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इतना विशाल और इतना चमकीला सुपरनोवा आज तक नहीं खोजा गया, ये है अदभुत

वैज्ञानिकों ने इतिहास का सबसे चमकीला और सबसे विशाल सुपरनोवा खोजा है। ये अब तक खोजे गए विशाल सुपरनोवा से भी दस गुणा शक्तिशाली है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 16 Apr 2020 04:18 PM (IST)Updated: Thu, 16 Apr 2020 04:32 PM (IST)
इतना विशाल और इतना चमकीला सुपरनोवा आज तक नहीं खोजा गया, ये है अदभुत
इतना विशाल और इतना चमकीला सुपरनोवा आज तक नहीं खोजा गया, ये है अदभुत

वाशिंगटन। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड में अब तक खोजे गए सुपरनोवा से भी 10 गुना अधिक शक्तिशाली सुपरनोवा को खोजा है। वैज्ञानिकों की मानें तो यह न केवल उससे करीब 500 गुना ज्यादा चमकदार है बल्कि अधिक शक्तिशाली भी है। नासा और ईएसए के मुताबिक वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सुपरनोवा दो विशाल तारों के आपस में टकरा कर एक हो जाने के दौरान बना है। ब्रिटेन और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने इसका खुलासा किया है। उनकी ये खोज नेचर एस्ट्रोनॉमी के पीयर रिव्यू जर्नल में प्रकाशित हुई है। इस रिसर्च पेपर में उन्‍होंने इस नई खोज से जुड़ी कई सारी बातों को बताया है। बर्मिंघम यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड-स्मिथसोनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स ने इस खोज को SN2016aps नाम दिया है। इस शोधकर्ताओं में से एक इडो बर्गर ने इसे इसके आकार और चमक के अलावा भी कई दूसरे मायनों में भी बेहद खास बताया है।

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आपको बता दें कि आमतौर पर ऐसे सुपरनोवा अपनी कुल ऊर्जा का केवल एक फीसदी दिखने वाले प्रकाश कुछ दूरी तक ही दिखाई देता है। लेकिन अब खोजे गए SN2016apsके साथ ऐसा नहीं है। इससे कहीं बड़ा हिस्सा इस प्रकाश के रूप में निकालता है। वैज्ञानिकों का अनुमाना है कि इस सुपरनोवा की ऊर्जा 200 ट्रिलियन ट्रिलियन गीगाटन टीएनटी के विस्फोट के बराबर होगी।

वैज्ञानिकों को इसकी खोज के दौरान ही इस बता का भी पता चला कि इस अत्‍यधिक ऊर्जा वाले सुपरनोवा के आसपास बनें बादलों में हाइड्रोजन की मात्रा काफी ज्‍यादा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इसकी वजह इस सुपरनोवा का निर्माण है जो सूर्य जैसे दो तारों के आपस में मिल जाने के कारण हुआ है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अब तक ऐसी घटना का जिक्र केवल सैद्धांतिक तौर पर ही होता आया था लेकिन पहली बार ऐसा कुछ होने का प्रमाण मिला है। इस खोज से उत्‍साहित शोधकर्ताओं का मानना है कि भविष्‍य में इसी तरह के दूसरे विशाल और चमकीले सुपरनोवा का भी पता जरूर चलेगा। इससे दुनिया को ये समझने में मदद मिलेगी कि करोड़ों या अरबों वर्ष पहले हमारा ब्रह्मांड और उसका वातावरण कैसा था।

आपको बता दें कि जब कोई तारा अपनी आयु पूरी कर लेता है उसकी ऊर्जा उसमें से बाहर निकल जाती है। सामान्‍य भाषा में इसको तारों का टूटना कहा जाता है। लेकिन वैज्ञानिकों की भाषा में इसको ही सुपरनोवा कहा जाता है। ऐसे ही सुपरनोवा से नए तारों का जन्‍म भी होता है। सुपरनोवा की सबसे बड़ी खासियत ये भी होती है कि इस दौरान निकलने वाली ऊर्जा सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा से भी कहीं अधिक होती है। इसकी की ऊर्जा इतनी शक्तिशाली होती है कि उसके आगे हमारी धरती की आकाशगंगा कई हफ्तों तक फीकी पड़ सकती है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि आमतौर पर सुपरनोवा के निर्माण में व्हाइट ड्वार्फ की अहम भूमिका होती है जिसके एक चम्मच द्रव्य का वजन भी करीब 10 टन तक हो सकता है। ज्यादातर व्हाइट ड्वार्फ गर्म होते होते हैं और अचानक गायब हो जाते हैं वहीं कुछ व्हाइट ड्वार्फ दूसरे तारों से मिल कर सुपरनोवा का निर्माण करते हैं। इस बार वैज्ञानिकों को जिस विशाल और अदभुत सुपरनोवा के दर्शन हुए हैं वह व्हाइट ड्वार्फ तारे से नहीं टकराया बल्कि दो तारे ही आपस में टकराए हैं।


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