गर्भवती भारतीय महिला व तीन अन्य पर घुसपैठ के आरोप में बांग्लादेश में अभियोग की तैयारी, कैसे पहुंचे थे सीमापार?
बांग्लादेश में एक गर्भवती भारतीय महिला और तीन अन्य पर अवैध रूप से प्रवेश करने का आरोप लगाया गया है, जिस पर 23 अक्टूबर को सुनवाई होगी। अधिकारियों का मानना है कि दोषी ठहराए जाने पर उनके भारत लौटने का रास्ता साफ हो सकता है। उन्हें कथित तौर पर भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने बांग्लादेशी नागरिक होने के संदेह में सीमा पार भेजा था। यह घटना कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस हालिया फैसले के बाद आई है, जिसमें छह लोगों को बांग्लादेश भेजने के केंद्र के फैसले को रद्द कर दिया गया था और उन्हें भारत वापस लाने का निर्देश दिया गया था।
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गर्भवती भारतीय महिला व तीन अन्य पर घुसपैठ के आरोप में बांग्लादेश में अभियोग की तैयारी (फोटो सोर्स- रॉयटर्स)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बांग्लादेश में अवैध रूप से प्रवेश करने के आरोप में एक गर्भवती भारतीय महिला और तीन अन्य पर वहां की एक अदालत में अभियोग चलाया जा सकता है। अधिकारियों का कहना है कि इस कदम से उनके स्वदेश लौटने का रास्ता साफ हो सकता है।
कुछ महीने पहले कथित तौर पर भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने उन्हें बांग्लादेशी नागरिक होने के संदेह में सीमा पार भेज दिया था। मुख्य लोक अभियोजक (उत्तर-पश्चिमी) चपई नवाबगंज एम. अब्दुल वदूद ने बताया, ''वरिष्ठ न्यायिक मजिस्ट्रेट अशरफुल हक ने सोनाली खातून और तीन अन्य के साथ-साथ दो शिशुओं के खिलाफ आरोप तय करने की सुनवाई के लिए 23 अक्टूबर की तारीख तय की है। वे पिछले चार महीनों से जेल में बंद हैं।''
वदूद ने कहा कि अगर वे सुनवाई के दौरान आरोपों में दोषी ठहराए जाते हैं, तो उनके स्वदेश लौटने का रास्ता साफ हो जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि उनके ''दोषी ठहराए जाने की संभावना'' है। भारत की सीमा से लगे जिले के अभियोजन पक्ष के वकील ने भारतीय मीडिया की उन रिपोर्टों का खंडन किया जिनमें कहा गया था कि अदालत ने कोलकाता स्थित बांग्लादेश के उप-उच्चायोग को उनके स्वदेश लौटने की व्यवस्था करने के लिए कहा है।
उन्होंने कहा, ''मैंने हाल ही में जेल अधिकारियों से भी बात की है, जिन्होंने बताया कि लगभग 25 साल की सोनाली अपनी गर्भावस्था के अंतिम चरण में है।'' यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब पिछले महीने कलकत्ता उच्च न्यायालय ने छह लोगों को ''अवैध प्रवासी'' करार देते हुए उन्हें बांग्लादेश वापस भेजने के केंद्र के फैसले को दरकिनार कर दिया था।
साथ ही, इसने केंद्र को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि उन्हें एक महीने के भीतर भारत वापस लाया जाए। न्यायालय ने आदेश पर अस्थायी रोक लगाने की केंद्र सरकार की अपील को भी खारिज कर दिया। न्यायालय का यह फैसला दिल्ली में छह लोगों को हिरासत में लिए जाने और उन्हें बांग्लादेश वापस भेजने के बारे में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं (हैबियस कार्पस याचिका) पर सुनवाई के बाद आया।
हैबियस कार्पस एक कानूनी रिट है जिसके द्वारा अदालत किसी भी ऐसे व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दे सकती है, जिसे गैरकानूनी या मनमानी ढंग से हिरासत में रखा गया हो। इस याचिका के तहत, न्यायालय हिरासत में लेने वाले अधिकारी को हिरासत में रखे गए व्यक्ति को अदालत में पेश करने का निर्देश देता है, ताकि हिरासत की वैधता की जांच की जा सके।
बहरहाल, याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र के सेक्टर 26 में दो दशकों से अधिक समय से दैनिक वेतन भोगी के रूप में काम कर रहे परिवारों को पुलिस ने 18 जून को बांग्लादेशी होने के संदेह में उठा लिया था और बाद में 27 जून को सीमा पार भेज दिया था। निर्वासित लोगों को कथित तौर पर बांग्लादेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।
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