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    वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को 90 फीसद तक किया जा सकता है कम, पढ़ें पूरी खबर

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Sat, 28 Dec 2019 10:05 AM (IST)

    Reducing Air Pollution पर्यावरण के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण इस तकनीक को स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी लॉसाने (ईपीएफएल) विकसित किया है। ...और पढ़ें

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    वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को 90 फीसद तक किया जा सकता है कम, पढ़ें पूरी खबर

    जेनेवा, प्रेट्र। Reducing Air Pollution: गाड़ियों से निकलने वाली कार्बन-डाइऑक्साइड वायु प्रदूषण की एक सबसे बड़ी वजह मानी जाती रही है। इसे कम करने की दिशा में वैज्ञानिक और शोधकर्ता लगातार काम कर रहे हैं। इसी क्रम में वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जो ट्रकों और बसों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को 90 फीसद तक कम कर सकती है। यह तकनीक कार्बनडाइऑक्साइड को तरल में बदल देती है और गाड़ी में ही स्टोर कर देती है। इसके बाद तरल कार्बन-डाइऑक्साइड सर्विस स्टेशन में भेजा जा सकता है, जहां इसे नवीनीकरण ऊर्जा का प्रयोग करते हुए फिर से ईंधन में बदला जा सकता है।

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    पर्यावरण के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण इस तकनीक को स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी लॉसाने (ईपीएफएल) विकसित किया है। इस संस्थान का कहना है कि कार्बन-डाइऑक्साइड को कैप्चर कर और उसे गैस से तरल में बदला जा सकता है। इस प्रक्रिया में इंजन में मौजूद ऊष्मा जैसी ऊर्जा को फिर से प्राप्त किया जा सकता है।

    ऐसे काम करती है तकनीक

    फ्रंटियर्स इन एनर्जी रिसर्च जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को विकसित करने के लिए उदाहरण के तौर पर डिलीवरी ट्रकों का इस्तेमाल किया। सबसे पहले निकासी पाइप में फ्लू गैसों यानी इंजन से निकलने वाली गैसें, को ठंडा किया जाता है और गैस से पानी को अलग किया जाता है। फिर टेंपरेचर चेंज एब्जॉर्ब टेक्नीक की मदद से कार्बन-डाइऑक्साइड को नाइट्रोजन और ऑक्सीजन जैसी गैसों से अलग किया जाता है। इस प्रक्रिया में मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवक्र्स (एमओएफ) एडजॉर्बेंट का प्रयोग किया जाता है, जिसे खासतौर पर कार्बन-डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए डिजाइन किया गया है।

    शोधकर्ताओं ने बताया कि एक बार जब फ्लू गैसों से कार्बन-डाइऑक्साइड पूरी तरह अलग हो जाता है, तो एमओएफ से शुद्ध कार्बन-डाइऑक्साइड को निकाला जा सकता है। तेज गति वाले टर्बो कंप्रेशर को ईपीएफएल में जर्ग शिफमैन की प्रयोगशाला में विकसित किया गया है। इसके लिए गाड़ी के इंजन की ऊष्मा की मदद ली गई, ताकि कार्बन-डाइऑक्साइड को कंप्रेस करके उसे तरल में बदला जा सके। इस तरल को एक टैंक में जमा किया जाता है और नवीनीकृत बिजली का प्रयोग करके पारंपरिक ईंधन में बदला जा सकता है।

    प्रभावी है तकनीक

    ईपीएफएल के फ्रांसिस मार्कल ने बताया, ‘ट्रक या गाड़ियों के ड्राइवर इस तरल को ईंधन भरवाने के दौरान सर्विस स्टेशन में जमा कर सकते हैं।’ इस पूरी प्रक्रिया में बहुत ज्यादा समय भी नहीं लगता और न ही ऊर्जा की ज्यादा खपत होती है।

    एक लीटर ईंधन से बनती है तीन किग्रा तरल कार्बन-डाइऑक्साइड

    शोधकर्ताओं की गणना से पता चलता है कि एक लीटर पारंपरिक ईंधन का प्रयोग करने वाला ट्रक तीन किलोग्राम तक तरल कार्बनडाइऑक्साइड का उत्पादन कर सकता है और इसमें किसी तरह की अतिरिक्त ऊर्जा नहीं लगती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस पूरी प्रक्रिया में केवल 10 फीसद उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइट को रिसाइकल नहीं किया जा सकता है।