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    दुनिया की जरूरत, चीन का प्रभाव और अमेरिका के आरोप... विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन 77 सालों में क्या-क्या देखा?

    Updated: Sun, 06 Apr 2025 06:52 PM (IST)

    विश्व स्वास्थ्य संगठन संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों और आपात स्थितियों के लिए प्रतिक्रियाओं का को-ऑर्डिनेट करती है। इसका मुख्यालय स्विटजरलैंड के जिनेवा में है। दुनिया में इसके छह क्षेत्रीय कार्यालय और 150 क्षेत्रीय कार्यालय हैं। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़ा अंतर-सरकारी स्वास्थ्य संगठन है। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इससे अलग कर दिया है।

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    संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की गई (फोटो: जागरण)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 18वीं के मध्य में ब्रिटेन से शुरू हुई औद्योगिक क्रांति धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गई। साल दर साल बीतते गए, लेकिन शायद किसी को अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि 19वीं सदी कई आश्चर्य समेटे इंतजार कर रही है।

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    19वीं का मध्य रहा होगा। दुनिया नये-नये इंडस्ट्रियलाइजेशन के दौर से गुजरी थी। लेकिन तभी प्लेग, हैजा और पीला बुखार जैसी महामारियों के के प्रकोप ने दुनिया को घेर लिया। इस घटना ने विश्व को झिंझोड़ दिया था। 1851 में फ्रांस की सरकार ने पेरिस में अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन का आयोजन किया।

    7 अप्रैल को हुई स्थापना

    इस समिट में दुनियाभर के डॉक्टरों, वैज्ञानिकों व राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लिया। 1851 से 1938 तक कुल 14 सम्मेलनों का आयोजन हुआ। इन सम्मेलनों में यह निष्कर्ष निकला कि दुनिया को एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय संगठन की जरूरत है, जो विशेष तौर पर स्वास्थ्य समस्याओं के लिए समर्पित हो।

    इन्हीं प्रयासों के क्रम में 7 अप्रैल 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की गई। स्थापना के समय विश्व स्वास्थ्य संगठन के की प्रमुख वास्तविक प्राथमिकताओं में मलेरिया, मातृ तथा शिशु स्वास्थ्य, ट्यूबरक्लोसिस, यौन रोग, न्यूट्रीशन तथा पर्यावरणीय स्वच्छता इत्यादि विषय सम्मिलित थे।

    अमेरिका ने क्यों किया किनारा?

    • विश्व स्वास्थ्य संगठन के संस्थापक सदस्य देशों में से एक अमेरिका भी था। अगर आंकड़ों को देखें, तो डब्ल्यूएचओ को सबसे अधिक फंड देने वाला देश भी अमेरिका ही था। केवल 2022-23 में अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ को 128 करोड़ डॉलर से ज्यादा दिए। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत करते ही इससे किनारा कर लिया।
    • अमेरिका का तर्क है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 के प्रबंधन में बदइंतजामी दिखाई। उसने डब्ल्यूएचओ पर चीन का राजनीतिक प्रभाव होने का भी आरोप लगाया। अब जाहिर तौर पर अमेरिका के हाथ खींच लेने से विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए बजट का संकट पैदा हो जाएगा।
    • हालांकि डब्ल्यूएचओ अभी भी चाहता है कि अमेरिका पर दबाव बनाकर उसे विश्व स्वास्थ्य संगठन में वापस लाया जाए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने सदस्य देशों से अमेरिका पर दबाव बनाने की अपील की है। बता दें कि टेड्रोस भी चीन के साथ अपने संबंधों को लेकर विवाद में रहे थे।

    कई बार विवादों में आया WHO

    ऐसा नहीं है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यप्रणाली पर कोरोना महामारी के वक्त ही सवाल उठे थे। अमेरिकी सरकार की वेबसाइट नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, 2009 में इंफ्लूएंजा और 2014 में इबोला के प्रकोप के वक्त भी विश्व स्वास्थ्य संगठन की क्षमताओं पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हुआ था।

    बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को फंडिंग दो तरह से मिलती है। एक असेस्ड कंट्रीब्यूशन और दूसरा वॉलेंटरी कंट्रीब्यूशन। असेस्ड कंट्रीब्यूशन यानी वो फंडिंग को विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य देश देते हैं। वॉलेंटरी कंट्रीब्यूशन यानी किसी विशेष प्रोग्राम के लिए मिला फंड। साल 2024-25 की बात करें, तो WHO के सबसे बड़े दानदाताओं में अमेरिका के बाद बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, गवी एलाएंस और यूरोपियन यूनियन शामिल है।

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