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    श्रीलंका में दिसानायके की पार्टी की प्रचंड जीत के मायने, कैसे रहेंगे भारत के साथ रिश्ते? 1987 में कर चुकी विरोध

    Updated: Fri, 15 Nov 2024 10:02 PM (IST)

    Anura Kumara Dissanayake 21 सितंबर को श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाले अनुरा कुमारा दिसानायके के गठबंधन ने आम चुनाव में तहलका मचा दिया है। इस गठबंधन को दो तिहाई बहुमत मिला है। श्रीलंका के संसदीय चुनावों में कई सियासी परिवारों का सफाया हो गया है। दिसानायके के गठबंधन नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) को 225 में से 159 सीटों पर जीत मिली।

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    श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके। ( फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रीलंका के आम चुनाव में राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके के नेतृत्व वाले नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) गठबंधन को दो तिहाई बहुमत मिला है। यह श्रीलंका के राजनीतिक इतिहास की सबसे बड़ी जीत में से एक है। एनपीपी को कुल 225 संसदीय सीटों में से 159 पर जीत मिली है। वहीं राजपक्षे परिवार की पार्टी पोदुजना पेरामुना पार्टी का लगभग सफाया हो गया है। अनुरा दिसानायके का संबंध वामपंथी विचारधारा से है। भारत के साथ उनकी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के संबंध जटिलता से भरे हैं।

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    भारत के साथ कैसे रिश्ते चाहते हैं दिसानायके?

    अनुरा कुमारा दिसानायके की पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) वामपंथी विचारधारा वाली पार्टी है। वैचारिक रूप से जेवीपी ने भारत से दूरी बनाए रखी। हालांकि राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद दिसानायके ने भारत के साथ काम करने की इच्छा व्यक्त की थी। अनुरा दिसानायके को चीन का करीबी माना जाता है। मगर उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत और चीन दोनों दोस्त हैं। मैं श्रीलंका में जारी दबदबे की लड़ाई में फंसना नहीं चाहता हूं। इस होड़ में हम किसी भी देश का साथ नहीं देंगे। भारत और चीन के बीच हम सैंडविच नहीं बनना चाहते हैं।

    जब भारत का किया विरोध

    साल 1987 में भारत और श्रीलंका के बीच समझौता हुआ था। इस समझौते पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के उस वक्त के राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने ने हस्ताक्षर किए थे। मगर अनुरा कुमार दिसानायके की पार्टी ने उस वक्त भारत का विरोध किया था। हालांकि श्रीलंका सरकार ने इन विरोध प्रदर्शनों को दबा दिया था।

    राजपक्षे परिवार की पार्टी धराशायी, विक्रमसिंघे की NDF पांच सीटों पर सिमटी

    शुक्रवार को श्रीलंका के संसदीय चुनाव के परिणाणों की घोषणा चुनाव आयोग ने की। सबसे अधिक 159 सीटों पर एनपीपी गठबंधन ने जीत दर्ज की। राजपक्षे परिवार की पार्टी पोदुजना पेरामुना को सिर्फ तीन सीटों पर कामयाबी मिली। पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की समर्थन वाली न्यू डेमोक्रेटिक फ्रंट ने 5 सीटों पर कब्जा जमाया। विपक्ष के नेता सजीथ प्रेमदासा की समागी जन बालवेगया पार्टी के खाते में 40 सीटें आईं।

    भारत ने खुलकर की थी मदद

    साल 2022 में श्रीलंका को विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी की वजह से अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगी। इसका असर यह हुआ कि पूरे देश में जनाक्रोश फैल गया। लोगों के विद्रोह की वजह से तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। उस वक्त आर्थिक संकट से उबरने में श्रीलंका की भारत ने दिल खोलकर मदद की थी। मगर मौजूदा राष्ट्रपति की पार्टी का नजारा भारत के परिप्रेक्ष्य में अलग हैं।

    55 वर्षीय अनुरा कुमार दिसानायके ने 21 सितंबर को श्रीलंका के राष्ट्रपति का चुनाव जीता था। उस वक्त दिसानायके को कुल 42 फीसदी मत मिले थे। मगर आम चुनाव में उनके गठबंधन को लगभग 62 प्रतिशत मत मिले हैं। पिछले आम चुनाव में अनुरा के गठबंधन के पास सिर्फ तीन संसदीय सीटें थीं।

    दिसानायके को मिला तमिलों का साथ

    अनुरा कुमार दिसानायके के गठबंधन को जाफना में प्रचंड जीत मिली है। यह तमिल अल्पसंख्यकों का गढ़ है। खास बात यह है कि यहां तमिल पार्टियों का दबदबा रहता था। मगर इस चुनाव में अनुरा के गठबंधन को भारी जनादेश मिला। इसे श्रीलंका के राजनीतिक परिदृश्य में बढ़े सियासी बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। श्रीलंका में सिंहली बहुल हैं। तमिल अल्पसंख्यक में आते हैं। तमिलों का लंबे समय से आरोप है कि सिंहली नेताओं की सरकारें उन्हें हाशिए पर रखती है। 1983 से 2009 तक श्रीलंका गृह युद्ध की चपेट में रहा है। जाफना गृह युद्ध का गढ़ था।

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