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    Big Strategy of Quad: क्‍या चीन की दादागीरी पर लगेगा अंकुश? आखिर क्‍या है क्‍वाड की बड़ी रणनीति - जानें एक्‍सपर्ट व्‍यू

    By Ramesh MishraEdited By:
    Updated: Fri, 27 May 2022 08:10 PM (IST)

    Big Strategy of Quad अमेरिका कई बार कह चुका था कि चीनी आक्रमकता से एक नए शीत युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। क्‍वाड के गठन के बाद ऐसे सवाल क्‍यों उठता है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रमकता का अमेरिका और क्‍वाड किस तरह से निपटते हैं।

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    या चीन की दादागीरी पर लगेगा अंकुश? आखिर क्‍या है क्‍वाड की बड़ी रणनीति। एजेंसी।

    नई दिल्‍ली, जेएनएन। Big Strategy of Quad: क्‍वाड के गठन के बाद से यह सवाल उठने लगे थे कि क्‍या इस संगठन का मकसद चीन की आक्रमकता पर अंकुश लगाने के लिए है। उस वक्‍त चीन ने भी यह सवाल उठाया था कि आखिर इसका गठन क्‍यों किया गया। यह सवाल तब और खास हो गया जब क्‍वाड के गठन में अमेरिका ने अग्रणी भूमिका निभाई। खास बात यह है कि इसका गठन ऐसे वक्‍त किया गया, जब चीन और अमेरिका के बीच तनाव चरम पर था। अमेरिका कई बार कह चुका था कि चीन की आक्रमकता से एक नए शीत युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। आखिर क्‍वाड के गठन के बाद ऐसे सवाल क्‍यों उठे? हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रमकता से अमेरिका और क्‍वाड किस तरह से निपटेंगे? इसमें भारत की क्‍या भूमिका होगी?

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    1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते प्रभुत्‍व की जंग ने इस क्षेत्र में हलचल पैदा कर दी है। यह जल क्षेत्र सामरिक और व्‍यापार‍िक दोनों के लिहाज से बेहद उपयोगी है। यह विशाल जल क्षेत्र भारत के दक्षिण से आस्‍ट्रेलिया तक फैला हुआ है। दो समंदर में दबदबे के लिए चीन और अमेरिका के बीच अब जोर आजमाइश शुरू हो गई है। उधर, हिंद महासागर क्षेत्र में भारत भी सबसे बड़ा प्लेयर है। ऐसे में भारत को साथ लेकर अमेरिका ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक नई पहल की है। इसमें अमेरिका के साथ अन्‍य 12 दोस्त साथ आए हैं। हालांकि, कुछ ऐसे देश भी हैं जो इस क्षेत्र में होने के बाद भी चीन के साथ खड़े दिख रहे हैं। जापान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की मौजूदगी में इस महत्वपूर्ण हिंद-प्रशांत की असली पिक्चर साफ हो गई है।

    2- उन्‍होंने कहा कि भारत समेत हिंद-प्रशांत क्षेत्र के कुल 12 देश अमेरिका के इस मुहिम में शामिल हो गए हैं। इस क्षेत्र में चीन की दादागीरी पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। क्‍वाड के लिए जापान में जुटे दुनिया के दिग्गज नेताओं ने इंडो-पैसिफिक इकोनामिक फ्रेमवर्क तैयार किया है। हालांकि, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का कहना है कि इस फ्रेमवर्क का मकसद समान विचार वाले देशों के बीच स्वच्छ ऊर्जा, आपूर्ति श्रृंखला और डिजिटल कारोबार जैसे क्षेत्रों में सहयोग को गहरा बनाना है। यह सीधे तौर पर अमेरिका की पहल है। ऐसे में ‘हिंद-प्रशांत की समृद्धि के लिए आर्थिक रूपरेखा’ को क्षेत्र में चीन की आक्रामक कारोबारी रणनीति का मुकाबला करने के अमेरिकी प्रयासों का हिस्सा माना जा रहा है।

    3- अमेरिका के इस मिशन में 12 देश अमेरिका के साथ खड़े हैं। सात आसियान देश इस मुहिम में शामिल हुए हैं, लेकिन कंबोडिया, लाओस जैसे देश इसमें शामिल नहीं है। इन देशों को चीन का करीबी माना जाता है। अमेरिका ने फिलहाल ताइवान को इससे से दूर रखा है। मुहिम से जुड़ने वाले देशों में भारत, आस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलिपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम हैं। उधर, भारत का कहना है कि इसके माध्यम से सदस्य देशों के बीच आर्थिक गठजोड़ मजबूत बनाने पर जोर दिया जाएगा। इसका उद्देश्य हिंद प्रशांत में आर्थिक खुशहाली, निष्पक्षता, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है।

    चीन को मिलेगी बड़ी चुनौती

    अमेरिका का अलग समूह बनाना वास्तव में सीधे तौर पर चीन को चुनौती है। दरअसल, चीन ने इस क्षेत्र में अपनी अलग ट्रेड डील कर रखी है, जिसमें 15 सदस्य देश शामिल हैं। इसे रीजनल कंप्रेहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप कहा जाता है। इसमें जापान और दक्षिण कोरिया और 10 एशियाई देश शामिल हैं। विश्लेषकों ने पहले कहा था कि आरसीईपी हिंद-प्रशांत में अमेरिका की आर्थिक भूमिका को कम करेगा। अब अमेरिकी कामर्स सेक्रेट्री गिना रायमोंडो ने कहा है कि आइपीइएफ क्षेत्र में अमेरिकी आर्थिक नेतृत्व को बहाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो देशों को चीन के अप्रोच का एक विकल्प प्रदान करेगा।

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