बैक्टीरिया से मुकाबले के लिए मिला नया हथियार, कम दुष्प्रभाव वाले एंटीबायोटिक बनाने में मिलेगी मदद
बैक्टीरिया का एंटीबायोटिक प्रतिरोधी होना कई रोगों के इलाज में जटिलताएं उत्पन्न कर रहा है। इसी कारण पिछले 50 वर्षो में विकसित कई प्रकार की दवाएं अपना पूरा असर नहीं दिखा पा रही हैं। ऐसे में एंटीबैक्टीरियल मालीक्यूल्स की खोज हुई है। कम दुष्प्रभाव वाले एंटीबायोटिक बनाने में मदद मिलेगी।

स्टाकहोम (स्वीडन), एएनआइ। बैक्टीरिया का एंटीबायोटिक प्रतिरोधी होना कई रोगों के इलाज में जटिलताएं उत्पन्न कर रहा है। इसी कारण पिछले 50 वर्षो में विकसित कई प्रकार की दवाएं अपना पूरा असर नहीं दिखा पा रही हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए कार्लोनिस्का इंस्टीट्यूट, उमिया यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी आफ बान के विज्ञानियों ने मालीक्यूल का एक ऐसा नया ग्रुप खोजा है, जिसमें कई एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया को मारने (एंटीबैक्टीरियल) के गुण हैं। इस खोज से न्यूनतम दुष्प्रभावों वाले प्रभावी एंटीबायोटिक्स विकसित करने में मदद मिल सकती है। यह शोध वैज्ञानिक पत्रिका 'पीएनएएस' में प्रकाशित हुआ है।
बता दें कि बैक्टीरिया जनित रोगों के इलाज में बैक्टीरिया का एंटीबायोटिक प्रतिरोधी होते जाना एक गंभीर संकट बनता जा रहा है। ऐसे में नए एंटीबैक्टीरियल पदार्थो की खोज एक बड़ी जरूरत बन गई है। रोगों के इलाज में इस्तेमाल किए जा रहे अधिकांश एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया की सुरक्षा कोशिका दीवार बनाने की क्षमता को बाधित करने का काम करता है, जिससे बैक्टीरिया का विखंडन शुरू हो जाता है। इसके अलावा ज्ञात पेनिसिलिन, जो एंजाइम को दीवार बनाने से रोकता है, डेप्टोमाइसिन जैसे नए एंटीबायोटिक्स या हाल ही में विकसित टेक्सोबैक्टिन लिपिड-2 जैसे विशिष्ट मालीक्यूल को बांधते हैं।
कोशिका दीवार तैयार करने के लिए सभी बैक्टीरिया को लिपिड-2 की जरूरत होती है। एंटीबायोटिक्स, जो इस कोशिका दीवार के बिल्डिंग ब्लाक से जुड़ते हैं, आमतौर पर बहुत बड़े और जटिल मालीक्यूल्स होते हैं, इसलिए रासायनिक तरीकों से उसमें बदलाव करना बहुत कठिन होता है। ये मालीक्यूल्स रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया के एक ग्रुप के प्रति निष्कि्रय भी होते हैं। यह एक अतिरिक्त भित्ति या बाहरी झिल्ली से घिरे होते हैं, जो एंटीबैक्टीरियल पदार्थो को अंदर घुसने से रोकते हैं।
कार्लोनिस्का इंस्टीट्यूट में डिपार्टमेंट आफ माइक्रोबायोलाजी, ट्यूमर एंड सेल बायोलाजी के प्रोफेसर बिरगिट्टा हेनरिक्स नार्मार्क बताते हैं कि इसलिए, नए एंटीबायोटिक्स में लिपिड-2 को सबसे ज्यादा निशाना बनाने की कोशिश होती है। हमने ऐसे पहले सूक्ष्म एंटीबैक्टीरियल कंपाउंड की पहचान की है, जो लिपिड मालीक्यूल्स को बांधने का काम करता है। हमने अपने अध्ययन में पाया कि म्यूटेंट (उत्परिवर्तित) बैक्टीरिया में भी इसका प्रतिरोध नहीं होता है। यह बड़ा ही उत्साहजनक है।
स्वीडन के कार्लोनिस्का इंस्टीट्यूट और उमिया यूनिवर्सिटी में किए गए इस शोध में विज्ञानियों ने न्यूमोनिया रोग पैदा करने वाले न्यूमोकोकी पर बड़ी संख्या में केमिकल कंपाउड का प्रयोग किया। इस तरीके से चुने गए कुछ सक्रिय कंपाउंड में से टीएचसीजेड ग्रुप के मालीक्यूल्स में विशिष्टता पाई गई कि यह लिपिड-2 के साथ चिपक कर बैक्टीरिया को कोशिकीय दीवार बनाने से रोकता है। ये मालीक्यूल्स शुगर कैप्सूल के निर्माण को भी रोकता है, जिसकी जरूरत न्यूमोकोकी को इम्यून सिस्टम से बचकर रोग पैदा करने के लिए होती है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस सूक्ष्म मालीक्यूल की खासियत यह है कि उसे रासायनिक तौर पर बदला भी जा सकता है। इसलिए, उम्मीद की जा रही है कि इसके जरिये टीएचसीजेड को बदला जा सकता है, जिससे एंटीबैक्टीरियल प्रभाव बढ़ जाएगा और मानव कोशिकाओं पर उसका दुष्प्रभाव भी कम होगा।
लैबोरेटरी में किए गए प्रयोगों में पाया गया है कि टीएचसीजेड- एंटीबायोटिक प्रतिरोधी कई बैक्टीरिया पर प्रभावी रहा है। इस तरह का प्रयोग मेथिसिलिन-रेसिस्टेंट स्टैफीलोकोकी (एमआरएसए), वैंकोमाइसिन-रेसिस्टेंट एंटेरोकोकी (वीआरई) तथा पेनिसिलिन-रेसिस्टेंट न्यूमोकोकी (पीएनएसपी) जैसे बैक्टीरिया पर हुआ है।
गानरीअ (सूजाक) पैदा करने वाले गोनोकोकी तथा टीबी के कारक माइकोबैक्टीरिया के खिलाफ भी यह प्रभावी पाया गया है। प्रयोग के दौरान ऐसा कोई बैक्टीरिया नहीं मिला, जो टीएचसीजेड के प्रति रेसिस्टेंट विकसित किया हो। शोधकर्ताओं का कहना है कि अब वे इस बात की कोशिश में लगे हैं कि कुछ ऐसा किया जा सके ताकि टीएचसीजेड मालीक्यूल मल्टी रेसिस्टेंट बैक्टीरिया की बाहरी कोशिकीय झिल्ली को भी भेद सके।
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