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थाईलैंड रेस्क्यूः बच्चों के लिए कोच बना 'भगवान', ऐसे बचाई 18 दिनों तक जान

18 दिनों तक बच्चों का हौसला बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं था लेकिन कोच की एक 'खासियत' ने इसे मुकमल अंजाम तक पहुंचाया।

By Vikas JangraEdited By: Published: Tue, 10 Jul 2018 06:59 PM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 07:55 AM (IST)
थाईलैंड रेस्क्यूः बच्चों के लिए कोच बना 'भगवान', ऐसे बचाई 18 दिनों तक जान
थाईलैंड रेस्क्यूः बच्चों के लिए कोच बना 'भगवान', ऐसे बचाई 18 दिनों तक जान

नई दिल्ली [जेएनएन]।  करीब दो हफ्तों की जद्दोजहद और लंबे रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद थाइलैंड की गुफा से कोच समेत सभी बच्चे सुरक्षित बाहर निकाल लिए गए हैं। 18 दिन बड़ा लंबा समय होता है, खासकर जब मुसीबत में फंसे हों तो लेकिन बच्चों ने ये कर दिखाया। बगैर हौसला खोए जिंदा भी रहे और सुरक्षित बाहर भी निकल आए। हालांकि, इस ऑपरेशन में एक गोताखोर अवश्य शहीद हो गया। 

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18 दिन तक गुफा में बच्चों का जिंदा रहना किसी चमत्कार से कम नही हैं। इसमें कोच की भूमिका बड़ी अहम है। कोच इन बच्चों के लिए भगवान साबित हुआ। उसने ही दिन-रात बच्चों का हौसला बनाए रखा और उन्हें विश्वास दिलाया कि सब जिंदा बाहर निकलेंगे। हर कोई जानना चाहता है कि आखिर कोच में इतनी ऊर्जा और हौसला कहां से आया। तो हम आपको खुलासा कर देते हैं।

कोच के साथ सभी बच्चे।

दरअसल, बच्चों के साथ गुफा में फंस गया कोच पहले बौद्ध भिक्षु रहा है। उसने अपने आध्यात्मिक ज्ञान का इस्तेमाल बच्चों का हौसला बनाए रखना और उन्हें शांत रखने के लिए किया। जिससे कि करीब 18 दिनों तक बच्चे जिंदा रहना संभव हो पाया।

ऐसे फंस गए थे बच्चे
उत्तरी थाईलैंड में स्थित एक गुफा को अंदर से देखने की चाहत इन 12 बच्चों और उनके कोच को रोमांचित कर रही थी। वो 23 जून की शाम थी। फुटबॉल का अभ्यास करने के बाद 12 बच्चे अपने कोच के साथ लौट रहे थे। अभ्यास के बाद सभी गुफा के अंदर दाखिल हुए, लेकिन अगले पल उनके साथ क्या होने वाला है इसका उन्हें जरा भी आभास नहीं था। बाहर आई भारी बारिश के कारण गुफा में बाढ़ आ गई और सब के सब अंदर फंस गए। 

ऑपरेशन की टाइमलाइन
23 जून: 11 से 16 साल के 12 बच्चे और उनका कोच (25) उत्तरी थाइलैंड की थाम लुआंग गुफा में घुसे और वहीं फंस गए। शाम को एक बच्चे की मां ने बेटे के लापता होने की रिपोर्ट की। स्थानीय अधिकारियों को बच्चों की साइकिलें और जूते गुफा के प्रवेश द्वार पर मिले।

24 जून: पार्क अधिकारियों को पैरों के निशान मिले। माना गया वो बच्चों के हैं।

25 जून: बच्चों की तलाश में नेवी सील के गोताखोर गुफा में घुसे।

26 जून: गोताखोर कई किमी अंदर एक टी-जंक्शन तक पहुंचे। लेकिन तेज बहाव की वजह से लौटने को मजबूर हुए।

27 जून: अमेरिका के 30 नौसेना कर्मी और तीन ब्रिटिश विशेषज्ञ गोताखोर भी गुफा में पहुंचे। तेज बहाव की वजह से उन्हें भी पीछे हटना पड़ा।

28 जून: बारिश के कारण अभियान रुका। गुफा से पानी निकालने के लिए पंप लगाए गए।

30 जून: बारिश रुकने पर गोताखोर गुफा में कुछ और अंदर तक घुसने में सफल।

01 जुलाई: गुफा के अंदर ऑपरेटिंग बेस बनाया। सैकड़ों एयर टैंक और अन्य चीजें अंदर पहुंचाईं।

2 जुलाई: ब्रिटिश गोताखोरों ने गुफा के अंदर पट्टाया बीच से 400 मीटर अंदर बच्चों और उनके कोच को जीवित पाया।

3 जुलाई: बच्चों तक खाद्य पदार्थ, दवाएं और उच्च कैलोरी वाले जेल पहुंचाए गए।

4 जुलाई: बच्चों को गोताखोरी के मास्क और सांस लेने के उपकरणों का प्रशिक्षण देना प्रारंभ।

5 जुलाई: पंछियों के घोंसले एकत्रित करने वालों के एक दल ने पहाड़ के ऊपर गुफा के अंदर जाने का वैकल्पिक रास्ता खोजने की कोशिश की।

6 जुलाई : बच्चों तक एयरलाइन स्थापित करने की कोशिश में एक गोताखोर की मृत्यु।

7 जुलाई : गुफा में से एक संदेश भेज बच्चों के कोच ने अभिभावकों से माफी मांगी।

8 जुलाईः पहली बार चार बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया

9 जुलाईः चार और बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया

10 जुलाईः बाकी बचे 4 बच्चों और कोच को भी सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। ऑपरेशन पूरा। 


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