नरसंहार में खोया पूरा परिवार, भारत में शरण और मृत्युदंड... कैसे शेख हसीना बनीं सबसे पावरफुल महिला?
शेख हसीना का जीवन त्रासदी और दृढ़ संकल्प का मिश्रण है। 1975 में परिवार खोने के बाद, उन्होंने भारत में शरण ली। 1981 में बांग्लादेश लौटकर अवामी लीग की अध्यक्ष बनीं। वह बांग्लादेश की सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली प्रधानमंत्री हैं, जिनके नेतृत्व में देश ने विकास किया है। हालांकि, उनके शासनकाल में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप भी लगे हैं।
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शेख हसीना बांग्लादेश की पूर्व पीएम भारत में निर्वासन (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और अवामी लीग नेता शेख हसीना को ढाका की अदालतने मानवता के खिलाफ अपराधों में मौत की सजा सुनाई है। 78 वर्षीय हसीना इस समय भारत में निर्वासन में हैं और उन्होंने फैसले को नकली मुकदमा बताया है। अदालक ने कहा कि जुलाई आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों की हत्या के आदेश देने और उनकी सुरक्षा न करने के लिए हसीना जिम्मेदार हैं।
1975 में जब आधी रात को एक खूनी सैन्य तख्तापलट हुआ तो शेख हसीना जर्मनी में थीं। उस समय उनके पिता और बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपति मुजीबुर रहमान, उनकी मां, तीनों भाई और दो भाभियों की ढाका स्थित घर में हत्या कर दी गई थी। कुल 36 लोग मारे गए थे। इस नरसंहार से बची हसीना परिवार के साथ भारत आईं और कई साल तक यहीं रहीं।
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कब बनीं प्रधानमंत्री?
इसके बाद 1981 में भारत में रहते हुए वे अवामी लीग की अध्यक्ष चुनी गईं। 1996 में वे पहली बार प्रधानमंत्री बनीं, फिर 2009 में दोबारा सत्ता में लौटकर लगातार 2024 तक देश की सबसे लंबे समय तक रहने वाली प्रधानमंत्री बन गईं।
हसीना के कार्यकाल में ढाका-दिल्ली रिश्ते अपने सबसे अच्छे दौर में रहे। सुरक्षा, सीमा प्रबंधन, आतंकवाद विरोधी कार्रवाई और इंफ्रास्ट्रक्चर सहयोग में बड़ी प्रगति हुई। इसी करीबी रिश्ते के कारण 2024 में सत्ता परिवर्तन के बाद भारत में उन्हें शरण दी, जबकि नई बांग्लादेश सरकार लगातार उन्हें सौंपने की मांग कर रही थी।
किस बयान से हुआ भारी बवाल?
अपने चौथे कार्यकाल की शुरुआत के कुछ महीनों बाद ही हसीना को देशभर में आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ बड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। उन्होंने एक बयान में कहा कि अगर मुक्तियुद्धा के पोते-पोतियों को लाभ नहीं मिलना चाहिए तो क्या लाभ राजाकारों के पोते-पोतियों को दिया जाए?
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यह बयान भारी विवाद का कारण बना और आंदोलन उनके खिलाफ मोड़ ले लिया। सरकार की कड़ी कार्रवाई में 1 हजार से ज्यादा लोगों की मौत का दावा किया गया। आंदोलनों को दबाने की कोशिश नाकाम रही और विरोध सीधे उनके घर तक पहुंच गया। हसीना को बहन रेहाना के साथ भारत भागना पड़ा।
अदालत ने किस आधार पर सुनाया फैसला?
हसीना के निष्कासन के 15 महीने बाद ढाका की अदालत ने उन्हें मानवता विरोधी अपराधों में दोषी ठहराया। अदालत का कहना है:-
- हसीना ने प्रदर्शनकारियों पर हमले भड़काए
- हत्या के आदेश दिए
- नागरिकों की सुरक्षा नहीं की
- समन भेजने के बाद भी अदालत में पेश नहीं हुईं
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अदालत ने उनके न आने को गुनाह का सबूत बताया। हसीना ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह एक बदले की कार्रवाई है और ढाका की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल वास्तव में अंतरराष्ट्रीय या निष्पक्ष नहीं है।
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