भविष्य के सेना प्रमुखों को अयूब खान ने ही दिखाई थी पाकिस्तान में तख्ता पलटकर सत्ता हथियाने की राह
अयूब खान उस इंसान का नाम है जिसने पहली बार पाकिस्तान में लोगों द्वारा चुनी गई सत्ता का तख्ता पलट कर आने वाले अधिकारियों की इसकी राह दिखाई थी।
नई दिल्ली। पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे जनरल अयूब खान कभी भारत की थल सेना चीफ जनरल करियप्पा के जुनियर हुआ करते थे। देश का जब बंटवारा हुआ तो वो पाकिस्तान की सेना के पहले कमाण्डर-इन-चीफ बने। अयूब खान को ये पद केवल 22 वर्ष की सेवा के बाद ही दे दिया गया था। इस लिहाज से वे पाकिस्तानी फौज में सबसे कम आयु के जनरल थे। इतना ही नहीं वे पाकिस्तान के सैन्य और राजनीतिक इतिहास की वो अहम कड़ी बने जिसने सेना के आने वाले प्रमुखों को देश की चुनी हुई सरकार को बेदखल करने और हथियारों के दम पर सत्ता हथियाने की राह भी दिखाई। अयूब खान पाकिस्तान के सैन्य इतिहास के पहले ऐसे शख्स थे जिन्होंने खुद को फील्ड मार्शल बनाया था। उन्होंने सरकार के विरुद्ध सैन्य विद्रोह कर सत्ता पर कब्जा किया था।
उनके दामाद मियां गुल औरंगजेब ने जियो टीवी से एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि वे बेहद जूनियर अधिकारी थे जिन्हें सेना का कमांडर इन चीफ बनाया गया था। उनका कहना था कि वर्तमान में 30-35 वर्ष की सेवा के बाद कोई इस पद तक पहुंच पाता है लेकिन वे महज 22 वर्ष की सर्विस में ही इस पद पर काबिज कर दिए गए थे। उनका नाम उस वक्त पाकिस्तान के रक्षामंत्री सिकंदर मिर्जा ने इस पद के लिए आगे बढ़ाया था। बाद में सिकंदर मिर्जा पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने तो अयूब खान ने विद्रोह कर सत्ता हथिया ली और सिकंदर मिर्जा को सजा के तौर पर देश निकाला दे दिया था। हालांकि औरंगजेब का कहना है कि सिकंदर मिर्जा ने तख्ता पलट हो जाने के बाद खुद अयूब खान से लंदन जाने को कहा था।
बहरहाल, इसकी सच्चाई में ज्यादा न जाते हुए यहां पर पाकिस्तान के कुछ ऐसे जनरल और राजनीतिक हस्तियों का जिक्र करना जरूरी हो जाता है जिनके साथ वही हुआ जो सिकंदर मिर्जा के साथ हुआ था। इसमें एक नाम पाकिस्तान के पीएम जुल्फीकार अली भुट्टो और जनरल जिया उन हक है तो दूसरा नाम पूर्व पीएम नवाज शरीफ और जनरल परवेज मुशर्रफ का है। जिया उल हक को भुट्टो ने ही कमांडर इन चीफ बनाया था बाद में उसने ही भुट्टो की सरकार का तख्ता पलट किया और बाद में उन्हें फांसी की सजा भी दिलवाई थी। ऐसे ही नवाज शरीफ ने भी मुशर्रफ को सेना का चीफ बनाया था बाद में उसने भी अपने पूर्व अधिकारियों के पद चिन्हों पर चलते हुए नवाज की सरकार का तख्ता पलट कर सत्ता हथियाई और नवाज को देश निकाला दिया था।
अयूब खान का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर-सीमान्त प्रान्त में हरीपुर जिले के रेहाना गांव में हुआ था। वे पश्तून समुदाय से थे। उनके पिता मीर दाद खान भी सेना में एक नान-कमीशंड अधिकारी थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी दाखिला लिया था लेकिन पढ़ाई अधूरी छोड़कर वे रॉयल मिलिट्री अकादमी में दाखिला हो गए। बंटवारे के बाद उन्हें पाकिस्तानी की सेना में ब्रिगेडियर बनाया गया और वजीरिस्तान भेजा गया। 1948-1949 तक अयूब खान पूर्वी बंगाल में मेजर जनरल रहे और वहां से वापस आने पर उन्हें सेना का कमाण्डर-इन-चीफ बना दिया गया।
पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख और राष्ट्रपति जनरल अयूब खान फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा के बेहद जुनियर अधिकारी रह चुके थे। उन्हीं से जुड़ा एक प्रसंग बेहद दिलचस्प है जिसका यहां पर जिक्र करना जरूरी हो जाता है। वर्ष 1965 में भारत-पाक के बीच लड़ाई लड़ी गई थी। उस वक्त करिअप्पा रिटायर होकर कर्नाटक के अपने गृहनगर में थे और उनका बेटा केसी नंदा करिअप्पा भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट के तौर पर इसमें भाग ले रहे थे। युद्ध के दौरान उन्होंने अपने विमान से पाकिस्तान सीमा में घुसकर ताबड़तोड़ हमले किए। उनके विमान पर भी जबरदस्त फायरिंग की गई जिसके चलते उनका विमान पाकिस्तान की सीमा पर क्रैश कर गया। उन्हें पाकिस्तान सेना ने बंदी बना लिया।
उस वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे। जब अयूब खान के पास इसकी खबर गई कि एक भारतीय पायलट को गिरफ्तार किया गया है तो अयूब खान ने नंदा से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान उन्हें पता लगा कि नंदा उनके पूर्व बॉस जनरल करियप्पा के बेटे हैं तो उन्होंने तत्काल केएम करिअप्पा को फोन किया और बताया कि वह उनके बेटे को रिहा कर रहे हैं। इस पर करिअप्पा ने अयूब खान से कहा कि वह केवल मेरा बेटा नहीं, भारत मां का लाल है। उसे रिहा करना तो दूर कोई सुविधा भी मत देना। उसके साथ आम युद्धबंदियों जैसा बर्ताव किया जाए। इस बातचीत के दौरान जनरल करियप्पा ने ये भी कहा कि यदि आप नंदा को रिहा करना चाहते हैं तो उसके पहले सभी भारतीय युद्ध बंदियों को रिहाई का आदेश दें और उसके बाद नंदा को छोड़ें। युद्ध के खत्म होने के बाद अयूब खान ने नंदा को पूरे सम्मान के साथ रिहा कर दिया था। अयूब खान का ये प्रसंग कहीं न कहीं उनके पूर्व बॉस के प्रति उनके सम्मान को भी दिखाता है।
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