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    बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में ना कट्टरपंथी, ना ही रसूखदार राजनीतिक चेहरे; क्या भारत के लिए शुभ संकेत?

    Updated: Fri, 09 Aug 2024 07:47 PM (IST)

    बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार ने अपनी 16 सदस्यीय परिषद के बीच विभागों का बंटवारा कर दिया है। परिषद में कट्टरपंथियों को कोई जगह नहीं मिली है। वहीं रसूखदार राजनीतिक चेहरे को भी शामिल नहीं किया गया है। जमात-ए-इस्लामी के हाथ भी कुछ नहीं लगा है। शेख हसीना सरकार के खिलाफ छात्र आंदोलन खड़ा करने वाले दो छात्र नेताओं को अहम जिम्मेदारी दी गई है।

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    बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस। (फाइल फोटो)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में गुरुवार देर रात प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में गठित अंतरिम सरकार ने भारत समेत सभी वैश्विक समुदाय को उन सभी मुद्दों पर शुभ संकेत दिया है जिसको लेकर चिंता जताई जा रही थी। 16 सदस्यीय इस सरकार में ना तो किसी कट्टरपंथी विचारधारा के पोषक व्यक्ति को जगह दी गई है और ना ही जमात-ए-इस्लामी या बीएनपी के किसी रसूखदार चेहरे को स्थान मिला है।

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    सरकार में दो अल्पसंख्यक भी

    सरकार में शामिल दर्जन भर व्यक्तियों के पास कानून, प्रशासन, पर्यावरण, बैंकिंग, नीति निर्धारण जैसे विषयों का व्यापक अनुभव है। यही नहीं इसमें तीन महिलाओं और दो अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भी प्रतिनिधित्व मिला है जबकि वर्ष 1971 की बांग्लादेश संग्राम में शामिल एक डिप्टी कमांडर (फारुक-ए-आजम) को भी शामिल किया गया है। इन सभी को मंत्री नहीं बल्कि सलाहकार बताया गया है। भारत इसे सकारात्मक मान रहा है।

    क्या है भारत सरकार की मंशा?

    अमेरिका समेत कुछ दूसरे देशों ने भी अंतरिम सरकार के साथ काम करने की इच्छा जताई है। भारत ने जिस तरह से बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के गठन पर तुरंत अपना सकारात्मक संदेश भेजा है वह प्रोफेसर यूनूस की टीम के साथ काम करने को तैयार है। पहले विदेश मंत्रालय की तरफ से बांग्लादेश की जनता के हितों को सर्वोपरि रखने संबंधी बयान देना और उसके बाद पीएम नरेन्द्र मोदी का यूनुस को बधाई संदेश भेजना भी भारत की मंशा को बताता है।

    अगले महीने मिल सकते हैं पीएम मोदी और यूनुस

    विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि भारतीय उच्चायुक्त प्रणय कुमार वर्मा ने प्रोफेसर यूनुस के शपथग्रहण समारोह में हिस्सा भी लिया। यही नहीं अगर सब कुछ सामान्य रहता है तो अगले महीने (सितंबर) में थाइलैंड में बिम्सटेक देशों के शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी की प्रोफेसर यूनुस की मुलाकात भी संभव है। भारत व बांग्लादेश दोनों ही इसके सदस्य हैं।

    कौन हैं फरीदा अख्तर?

    अभी तक के सभी शिखर सम्मेलनों में पूर्व पीएम शेख हसीना हिस्सा लेती रही हैं। अंतिरम सरकार में शामिल सैयदा रिजवान हसन बांग्लादेश की एक प्रमुख पर्यावरणविद व अधिवक्ता हैं। इन्हें पर्यावरण विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ माना जाता है। फरीदा अख्तर नई व जैविक कृषि क्षेत्र की विशेषज्ञा हैं। खेती कार्य में तकनीक के इस्तेमाल से यह लाखों गरीब परिवारों को मदद कर रही हैं। अदिलुर रहमान खान मानवाधिकार विशेषज्ञ हैं व अधिवक्ता हैं।

    इस्लामिक विद्धान एएफएम खालिद होसैन को भी जिम्मेदारी

    एएफएम खालिद होसैन को बांग्लादेशी देवबंदी इस्लामिक विद्धान हैं और समाज सुधार के बड़े समर्थक हैं। नुरजहां बेगम प्रोफेसर यूनुस के साथ ग्रामीण बैंक में काम कर चुकी हैं। शर्मीन मुर्शीद बांग्लादेश में समाज के नीचले तबके के लोगों के उत्थान के लिए काम करती हैं। फारुख-ए-आजम एकमात्र सलाहकार हैं जिन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था।

    छात्र नेता भी सरकार में शामिल

    शेख हसीना के खिलाफ जारी आंदोलन में शामिल दो छात्र नेताओं को भी इसमें शामिल किया गया है। जबकि पूर्व विदेश सचिव तौहीद हुसैन, प्रख्यात मनोवैज्ञानिक प्रो. बिधान रंजन राय पोदार, पूर्व राजनयिक सुप्रदीप चकमा, बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर सालेहुद्दीन अहमद जैसी शख्सियतें भी इसमें शामिल की गई हैं।

    कैसी है सरकार में शामिल लोगों की छवि

    जानकारों का कहना है कि इसमें कुछ प्रोफेशनल निश्चित तौर पर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के सदस्य हैं और कुछ के पूर्व पीएम खालिदा जिया के साथ करीबी पहचान है, लेकिन इनकी छवि भारत विरोधी या अल्पसंख्यक विरोधी या अतिवादियों का समर्थन करने वाला नहीं है। बांग्लादेश के जिन दो युवा छात्र नेताओं को बतौर सलाहकार शामिल किया गया है वह भी उदारवादी छात्र आंदोलन के हिमायती हैं।

    यूनुस ने गिनाई सरकार की प्राथमिकता

    अंतरिम सरकार के मुखिया प्रोफेसर यूनुस ने स्वयं शपथ-ग्रहण से पहले अपने संदेश में साफ तौर पर अपनी सरकार की प्राथमिकता गिनाई जिसमें सभी को लेकर चलने की बात कही। उन्होंने अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों को तुरंत समाप्त करने की अपील की और यहां तक कहा कि अगर अल्पसंख्यकों पर हमला होता है तो उनको सरकार चलाने का कोई हक नहीं है।

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