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Sudan Crisis: दुनिया के सबसे गरीब और हिंसा वाला देश सूडान, भारतीयों का क्या है कनेक्शन?

Sudan Crisis दक्षिण सूडान में भारतीय प्रवासी द्वारा साझा किए गए रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में दक्षिण सूडान में लगभग 600-700 भारतीय नागरिक हैं। कुछ का दक्षिण सूडान की राजधानी जुबा में बिजनेस है तो वहीं अन्य विभिन्न कंपनियों के लिए काम कर रहे हैं।

By Nidhi AvinashEdited By: Nidhi AvinashPublished: Wed, 26 Apr 2023 04:09 PM (IST)Updated: Wed, 26 Apr 2023 04:09 PM (IST)
Sudan Crisis: दुनिया के सबसे गरीब और हिंसा वाला देश सूडान, भारतीयों का क्या है कनेक्शन?

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Sudan Crisis: आजादी के बाद का अधिकत्तर समय सूडान का सैन्य शासन और गृह युद्ध के बीच संघर्ष करते हुए बीता है। 1 जनवरी, 1956 को यह देश आजाद हुआ और तब से अब तक यह देश लोकतंत्र की लड़ाई लड़ रहा है। अरबी भाषा में काले लोगों का देश कहा जाने वाला सूडान दुनिया का सबसे गरीब देश है।

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9 जुलाई, 2011 को सूडान से दक्षिण सूडान अलग हुआ और अपनी आजादी का उत्सव मनाया, लेकिन यह खुशी काफी कम दिनों की ही रही। यहां गृहयुद्ध ने दस्तक दी और लगभग चार हजार लोगों की जिंदगी का नामो-निशान मिट गया। हालात इतने खराब थे कि यहां के लोगों को अन्य देशों में शरण लेने पर मजबूर होना पड़ा। यहां की दो तिहाई आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनिसेफ ने भी चेतावनी दी थी कि दक्षिण सूडान अब तक के सबसे बुरे मानवीय संकट से जूझ रहा है।

क्या है अभी के हालात?

माना जा रहा है कि अप्रैल, 2019 में ओमर अल बशीर की सरकार गिरने के बाद से यहां के हालात बिगड़ते चले गए। इस समय सूडान के अर्धसैनिक बल 'रैपिड सपोर्ट फोर्स' यानी आरएसएफ और वहां की सेना के बीच लड़ाई चल रही है। इस गृह युद्ध के बीच न केवल सूडान के नागरिकों बल्कि तीन हजार भारतीयों की भी जिंदगी दांव पर लगी हुई हैं।

इस हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। सूडान का खार्तूम इस समय खतरों से भरा हुआ है। अभी सब के मन में यहीं सवाल है कि सूडान जो इतना गरीब देश हैं और जहां हिंसा हर समय दस्तक देती रहती है। वहां इतनी भारी संख्या में भारतीय की जनसंख्या क्यों है? सूडान में आखिर भारतीय क्या काम करते है?

भारतीयों को क्यों भाता है सूडान?

सूडान में अधिकत्तर भारतीय आयुर्वेदिक दवा बेचने का काम करते हैं। जड़ी-बूटियों से लेकर पेड़ पौधों से दवा बनाने का काम भारतीय बखूबी जानते है। इसी को देखते हुए कई भारतीय ज्यादा पैसे और रोजगार के लिए सूडान का रुख करते है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सूडान में कर्नाटक के हक्की-पक्की जनजाति समुदाय के कई लोग मौजूद है और आयुर्वेदिक दवाओं के उत्पादन को अफ्रीकी देशों में बेचते है। भारत और सूडान के बीच के अच्छे रिश्तों का ही नतीजा है कि भारतीयों की सूडान में साख है और इस देश के लोग भारतीयों पर बहुत भरोसा करते है।

मेडिकल साइंस पर सूडान को भरोसा

सूडान के कई लोग अपने इलाज के लिए भारत की यात्रा करते है। सूडान के लोगों को भारतीय मेडिकल साइंस से लेकर आयुर्वेदिक दवाओं पर काफी भरोसा है। जिस तरह से सूडान के हालात है, वहां की स्वास्थ्य प्रणाली काफी बदतर है। 2019 तक, सूडान में कुल 272 अस्पताल थे।

हैजा, हेपेटाइटिस, मेनिंगोकोकल मेनिन्जाइटिस, पीला बुखार से कई लोग वहां पीड़ित है। ऐसे में भारतीय आयुर्वेद दवाईयां, जड़ी बूटियां वहां के लोगों के लिए ईश्वर के वरदान जैसा है। जाहिर सी बात है कि आयुर्वेद की दवाओं के लिए न आपको अस्पताल की जरूरत है और दवाएँ भी घर बैठे मिल सकती हैं। यहीं एक बड़ा कारण हो सकता है कि भारतीय लोग सूडान जाते हैं। भारत के अलग-अलग राज्यों के कई लोग सूडान में रहते है।

किसी भारतीय का बिजनेस तो कोई करता कंपनियों में काम

दक्षिण सूडान में भारतीय प्रवासी द्वारा साझा किए गए रिपोर्ट (https://indembjuba.gov.in/indian-diaspora-south-sudan.php) के मुताबिक, वर्तमान में, दक्षिण सूडान में लगभग 600-700 भारतीय नागरिक हैं। कुछ का दक्षिण सूडान की राजधानी जुबा में बिजनेस है, तो वहीं अन्य विभिन्न कंपनियों के लिए काम कर रहे हैं। 

भारतीय, चिकित्सा शिविर और रक्तदान शिविर करते है आयोजित

कुछ भारतीय नागरिक दक्षिण सूडान में ईसाई मिशनरी संगठनों और गैर सरकारी संगठनों में भी काम करते हैं। इसके अलावा, लगभग 2,000 भारतीय सेना के शांति रक्षक कर्मी, 31 पुलिस अधिकारी और कुछ नागरिक अधिकारी UNMISS और UNPOL से जुड़े हुए हैं। जुबा में 2006 की शुरुआत में सबसे पहले होटल, बोरहोल कंपनियां, प्रिंटिंग प्रेस और डिपार्टमेंटल स्टोर खोलने वाले भारतीय ही थे। यहां भारतीय दक्षिण सूडानी समुदाय के लाभ के लिए, चिकित्सा शिविर और रक्तदान शिविर आयोजित करते हैं।


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