Pervez Musharraf Dies: जानें जनता का विश्वास क्यों खो बैठे थे जनरल परवेज मुशर्रफ
सेना में तैनाती के दौरान मुशर्रफ की छवि एक बातूनी और स्वच्छंद व्यक्ति की रही। उन्हें एक ऐसा सैनिक माना जाता था जो जरूरत से ज्यादा जोखिम उठाने के लिए हमेशा तैयार रहता था। मुशर्रफ का लंबी बीमारी के बाद रविवार को दुबई में निधन हो गया।
नई दिल्ली, जेएनएन। पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख और पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का निधन हो गया है। परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के पहले ऐसे सैन्य शासक थे, जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। 17 दिसंबर 2019 में कोर्ट ने मुशर्रफ को देशद्रोह के मामले में फांसी की सजा सुनाई थी। 1998 में मुशर्रफ पाकिस्तानी सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बने और 1999 में हुए एक तख्तापलट के बाद मुशर्रफ देश के चीफ एक्जीक्यूटिव बने थे।
अविभाजित भारत के दिल्ली में हुआ था मुशर्रफ का जन्म
मुशर्रफ का जन्म 11 अगस्त, 1943 को अविभाजित भारत में दिल्ली में हुआ था। उनके बारे में कहा जाता है कि 1947 में दिल्ली से कराची जाने वाली आखिरी ट्रेन पर सवार होकर उनका परिवार पाकिस्तान गया था। कुछ सालों बाद जब उनके पिता को तुर्की में तैनात किया गया तो वे भी उनके साथ तुर्की गए। वहां उन्होंने तुर्की भाषा
भी बोलनी सीखी थी।
बता दें मुशर्रफ के पूरे करियर के दौरान उनके दिल में तुर्की के लिए खास जगह रही थी जब उन्हें अपने करियर के मध्य में एक ट्रेनिग कोर्स करने का मौका मिला तो उन्होंने तुर्की को चुना हांलाकि उसके लिए अमेरिका भी एक विकल्प था।
मुशर्रफ जिदगी भर तुर्की के नेता मुस्तफा कमाल अतातुर्क को अपना आदर्श मानते रहे। एक बार तुर्की की सैनिक अकादमी का मुआयना करते हुए उन्होंने स्वीकार किया कि जब 1974 में तुर्की ने साइप्रस पर हमला किया था तो वो तुर्की की तरफ से एक वॉलंटियर के तौर पर लड़ना चाहते थे।
मुशर्रफ ने अपनी आत्मकथा 'ऑन द लाइन ऑफ फायर' में स्वीकार किया कि वे अपने फौजी करियर के दौरान एक अनुशासनहीन, बात-बात पर लड़ जाने वाले, गैर-जिम्मेदार और लापरवाह सैनिक थे।
1965 के युद्ध से तुरंत पहले भारत के खिलाफ युद्ध के बादल घिर आने के बावजूद वे जबरदस्ती छह दिन की छुट्टी पर चले गए थे जिसे उनके कमांडिग अफसर ने नामंजूर कर दिया था। उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी लेकिन 1965 की लड़ाई शुरू होने की वजह से वे बच निकले थे।
जनरल परवेज मुशर्रफ ने अपनी आत्मकथा में लिखा, "मैं अपने दाएं बैठे हुए सैनिक सचिव मेजर जनरल नदीम ताज से बात कर रहा था कि मैंने अपने पीछे जोरदार धमाका सुना। मेरी कार के चारों पहिये हवा में थे। मैं समझ गया था कि ये एक बड़ा बम का धमाका है।
त्वरित फैसला लेने वाले सैनिक थे मुशर्रफ
सेना में तैनाती के दौरान मुशर्रफ की छवि एक बातूनी और स्वच्छंद व्यक्ति की रही। उन्हें एक ऐसा सैनिक माना जाता था जो जरूरत से ज्यादा जोखिम उठाने के लिए हमेशा तैयार रहता था। पाकिस्तान की राजनयिक और मंत्री रही आबिदा हुसैन लिखती हैं कि मुशर्रफ एक गर्म दिमाग के कमांडो के रूप में कुख्यात थे। वे अक्सर बिना सोचे समझे गैर जिम्मेदारी वाले फैसले लेते थे।'
जनता का खोया समर्थन
पाकिस्तान की मशहूर रक्षा विश्लेषक और मिलिट्री इंक पुस्तक की लेखिका आयशा सिद्दीका से एक बार सवाल पूछा गया था, सत्ता में रहने के दौरान जनरल मुशर्रफ की सबसे बड़ी गलती क्या थी? उनका जवाब था, सत्ता में बने रहना। सभी जनरल उन जैसी गलतियां करते हैं। वे ये गलती करने वाले पहले जनरल नहीं थे। जिस जगह वे पहुंचे थे वहां से बाहर निकलना किसी भी जनरल के लिए मुश्किल होता है। आखिर में उनकी सारी राजनीतिक वैधता और विश्वस्नीयता समाप्त हो गई थी।
सेना को देश के हालात की रिपोर्ट अपने सैनिक से मिलती है। छुट्टी से आने के बाद वे अपने अफसरों को बताता है कि आम जनता सरकार के बारे में क्या सोच रही है।
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सैनिकों के रिपोर्ट मिलने के बाद सेना ने मुशर्रफ से अपनेआप को दूर करना शुरू कर दिया था। उसके अलावा सेना के नेतृत्व में परिवर्तन भी हुआ था जिसे उन्होंने खुद अंजाम दिया था और फिर अमेरिका की तरफ से भी सेना पर दबाव था जिसकी वजह से उन्हें पद छोड़ना पड़ा था।
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