Jagran Trending | Sri Lanka Crisis: श्रीलंका में इस सियासी संकट से उबरने के क्या हैं विकल्प? गृहयुद्ध के मुहाने पर खड़ा पड़ोसी मुल्क- एक्सपर्ट व्यू
यह जानना जरूरी है कि इस आक्रोश को शांत करने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में क्या विकल्प है। खासकर श्रीलंका जैसे संसदीय शासन व्यवस्था में इस समस्या का क्या समाधान हो सकते हैं। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि श्रीलंका के इस संवैधानिक संकट से कैसे निपटा जा सकता है।

नई दिल्ली, जेएनएन। भारत के पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता के साथ एक बड़ा संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। इस समस्या से निपटना श्रीलंका और लोकतंत्र दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती है। खासकर तब जब जनता निर्वाचित सरकार के खिलाफ सड़कों पर निकल जाए और देश में गृह युद्ध जैसे हालात हो। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इस आक्रोश को शांत करने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में क्या विकल्प है। खासकर श्रीलंका जैसे संसदीय शासन व्यवस्था में इस समस्या का क्या समाधान हो सकते हैं। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि श्रीलंका के इस संवैधानिक संकट से कैसे निपटा जा सकता है। विशेषज्ञों का दावा है कि संसदीय व्यवस्था में जनआक्रोश को शांत करने के उपक्रम मौजूद है। आइए जानते हैं कि आखिर श्रीलंका में इस समस्या से कैसे निपट सकते हैं
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि श्रीलंका एक लोकतांत्रिक देश है। श्रीलंका में भारत की तरह संसदीय व्यवस्था है। ऐसे में जाहिर है कि इस संवैधानिक संकट का समाधान भी संसदीय व्यवस्था और वहां के हालात के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भले ही मौजूदा सरकार निर्वाचित हो लेकिन उसके प्रति लोगों में जबरदस्त आक्रोश है। श्रीलंका की इस दुर्दशा के लिए श्रीलंका की जनता मौजूदा सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है। ऐसे में यह देखना जरूरी है कि एक संसदीय व्यवस्था में इसके क्या-क्या विकल्प हो सकते हैं।
2- उन्होंने कहा कि श्रीलंका इस संवैधानिक संकट से उबरने के लिए एक रास्ता सर्वदलीय सरकार है। इससे संसदीय व्यवस्था के तहत जनता के आक्रोश को भी नरम किया जा सकता है। उन्होंने कहा इसके सभी राजनीतिक दलों को अपने मतभेदों को भुलाकर एक मंच पर आना होगा। यह भी हो सकता है कि प्रधानमंत्री पद का पद किसी राजनेता के बजाए टेकनोक्रेट या अर्थशास्त्री के हाथों में सौंपा जा सके, जो संवैधानिक दायरे में रहकर देश को आर्थिक संकट से उबार सके। इसके लिए जरूरी है कि हालात पर राजनीति करने के बजाए राजनीतिक दलों को देश हित के बारे में सोचना होगा। यह कदम देश के हित में होगा।
3- प्रो पंत ने कहा कि संसदीय व्यवस्था में जनता की अपनी पसंद की सरकार होती है, ऐसे में सर्वदलीय सरकार को सत्ता में आते ही आम चुनाव की तिथियों की घोषणा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह तय है कि देश के आर्थिक हालात को देखते हुए चुनाव जल्द करा पाना मुश्किल काम है, लेकिन चुनाव की तिथि घोषित करने से जनता के आक्रोश दर में कमी आएगी। ऐसे हालात में सर्वदलीय सरकार को जनता को यह विश्वास दिलाना होगा कि देश में लोकतंत्र कायम है और सरकार जनता के प्रति पूरी तरह से जवाबदेह है।
4- उन्होंने कहा कि श्रीलंका में सर्वदलीय सरकार ही इस समस्या का बेहतर समाधान है। यही संसदीय व्यवस्था की भी मांग है। उन्होंने कहा कि जनता के आक्रोश को कम करने के लिए सत्ता में बदलाव जरूरी है। प्रो पंत ने कहा कि और यह काम चुनाव के जरिए ही हो सकता है। यह जरूरी है कि देश में एक लोकप्रिय सरकार का गठन हो और वह सरकार जनता के प्रति पूरी तरह से जवाबदेह हो। लोकतंत्र में चुनाव के जरिए जनता अपने आक्रोश को निकाल सकती है। यही सबसे बेहतर तरीका है।
5- उन्होंने कहा कि मौजूदा नेतृत्व को बहुत सूझबूझ से फैसले लेने होंगे। अगर लोकतांत्रिक तरीके से इस समस्या का समाधान नहीं निकला तो इस देश में सैन्य शासन का विकल्प खुल जाएगा। दक्षिण एशिया में लोकतांत्रिक मूल्यों का संकट खड़ा हो जाएगा। अगर श्रीलंका में सैन्य शासन का विकल्प सामने आया तो यह उसके लिए शुभ नहीं होगा। इस विकल्प को ठीक नहीं माना जा सकता है। पाकिस्तान, म्यांमार और थाईलैंड इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसलिए लोकशाही को जीवित रखने के लिए श्रीलंका में राजनीतिक दलों को मतभेदों को भुलाकर अपनी जिम्मेदारियों के साथ काम करना होगा। यह देश के लिए एक आपात स्थिति है।
रानिल विक्रासिंघे के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी
मौजूदा समय में रानिल विक्रासिंघे के ऊपर यह दारोमदार है कि वह देश को किस दिशा में लेकर जाते हैं। उनका हर फैसला वहां के लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है। गौरतलब है कि श्रीलंका में राजपक्षे ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को कार्यकारी राष्ट्रपति नियुक्त किया है। हालांकि, यह स्थाई व्यवस्था नहीं हो सकती है। इसे एक विकल्प के रूप में भी देखा जा सकता है। उनका इस पद पर बने रहना सीमित समय के लिए सही साबित हो सकता है, लेकिन इसका एक पक्ष यह भी है अगर वो सत्ता में रहने के लिए कोई भी बड़ा आर्थिक कदम नहीं उठाएंगे। अगर वह रीफार्म करने से बचेंगे तो देश में इसके दूरगामी परिणाम होंगे। ऐसा होने पर स्थिति और बिगड़ सकती है। मौजूदा सरकार को एक दृढ़ राजीनतिक इच्दा शक्ति के साथ इस समस्या का समाधान करना होगा।
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