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    UNHRC में चीन विरोधी प्रस्‍ताव पर भारत क्‍यों रहा नदारद? क्‍या है इसके कूटनीतिक मायने- एक्‍सपर्ट व्‍यू

    By Ramesh MishraEdited By:
    Updated: Fri, 07 Oct 2022 07:57 PM (IST)

    UNHRC में चीन के साथ एलएसी पर तनाव के बाद भारत यूएनएचआरसी में अपने परंपरागत रुख पर कायम रहा। भारत ने अप्रत्‍यक्ष रूप से चीन को यह संदेश दिया है कि ड्रैगन को भी किसी देश के आंतरिक मामलों में हस्‍तक्षेप नहीं करना चाहिए।

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    UNHRC में अमेरिका के चीन विरोधी प्रस्‍ताव पर भारत क्‍यों रहा नदारद। एजेंसी।

    नई दिल्‍ली, जेएनएन। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में चीन के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव पर भारत मतदान से दूर रहा। भारत के इस फैसले को दुनिया बड़ी अचरज की निगाह से देख रही हैं। यह कहा जा रहा है कि चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में भारत ने एक तरह से बीजिंग की मदद की है। आखिर भारत के इस कदम के पीछे क्‍या है बड़ी कूटनीति। भारत ने चीन और अमेरिका को एक साथ क्‍या संदेश दिया। इस मामले में क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ।

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    UNHRC में भारत की विदेश नीत‍ि का लोहा

    विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि यूएनएचआरसी में भारत की विदेश नीत‍ि का लोहा पूरी दुनिया ने माना है। भारत ने एक बार फ‍िर चीन को सकारात्‍मक संदेश दिया है। भारत ने सिद्ध कर दिया है कि उसकी विदेश नीति अपने सिद्धांतों से विचलित नहीं होती है। चीन के साथ एलएसी पर तनाव के बाद भारत यूएनएचआरसी में अपने परंपरागत रुख पर कायम रहा। भारत ने अप्रत्‍यक्ष रूप से चीन को यह संदेश दिया है कि ड्रैगन को भी किसी देश के आंतरिक मामलों में हस्‍तक्षेप नहीं करना चाहिए। भारत लगातार कहता रहा है कि यूएनएचआरसी जैसे संगठन किसी देश को निशाना बनाए जाने का मंच नहीं बनने चाहिए।

    भारत ने अमेरिका व पश्चिमी देशों को दिया ये संदेश

    भारत ने अमेरिका व पश्चिमी देशों को यह संदेश दिया है कि मानवाधिकारों के नाम पर अब राजनीति नहीं चलेगी। यही वजह है कि चीन के शिनजियांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चर्चा की मांग वाले प्रस्ताव से भारत दूर रहा। अमेरिका व पश्चिमी देश मानवाधिकार के मुद्दे पर विकासशील देशों को घेरने की कोशिश करते रहे हैं। अमेरिका व पश्चिमी देश इसे विकासशील देशों के खिलाफ एक टूल के रूप में इस्तेमाल करते आए हैं। संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत चेन जु ने भी यही कहा कि आज चीन को निशाना बनाने की कोशिश की गई है, कल को किसी दूसरे विकासशील देश को निशाना बनाया जा सकता है। इसके जरिए भारत ने चीन को भी यह संदेश दिया है कि उसे भी कश्मीर जैसे भारत से जुड़े मसले पर किसी भी खुराफात से बाज आना चाहिए।

    अमेरिका को लगा जोर का झटका

    प्रो पंत का कहना है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र मानवाधिकार परिषद के इतिहास में यह दूसरा मौका था जब अमेरिका की ओर से लाया गया कोई प्रस्ताव खारिज हुआ है। इसे पश्चिमी देशों के लिए तगड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। वह भी तब जब प्रस्ताव की भाषा बहुत नरम रखी गई थी। उन्‍होंने कहा कि चीन के शिनजियांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर सिर्फ चर्चा की मांग की गई थी न कि किसी जांच टीम को भेजकर वहां की स्थिति की निगरानी की मांग की गई थी। अमेरिका व पश्चिमी देशों ने यही सोचकर यह प्रस्ताव लाया था कि इसको अधिकतर देशों का समर्थन मिलेगा। हालांकि, ऐसा नहीं हो सका।

    क्‍या है पूरा मामला

    यूएनएचआरसी में उइगर मुस्लिमों की स्थिति पर चीन को घेरने की अमेरिका व पश्चिमी देशों की कोशिशों को उस समय करारा झटका लगा, जब भारत व यूक्रेन समेत 11 देशों ने मतदान के समय अनुपस्थित रहकर चीन की परोक्ष तौर पर मदद कर दी। 47 सदस्यीय परिषद में इस प्रस्ताव का गिरना अमेरिका व पूरी पश्चिमी लाबी के लिए बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है। यूएनएचआरसी में अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा की तरफ से लाए गए प्रस्ताव के पक्ष में 17 और विरोध में 19 वोट पड़े।

    11 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। अमेरिका का सबसे करीबी रणनीतिक साझेदार भारत तो अनुपस्थित रहा ही है, यूक्रेन भी वोटिंग से गायब रहा। अमेरिका, ब्रिटेन व कनाडा इस समय रूस के खिलाफ यूक्रेन की मदद करने में जुटे हैं। यह प्रस्ताव चीन में मुस्लिमों की स्थिति की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए लाया गया, लेकिन पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कतर, यूएई, उज्बेकिस्तान, सूडान, सेनेगल ने इसका विरोध किया।

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