पर केंद्रित रख सके।
बीएलए-टीटीपी ने पाक सेना के नाक में किया दम
बलूचिस्तान में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) और तहरीक ए तालिबान (टीटीपी) ने पाकिस्तान सेना की नाक में दम कर रखा है, जिससे वहां अमेरिकी और चीनी हित प्रभावित हो रहे हैं। ये सुनिश्चित करने के लिए कि जैश, हिजबुल और लश्कर आतंकी समूहों के पास अत्याधुनिक संचालन क्षमता हो, पाक सेना ने नए रंगरूटों को प्रशिक्षित करने के लिए अपने अधिकारियों को ही झोंक दिया है।
आतंकी तैयार करने में पुराने तरीकों से आगे बढ़ते हुए मेजर रैंक के अधिकारी को कैंप के सभी आपरेशन की निगरानी का जिम्मा सौंपा जा रहा है। सैन्य अधिकारियों की सीधी निगरानी का मतलब ये है कि आतंकी समूहों के नेताओं की भूमिका सीमित रहेगी। वे केवल भर्ती होनेवाले युवाओं का ब्रेनवाश करके उन्हें कट्टरपंथी बनाने तक सीमित रहेंगे।
आतंकी कैंरों को पाकिस्तानी सेना का संरक्षण
इन सभी कैंपों को पाकिस्तानी सेना का संरक्षण मिलेगा। खुफिया एजेंसी आइएसआइ इन कैंपों का तकनीकी उन्नयन सुनिश्चित करेगी। इन सभी आतंकी कैंपों को हर तरह की अत्याधुनिक सुविधा दी जाएगी। आइएसआइ चाहती है कि नए कैंपों को परंपरागत हथियारों से हटाकर हाईटेक अत्याधुनिक हथियारों से लैस किया जाए। इसमें आतंकियों को हाईटेक ड्रोन संचालन का प्रशिक्षण देना भी शामिल है ताकि वे भारतीय सीमा में घुसपैठ के बगैर ही अपने नापाक मंसूबों को अंजाम दे सकें।
बलूचिस्तान में बड़े हितों की सुरक्षा पर है फोकस भविष्य के आतंकी आपरेशन अंजाम देने के लिए नए सिरे से आतंकी समूह तैयार करने के पीछे कई वजहें बताई जा रही हैं। आइएसआइ नहीं चाहती कि इन कैंपों को दोबारा भारतीय सैन्य आपरेशन की वजह से कोई नुकसान पहुंचे। साथ ही पाकिस्तान का बड़ा फोकस बलूचिस्तान पर होना भी बड़ा कारण माना जा रहा है।
टीटीपी और बीएलए पर ध्यान रखना चाहता है पाकिस्तान
पाकिस्तान ने अमेरिका और चीन, दोनों को बलूचिस्तान में सुरक्षा का वादा किया है, इसलिए वह भारतीय सेना से उलझने की बजाय अपना ध्यान टीटीपी और बीएलए पर ज्यादा रखना चाहता है। पाकिस्तान ने अमेरिका से खनिज डील पर समझौता किया है, जिसके चलते वह बलूचिस्तान को सुरक्षित करने के लिए भारी दबाव में है।
साथ ही, पाकिस्तान ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना 2.0 (सीपेक) की सुरक्षा के लिए चीन से प्रतिबद्धता जताई है और इसे पूरा करने के लिए उसे टीटीपी और बीएलए को काबू में रखना होगा। सीपेक 1.0 में चीनी हितों को सुरक्षित रख पाने में पाकिस्तान बुरी तरह विफल रहा था। आतंकी कैंपों को नए सिरे से तैयार करने के लिए पाकिस्तान को खाड़ी देशों से डोनेशन के जरिये फंडिंग भी हो रही है।
(समाचार एजेंसी आइएएनएस के इनपुट के साथ)
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