'फिगर ऑफ रेसिस्टेंस', ब्रिटिश भारतीय जासूस नूर इनायत खान को सम्मान; फ्रांस ने जारी किया डाक टिकट
फ्रांस ने टीपू सुल्तान की वंशज नूर इनायत खान को सम्मानित करते हुए डाक टिकट जारी किया है। वह यह सम्मान पाने वाली पहली भारतीय मूल की महिला हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में नूर ने ब्रिटिश एजेंट के रूप में फ्रांसीसी प्रतिरोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नाजी जर्मनी के खिलाफ लड़ने के लिए उन्हें 'फिगर ऑफ रेसिस्टेंस' के रूप में जाना जाता है।

ब्रिटिश भारतीय जासूस नूर इनायत खान को सम्मान। (फोटो- सोशल मीडिया)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। टीपू सुल्तान की वंशज नूर इनायत खान के सम्मान में फ्रांस ने डाक टिकट जारी किया है। यह सम्मान पाने वाली वह एकमात्र भारतीय मूल की महिला हैं। इससे पहले ब्रिटेन ने 2014 में नूर को सम्मानित किया था।
उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंडर कवर ब्रिटिश एजेंट के रूप में फ्रांसीसी रेसिस्टेंस में अहम भूमिका निभाई थी। नाजी जर्मनी के खिलाफ लड़ने वाले ''फिगर आफ रेसिस्टेंस'' के सम्मान में फ्रांसीसी डाक सेवा ला पोस्टे ने डाक टिकट जारी किया है। इस पर नूर को ब्रिटिश महिला सहायक वायु सेना (डब्ल्यूएएएफ) की वर्दी में दिखाया गया है।
नूर के सम्मान में डाक टिकट जारी
फ्रांसीसी रेसिस्टेंस उन समूहों का बल था, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में नाजियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। नूर की जीवनी 'स्पाई प्रिंसेस: द लाइफ आफ नूर इनायत खान' की लेखिका श्राबनी बसु ने कहा कि खुशी है कि फ्रांस ने नूर के सम्मान में डाक टिकट जारी किया।
नूर ने फासीवाद के खिलाफ लड़ाई में अपनी जान दे दी। वह पेरिस में पली-बढ़ीं। उन्होंने कहा कि नूर के सम्मान में ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा डाक टिकट जारी किए गए हैं। अब समय है कि भारत भी डाक टिकट से उन्हें सम्मानित करे।
मॉस्को में हुआ था जन्म
1914 में मास्को में एक भारतीय सूफी संत पिता और अमेरिकी मां के घर जन्मी नूर-उन-निसा इनायत खान बचपन में ही लंदन चली गईं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस के पतन के बाद, परिवार इंग्लैंड भाग गया और नूर डब्ल्यूएएएफ में शामिल हो गईं। आठ फरवरी 1943 को उन्हें स्पेशल आपरेशंस एक्जीक्यूटिव में भर्ती किया गया। यह एक ब्रिटिश गुप्त सेवा था जिसे युद्ध के दौरान कब्जे वाले क्षेत्रों में जासूसी, तोड़फोड़ और टोह लेने के लिए बनाया गया था। वह जून 1943 में फ्रांस में घुसपैठ करने वाली पहली महिला रेडियो आपरेटर बनीं।
13 सितंबर 1944 को दे दी गई फांसी
नाजी बलों द्वारा उन्हें पकड़ लिया गया और दचाऊ यातना शिविर भेज दिया गया। यहां उन्हें 13 सितंबर 1944 को फांसी दे दी गई। वह 30 वर्ष की थी। उनकी अदम्य बहादुरी के लिए फ्रांसीसी रेजिस्टेंस पदक और सर्वोच्च नागरिक सम्मान क्राइक्स डे गुएरे से सम्मानित किया गया। 1949 में ब्रिटेन द्वारा मरणोपरांत जार्ज क्रास से भी दिया गया।

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