जानिए कौन है MQM नेता अल्ताफ हुसैन, जिसने पाकिस्तान को बताया था दुनिया का कैंसर
एक्टिव मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के चीफ अल्ताफ हुसैन का मकसद उर्दू भाषी मुहाजिरों का नेतृत्व और अधिकार की लड़ाई करना था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट(MQM) पाकिस्तान का एक सेक्युलर राजनीतिक दल है। अल्ताफ हुसैन ने 1948 में 'आल पाकिस्तान मुजाहिर स्टुडेन्ट्स ऑर्गनाइजेशन' (APMSO) के नाम से इसे बनाया जिससे 1984 में मुज़ाहिर कौमी मूवमेन्ट का जन्म हुआ। इन दिनों अल्ताफ हुसैन लंदन में शरण लिए हुए हैं मगर अब वो भारत आना चाह रहे हैं। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शरण देने की गुहार लगाई है। आज भी कई बार अल्ताफ हुसैन लंदन से ही मोबाइल के जरिए कराची में जनसभाओं को संबोधित करते रहते हैं जिससे उनकी उपस्थिति बनी हुई है।
मुहाजिरों के लिए खड़ा किया मूवमेंट
1984 से एक्टिव मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के चीफ अल्ताफ हुसैन का मकसद उर्दू भाषी मुहाजिरों का नेतृत्व और अधिकार की लड़ाई करना था। मुहाजिर वो रिफ्यूजी हैं, जो आजादी के बाद भारत से पाकिस्तान चले गए थे। कनाडा की फेडरल कोर्ट ने MQM को 2006 में आतंकी संगठन करार दिया। अल्ताफ हुसैन के किसी भी बयान को पाकिस्तानी मीडिया में दिखाने की इजाजत नहीं है।
बढ़ने लगा नाम तो हाइकोर्ट ने लगाई रोक
लाहौर हाईकोर्ट ने 7 सितंबर 2015 को अल्ताफ की तस्वीर, वीडियो या बयान मीडिया में दिखाने पर पूरी तरह बैन लगा दिया है। MQM के विरोध की एक बड़ी वजह यूनिवर्सिटी और सिविल सेवाओं में सिंधियों को तरजीह देना था। उनकी मांग साफ सी कि उर्दू भाषी मुहाजिरों को हुकुमत और सरकारी नौकरियों में तरजीह दी जाए, पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में इस वक्त MQM के 25 सांसद हैं कुछ दिन पहले ही पार्टी के 23 सांसदों ने इस्तीफा दे दिया था। सरकार पर आरोप लगाया कि कराची में पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं पर जबरन कार्रवाई की जा रही है। अभी लोकल जनरल चुनावों में कराची शहर में एमक्यूएम की जीत हुई है। नवाज शरीफ और इमरान खान की पार्टी से ज्यादा अल्ताफ की पार्टी का परचम रहा।
यूपी से है अल्ताफ हुसैन का संबंध
अल्ताफ हुसैन के परिवार का संबंध आगरा की नाई की मंडी इलाके से है। इनके पिता यहीं रहा करते थे। विभाजन से पहले अल्ताफ हुसैन के पिता भारतीय रेलवे में कार्यरत थे और आगरा में तैनात थे। 1947 में विभाजन के बाद बेहतर भविष्य की चाह में उनका परिवार पाकिस्तान के कराची में जाकर बस गया वहीं पर 1953 में अल्ताफ हुसैन का जन्म हुआ। किशोरावस्था तक पहुंचते हुए अल्ताफ को पंजाबी दबदबे वाले पाकिस्तानी समाज में उर्दू भाषी मुहाजिरों के प्रति सौतेलेपन का अहसास हुआ।
अपने ही वतन में दोयम दर्जे के नागरिक
दरअसल मुहाजिरों को अपने ही वतन में दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता था। उनको तंज के रूप में 'बिहारी' कहकर संबोधित करने का अपमानजनक तमगा दे दिया गया। 1971 में बांग्लादेश के उदय के बाद पूर्वी पाकिस्तान से भागकर पश्चिमी पाकिस्तान गए लोगों को भी इसी तमगे के साथ जोड़ दिया गया. इसी के प्रतिरोध में 1978 में पहले छात्र संगठन और उसके बाद 1984 में राजनीतिक पार्टी के रूप में एमक्यूएम का उदय हुआ और अल्ताफ हुसैन मुहाजिरों के निर्विवाद नेता बनकर उभरे।
पूरे सिंध में महसूस की जाती उनकी आवाज
1988 के बाद से हर चुनाव में पूरे सिंध में अल्ताफ हुसैन की आवाज को शिद्दत के साथ महसूस किया जाता रहा है। यहां तक कि उनको पीर का दर्जा भी उनके समर्थकों ने दे दिया। इस बीच कराची में राजनीतिक हिंसाओं का दौर शुरू हुआ और 1992 में अल्ताफ हुसैन पाकिस्तान में अपनी जान को खतरा बताते हुए ब्रिटेन चले गए। 2002 में उनको ब्रिटिश नागरिकता मिल गई। पाकिस्तान में नहीं रहने के बावजूद उनकी सियासी हैसियत में कोई कमी नहीं आई। वह फोन और वीडियो संदेश से ही पार्टी को चलाते रहे, समर्थकों की उनमें आस्था बनी रही। परवेज मुशर्रफ के दौर में उनकी पार्टी सरकार में भागीदार भी थी, आज भी एमक्यूएम सिंध की दूसरी और पाकिस्तान की चौथी सबसे बड़ी पार्टी है। इस तरह 2016 तक अल्ताफ हुसैन पाकिस्तान की प्रमुख सियासी आवाजों में शुमार रहे।
लंदन में शरणार्थी
पाक से वो 1992 में लंदन चले गए और वहां राजनीतिक शरणार्थी बनकर जिंदगी काट रहे हैं। वहीं पर बैठकर वो MQM के फैसले ले रहे हैं। वहां रहने की वजह 1992 में पाकिस्तानी सरकार का ऑपरेशन क्लीन अप. यानी मिलिट्री भेजकर MQM का सफाया करना था। जिससे उस दौर में मचे सियासी भूचाल को खत्म करने की कोशिश की गई लेकिन इस ऑपरेशन के शुरू होने से ठीक एक महीने पहले अपनी जिंदगी पर मंडराते खतरे को देख अल्ताफ यूनाइटेड किंगडम (यूके) चले गए। अल्ताफ हुसैन ब्रिटेन में गुपचुप तरीके से नहीं रह रहे हैं। 2002 में एक क्लेर्किल मिस्टेक की वजह से उन्हें ब्रिटिश नागरिकता मिली। जून 2014 में मेट्रोपॉलिटन पुलिस लंदन में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में अल्ताफ को गिरफ्तार भी किया था लेकिन तीन दिन बाद ही रिहाई हो गई। जानकारी के अनुसार अल्ताफ हुसैन पर भ्रष्टाचार समेत लगभग 3576 केस दर्ज हैं।
भारत और पाकिस्तान की कड़वाहट दूर करने की कोशश करते रहे
अल्ताफ हुसैन खुले तौर पर हमेशा से भारत और पाकिस्तान की कड़वाहट दूर करने की कोशश करते रहे। अल्ताफ हुसैन की मदद और फंडिंग करने का आरोप भारत पर भी लगता रहा है. लेकिन MQM और भारत दोनों ही इसे खारिज करते आए हैं।
(MQM) एमक्यूएम को पाकिस्तान में कुचलने के प्रयास
पाकिस्तान में पिछले तीन दशकों से कराची से एक बुलंद आवाज उठा करती थी, सिंध से लेकर कराची तक इस आवाज की नुमाइंदगी करने वाली मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के प्रत्याशियों के लिए उनका हर फरमान पत्थर की लकीर की मानिंद होता था। पाकिस्तान की चौथी सबसे बड़ी पार्टी है एमक्यूएम, इस पार्टी के नेता है अल्ताफ हुसैन, दो दशक से भी ज्यादा वक्त से लंदन में स्व-निर्वासित जिंदगी गुजार रहे अल्ताफ हुसैन इस बार पाकिस्तान के चुनावों में अपना भाषण देने तक नहीं आ पाए। मुहाजिरों (भारत छोड़कर पाकिस्तान में बसने वाले उर्दू जुबान के लोग) की सबसे बुलंद आवाज अल्ताफ हुसैन की मानी जाती रही, उनको एमक्यूएम का पर्याय माना जाता रहा। उनकी बात का इतना जबरदस्त असर रहता था कि कराची में उनकी समानांतर सत्ता रही है। उनके कहने से शहर जागता, सोता या रोता। उनके कहने पर इस शहर में वोट पड़ते रहे हैं या चुनावों का बहिष्कार किया जाता।
कैसे खत्म होता गया राज
कराची में संगठित अपराध, हत्याओं के मामले बढ़ने के चलते 2013 में नवाज शरीफ सरकार ने एमक्यूएम के खिलाफ अभियान शुरू किया। कहा जाता है कि ये कार्रवाई वास्तव में एमक्यूएम को ध्यान में रखकर शुरू की गई। 2015 में एमक्यूएम के पार्टी हेडक्वार्टर नाइन जीरो पर पाकिस्तानी रेंजर्स ने दो बार रेड डाली। 2016 में इसको सील कर दिया गया और पार्टियों के सैकड़ों अन्य ऑफिसों को बंद कर दिया गया। 2015 में पाकिस्तान की आतंकवाद रोधी कोर्ट ने हत्या, हिंसा भड़काने और उकसाऊ भाषण देने के कई मामलों में 81 साल की सजा सुनाते हुए भगोड़ा घोषित कर दिया।
पाकिस्तान को दुनिया का कैंसर बताया
2016 में अल्ताफ हुसैन ने एक इंटरव्यू में पाकिस्तान को दुनिया का कैंसर बताया। उसके बाद एमक्यूएम के खिलाफ कार्रवाई तेज हो गई। पार्टी में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले फारूक सत्तार समेत तमाम पार्टी सांसदों और नेताओं को पकड़ लिया गया। महीनों इनको जेल में बंद रखा गया। हालांकि इस बयान के लिए अल्ताफ हुसैन ने माफी मांगी क्योंकि अपने कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई के चलते वह तनाव में थे इसका नतीजा ये हुआ कि अल्ताफ को घोषणा करनी पड़ी कि मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पार्टी के फैसले अब वह खुद नहीं करेंगे, उन्होंने फैसले लेने के अधिकार पार्टी की कोऑर्डिनेशन कमेटी को दे दिए।
सरकार की इन कार्रवाई का असर यह हुआ कि जब फारूक सत्तार जेल से रिहा हुए तो उन्होंने कहा कि अब पार्टी को लंदन से नहीं पाकिस्तान से संचालित किया जाना चाहिए। उसके बाद यह कहा गया कि सैन्य प्रतिष्ठान के इशारे पर एमक्यूएम में दो-फाड़ हो गया। फारूक सत्तार के धड़े वाला तबका एमक्यूएम-पाक कहलाया जाने लगा। इन सबके बावजूद एमक्यूएम और अल्ताफ हुसैन की आवाज को कुचलने के प्रयास पाकिस्तान में लगातार जारी रहे, इसी का नतीजा है कि 1988 से लगातार हर चुनाव में जिस अल्ताफ हुसैन की तूती बोलती थी, वह इस बार के चुनाव में भी खामोश है, वहीं अब लंदन में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।