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पाकिस्‍तान को बड़ा झटका, धरातल पर नहीं उतरा सऊदी अरब के साथ हुआ 20 अरब डालर का करार

पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) को बढ़ाने के प्रयासों में विफल रहे प्रधानमंत्री इमरान खान को सऊदी अरब से भी फिलहाल मायूसी ही हाथ लगी है। सऊदी अरब के साथ हुआ 20 अरब डालर का करार धरातल पर नहीं उतरा है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 03 Feb 2022 08:01 PM (IST)Updated: Thu, 03 Feb 2022 11:39 PM (IST)
Pak प्रधानमंत्री इमरान खान सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान

इस्लामाबाद, एएनआइ। पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) को बढ़ाने के प्रयासों में विफल रहे प्रधानमंत्री इमरान खान को सऊदी अरब से भी फिलहाल मायूसी ही हाथ लगी है। सऊदी अरब के साथ हुआ 20 अरब डालर का करार अभी धरातल पर नहीं उतरा है, जिससे पाकिस्तान को काफी उम्मीदें थीं। यह समझौता तब हुआ था, जब गत वर्ष सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने इस्लामाबाद का दौरा किया था।

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पाकिस्तान की विदेश नीति में स्थिरता-पारदर्शिता की कमी व अन्य कारणों से सऊदी की कंपनियां चिंतित

इस्लाम खबर के अनुसार, दीर्घकालिक निवेश के तहत 10 अरब डालर की लागत से बनने वाली सऊदी अरामको आयल रिफायनरी का काम भी अभी शुरू नहीं हुआ है, जो पाकिस्तान के लिए बहुप्रतीक्षित घोषणा थी। एफडीआइ में कमी से चिंतित इमरान खान ने अक्टूबर 2021 में सऊदी-पाकिस्तान इन्वेस्टमेंट फोरम में सऊदी कंपनियों और संस्थानों से ऊर्जा, निर्माण, लाजिस्टिक व परिवहन आदि क्षेत्रों में निवेश का आग्रह किया था। हालांकि, वे अपर्याप्त बुनियादी ढांचे (पानी, गैस, बिजली व यातायात), समुचित संस्थागत व्यवस्था न होने और भ्रष्टाचार के कारण पाकिस्तान में निवेश करने से विचलित हो गए। उन्हें विभाग से अनुमति मिलने और बैंकिंग सुविधा की उपलब्धता से जुड़ी चिंताएं भी थीं।

पाकिस्तान की विदेश नीति में स्थिरता व पारदर्शिता की कमी 

पाकिस्तानी अखबार ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सऊदी कंपनियां पाकिस्तान की विदेश नीति में स्थिरता व पारदर्शिता की कमी से भी चिंतित थीं। राजनीतिक दखल और इमरान सरकार के खिलाफ लगातार होते प्रदर्शनों ने भी सऊदी कंपनियों को निवेश के मुद्दे पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया। कुशल श्रम शक्ति की कमी भी पाकिस्तान के सामने निवेश की बड़ी बाधा है। उत्पादों की मार्केटिंग को लेकर देश की कंपनियां रूढि़वादी व पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं और नए दौर की मार्केटिंग तकनीक को अपनाने में अनिच्छुक दिखाई देती हैं।


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