जानिए कौन है 'उमर शेख', जिसे मुशर्रफ ने अपनी आत्मकथा में बताया था डबल एजेंट
सिंध हाइकोर्ट ने आतंकी सईद शेख की फांसी की सजा से मुक्त कर दिया इस वजह से शेख एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। 15 साल के बाद भी उसे फांसी की सजा नहीं दी जा सकी।
नई दिल्ली। पाकिस्तान की सिंध हाईकोर्ट ने अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या में शामिल आतंकी उमर शेख को फांसी की सजा से मुक्त कर दिया। इसी के बाद एक बार उमर शेख सुर्खियों में आ गया। इससे पहले भी सईद शेख कई बार सुर्खियों में रहा है क्योंकि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने उसे अपनी आत्मकथा में डबल एजेंट बताया था। हम आपको बताते हैं क्या है उमर शेख की पूरी कहानी।
पूरा नाम
उमर शेख का पूरा नाम अहमद उमर सईद शेख है। शेख पाकिस्तानी मूल का ब्रिटिश आतंकवादी है। सईद शेख ने साल 2002 में वॉल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार डेनियल पर्ल को पाकिस्तान में किडनैप करवाया और उनकी हत्या करवा दी थी। उसी साल अदालत ने इस मामले में उमर को मौत की सजा सुनाई थी मगर 16 साल बाद भी उमर को फांसी नहीं दी जा सकी है। वो आज भी जिंदा है। अब सिंध हाईकोर्ट ने शेख को फांसी की सजा से मुक्त कर दिया है।
लंदन में हुआ था पैदा
पाकिस्तान मूल का उमर लंदन में एक कपड़ा व्यापारी सईद शेख के घर हुआ था। उमर के जन्म से 5 साल पहले उनके पिता पाकिस्तान से लंदन में स्थानांतरित हो गए थे। जब वह लंदन के फारेस्ट स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे तो उन्हें जातिवाद धमकियों का सामना करना पड़ता था। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एडमिशन हुआ मगर वहां वो पढ़ाई नहीं कर पाया। कुछ महीनों के बाद ही उसने पढ़ाई छोड़ दी।
पढ़ाई छोड़ने के बाद ही वो चरमपंथ के रास्ते निकल गया। वर्ष 1987 में, 13 वर्ष की उम्र में उनका परिवार वापस लाहौर लौट आया था। 19 वर्ष की आयु में, जब वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) में प्रथम वर्ष का छात्र था, तब उसने “Islamic Aid Group” में शामिल होने के लिए बोस्निया की यात्रा की, जोकि सर्बियाई ईसाइयों द्वारा मुसलमानों के अत्याचार के खिलाफ कार्य किया करती थी। ऐसा माना जाता है कि उसके बोस्निया के दौरे ने उसे काफी कट्टरपंथी बना दिया गया था।
जेल से छुड़वाए गए आतंकियों में था शुमार
1999 में इंडियन एयरलाइंस फ्लाइट 814 को हाइजैक करके कंधार ले जाया गया था। इस विमान को छोड़ने के एवज में पाकिस्तानी आतंकियों ने जिन आतंकियों को छोड़े जाने की मांग की थी, उसमें इसका भी नाम था। बाद में 11 सितम्बर 2001 के हमले में अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में विमानों के जो हमले हुए उनमें भी उमर शेख का नाम आया था। पाकिस्तान के पूर्व-राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने अपनी आत्मकथा इन द लाइन ऑफ फायर में भी उमर को डबल एजेंट होने का जिक्र किया है।
क्या था कंधार कांड
भारत की एविएशन हिस्ट्री का यह एक बेहद दर्दनाक चैप्टर है जिसको कंधार कांड के नाम से जाना जाता है। जिन लोगों ने इसको करीब से देखा उनके दर्द को शब्दों में बयां करना नामुमकिन है। 24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस का विमान IC 814 काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से नई दिल्ली की उड़ान पर था, इसको हरकत उल मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने हाईजैक कर लिया था।
हाईजैक की इस खबर ने भारत सरकार की नींद उड़ा दी थी। इस विमान में 176 पैसेंजर समेत क्रू के कुल 15 सदस्य भी सवार थे। सभी की जान खतरे में थी। इस विमान को हाईजैक ऐसे समय में किया गया था जब पूरी दुनिया नए साल के आने का जश्न मनाने के लिए तैयार हो रही थी। भारत में भी ऐसा ही माहौल था, लेकिन हाईजैक की खबर ने सभी खुशियों पर पानी फेर दिया था।
अमृतसर, लाहौर, दुबई के रास्ते कंधार पहुंचा था विमान
आतंकियों ने IC-814 विमान को शाम करीब 17.30 बजे हाईजैक किया था। इसके बाद इस विमान को पहले अमृतसर फिर लाहौर फिर दुबई और अंत में अफगानिस्तान के कंधार में उतारा गया था। इस दौरान आतंकियों ने 176 यात्रियों में से 27 को दुबई में छोड़ दिया, लेकिन रूपिन कात्याल नाम के एक यात्री को चाकू से बुरी तरह गोदकर मार डाला था जबकि कई अन्य को घायल कर दिया था।
आतंकी अपने तीन खूंखार साथियों मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुस्ताक अहमद जर्गर की रिहाई की मांग कर रहे थे। कंधार कांड को लेकर तत्कालीन भारत सरकार पर भी सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। कई जगहों पर इसको लेकर यहां तक कहा गया कि भारत सरकार यदि समय रहते सही डिसीजन ले पाती तो इसके सारे यात्री सकुशल रिहा किए जा सकते थे। भारत को इसकी बड़ी कीमत अदा करनी पड़ी थी, जिसे भारत आज भी आतंकी की रिहाई के रूप में चुका रहा है।
पूर्व रॉ चीफ का खुलासा
इस पूरे ऑपरेशन की कमान संभालने वाले पूर्व रॉ चीफ एएस दुलत ने अपनी एक किताब में 'कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स' में कंधार कांड का विस्तार से जिक्र किया है। उन्होंने अपनी किताब में कई तथ्यों का खुलासा किया है। इस किताब में दुलत ने यह माना कि क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप (सीएमजी) ने आतंकियों से निपटने के अभियान में गड़बड़ियां की थीं। उन्होंने लिखा है कि 24 दिसंबर, 1999 को जब जहाज अमृतसर में उतरा तो न केंद्र सरकार और न ही पंजाब सरकार कुछ फैसला कर पाई।
नतीजा यह हुआ कि पांच घंटों तक सीएमजी की मीटिंग होती रही और प्लेन अमृतसर से उड़ गया और इस तरह आतंकियों पर काबू पाने का मौका देश ने गंवा दिया। बाद में सभी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे उन्होंने यहां तक कहा कि अमृतसर में जहाज की मौजूदगी के दौरान ऑपरेशन को हेड कर रहे पंजाब पुलिस प्रमुख सरबजीत सिंह ने कहा कि दिल्ली (केंद्र सरकार) ने उन्हें कभी भी नहीं कहा कि IC-814 को उड़ान नहीं भरने देना है।