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    बॉक्सर, टीचर और फिर पादरी...पोप फ्रांसिस के ईसाई धर्मगुरु बनने की कहानी, पढ़ें उनसे जुड़े रोचक किस्से

    पोप फ्रांसिस ने 88 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। उनके निधन से पूरी दुनिया में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। उनका जीवन बेहद सादगी भरा रहा है। कभी बॉक्सर और टीचर रहे पोप फ्रांसिस 21 साल की उम्र में जेसुइट समुदाय से जुड़े और फिर पादरी बनने के बाद नाम बदल लिया। पोप फ्रांसिस के जीवन के कुछ किस्से काफी मशहूर हैं।

    By Digital Desk Edited By: Sakshi Pandey Updated: Mon, 21 Apr 2025 05:02 PM (IST)
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    पोप फ्रांसिस का 88 साल की उम्र में निधन। फोटो- जागरण

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कैथोलिक ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस अब इस दुनिया में नहीं रहे। 88 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली। पोप फ्रांसिस पिछले काफी समय से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। वो निमोनिया, एनीमिया और फेफड़ों की बीमारी से पीड़ित थे। 14 फरवरी को उन्हें जेमेली अस्पताल में भर्ती किया गया था।

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    लैटिन (दक्षिण) अमेरिका से ताल्लुक रखने वाले पोप फ्रांसिस 1300 साल में पहले गैर अमेरिकी थे, जिन्हें पोप के रूप में चुनाव गया था। उनका 88 साल का जीवन किसी मिसाल से कम नहीं है।

    पोप फ्रांसिस का असली नाम

    पोप फ्रांसिस का वास्तविक नाम जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो था। 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में जन्मे पोप फ्रांसिस के माता-पिता इटली से अप्रवासी के रूप में अर्जेंटीना आए और यहीं बस गए।

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    बॉक्सर और टीचर रहे

    पादरी बनने से पहले पोप फ्रांसिस ब्यूनस आयर्स के नाइट क्लब में बाउंसर थे। इसके अलावा उन्होंने एक केमिकल लैब में भी काम किया। साथ ही व अर्जेंटीना के कॉलेज में साहित्य और साइकोलॉजी के टीचर भी रह चुके हैं।

    21 साल की उम्र में जेसुइट समुदाय से जुड़े

    पोप फ्रांसिस 21 साल की उम्र में जेसुइट समुदाय में शामिल हुए थे। बाद में उन्हें ब्यूनस आयर्स में पादरी बनाया गया। 2001 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें कार्डिनल नियुक्त किया और 2015 में उन्हें 266वें पोप की उपाधि दी गई।

    पैलेस छोड़ गेस्ट हाउस में रहे

    पोप होने के नाते पोप फ्रांसिस को वेटिकन सिटी में मौजूद भव्य और आलीशान अपोस्टोलिक पैलेस दिया गया। हालांकि उन्होंने पैलेस को ठुकरा कर साधारण से सेंट मार्था गेस्ट हाउस को अपना आशियाना चुना।

    'रिंग ऑफ द फिशरमैन' बदली

    कैथोलिक परंपरा के अनुसार चुने गए नए पोप को 'रिंग ऑफ द फिशरमैन' पहनाई जाती है। सोने की यह अंगूठी शक्ति और अधिकार का प्रतीक है। हालांकि, पोप फ्रांसिस ने पारंपरिक सोने की बजाए चांदी की अंगूठी को तवज्जो दी।

    लोकल बस से करते थे सफर

    अर्जेंटीना में आर्कबिशप बनने के बावजूद पोप फ्रांसिस कभी महंगी कारों में नहीं बैठे। वो अक्सर पब्लिक बस और मेट्रो में सफर करते थे। पोप बनने के बाद भी उन्हें कई बार बस का सफर करते हुए देखा गया। इंडोनेशिया की यात्रा के दौरान भी वो चर्च की आम बस में बैठे थे।

    कैदियों के पैर धोए

    कैथोलिक परंपरा के अनुसार ईस्टर से पहले पोप गरीबों के पैर धोते हैं। 2024 में पोप फ्रांसिस ने रोम की जेल में महिलाओं के पैर धोए थे। यह पहली बार था जब इस परंपरा के तहत सिर्फ महिलाओं के ही पैर धोए गए थे।

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