नेपाली सेना का गौरवशाली इतिहास, शिव का त्रिशूल और डमरू है पहचान; भारत के साथ क्या है अनूठी सैन्य परंपरा?
नेपाल में राजनीतिक संकट गहरा गया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद सेना ने स्थिति संभाली है। सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिगदेल जिनका भारत से गहरा नाता है शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने भारत में रक्षा प्रबंधन का कोर्स किया है और उन्हें राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा भारतीय सेना के जनरल के मानद पद से सम्मानित किया गया है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नेपाल में सियासी संकट अपने चरम पर है, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद सेना ने कमान अपने हाथों में ले ली है। अशांत नेपाल के शांति के राह पर लाने की जिम्मेदारी अब सेना से कंधों पर है। नेपाली सेना की कमान संभाल रहे जनरल अशोक राज सिगदेल का भारत से एक खास नाता है। और संकट के इस दौर में नेपाल को वापस पटरी पर लाने का पूरा दारोमदार अब इन्ही के कंधों पर है।
नेपाल अबतक के सबसे गंभीर राजनीतिक संकट से जूझ रहा है, ऐसे समय में सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिगदेल एक प्रमुख चेहरे के रूप में उभरे हैं। जनरल सिगदेल नई सरकार के गठन में अहम भूमिका निभा सकते हैं। सूत्रों की मानें तो Gen-Z के हिंसक प्रदर्शन के दौरान जनरल सिगदेल ने ही पीएम केपी शर्मा ओली को इस्तीफे की सलाह दी थी, जिससे जनहानि को रोका जा सके।
नेपाल आर्मी चीफ जनरल अशोक राज सिगदेल से भारत के संबंधों की बात करें तो उन्होंने भारत के सिकंदराबाद स्थित कॉलेज ऑफ डिफेंस मैनेजमेंट से डिफेंस मैनेजमेंट का कोर्स किया है। साल 2024 में जनरल अशोक राज सिगदेल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय सेना के जनरल के मानद पद से सम्मानित किया, जो भारत और नेपाल के बीच घनिष्ट सैन्य संबंधों का प्रतीक है।
7 दशकों से चली आ रही है परंपरा
भारत और नेपाल के बीच ऐतिहासिक संबंधों को साथ-साथ सैन्य संबंध भी बहुत गहरे हैं। इसका सबूत है, दोनों देश एक-दूसरे के सेना प्रमुखों को सेना में जनरल पद की मानद उपाधि से सम्मानित करते हैं। यह प्रथा एक-दूसरे के देश के सेना प्रमुखों को मानद उपाधि प्रदान करने की सात दशक पुरानी परंपरा का पालन करती है। कमांडर-इन-चीफ जनरल केएम करियप्पा 1950 में इस उपाधि से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय सेना प्रमुख थे।
पिछले साल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नेपाली सेना के प्रमुख जनरल अशोक राज सिगदेल भारतीय सेना के जनरल के मानद पद से सम्मानित किया था।
नेपाली सेना का इतिहास
1700 का दशक पूरी दुनिया में अनिश्चितताओं से भरा था। राज्यों के बीच प्रतिद्वंद्विता सिर्फ इसी धरती के हिस्से तक सीमित नहीं थी। ब्रिटेन, फ्रांस और पुर्तगाल जैसी विश्व सैन्य शक्तियां अलग-अलग हिस्सों में उपनिवेश बनाने में व्यस्त थीं। उनके हितों के टकराव के कारण विभिन्न देशों में युद्ध हुए। ब्रिटेन और फ्रांस दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर भी बढ़ रहे थे। इससे नेपाल पर भी खतरा मंडरा रहा था।
राजा पृथ्वी नारायण शाह ने नेतृत्व में हुआ नेपाली सेना का गठन
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा कर चुकी थी और पूर्वोत्तर की ओर बढ़ते हुए नेपाल के पास पहुंच रही थी। इस दौरान नेपाल कई रियासतों में बंटा हुआ था। इसी समय गोरखा नामक रियासत के राजा पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल के एकीकरण का निर्णय लिया। वे आधुनिक नेपाल के निर्माता थे। हालांकि गोरखा छोटा और आर्थिक रूप से कमजोर था, फिर भी राजा पृथ्वी नारायण शाह ने ऐसी कठिन परिस्थितियों में इतना चुनौतीपूर्ण कार्य करके दुनिया को चकित कर दिया। एकीकरण अभियान 1740 ई. में शुरू हुआ, जिस समय अंग्रेजो ने भारतीय प्रांतों पर कब्जा करना शुरू कर दिया था।
यह नेपाली सेना के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। चूंकि एक मजबूत सेना के बिना एकीकरण संभव नहीं था, इसलिए सशस्त्र बलों का प्रबंधन असाधारण होना जरूरी था। गोरखा में संगठित मानक सेना के अलावा, युद्ध सामग्री के निर्माण के लिए विदेशों से तकनीशियन और विशेषज्ञ भी लाए गए। गोरखाली सैनिकों द्वारा काठमांडू (तत्कालीन नेपाल) पर कब्जा करने के बाद, गोरखाली सशस्त्र बलों को नेपाली सेना के रूप में जाना जाने लगा।
गोरखा सैनिकों ने अपनी वीरता से दुनिया को किया चकित
उनकी वीरता, ईमानदारी और सादगी ने दुश्मन को भी इतना प्रभावित किया कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी सेना में नेपालियों की भर्ती शुरू कर दी। अंग्रेजों ने नेपाली सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, जिसे उस समय तक बोलचाल की भाषा में "गोरखा सेना" या "गोरखाली" सेना के रूप में जाना जाता था, इसलिए अंग्रेजों ने अपने नए सैनिकों को "गोरखा" कहना शुरू कर दिया। इस लिए 'गोरखा' विरासत सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण रूप से नेपाली सेना की है।
आज भी लोगों में भ्रांतियां हैं कि नेपाली सेना ब्रिटिश और भारतीय सेनाओं का एक अंग है। भारत और ब्रिटेन में मौजूद गोरखा राइफल्स उन विदेशी सैन्य संगठनों का हिस्सा हैं जहां नेपालियों की भर्ती की जाती है। नेपाली सेना, वास्तव में, संप्रभु और स्वतंत्र नेपाल की गौरवशाली राष्ट्रीय सेना है जिसका इतिहास साल 1744 से अटूट है। यह तथ्य कि नेपाल और नेपाली जनता कभी किसी औपनिवेशिक शक्ति के अधीन नहीं रही, यह नेपाली सेना की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। राजा पृथ्वी नारायण शाह नेपाली सेना के संस्थापक थे।
नेपाली सेना के झंडे पर त्रिशूल और ढमरू
नेपाली सेना के झंडे पर जो निशान ने वो भारतीय परंपराओं के जुड़ा हुआ है। भगवान शंकर का त्रिशूल और ढमरू नेपाली सेना के झंडे में सुशोभित होता है। चूंकि नेपाल हिंदू परंपराओं से जुड़ा हुआ है, इसलिए भारत के साथ सहज और स्वभाविक जुड़ा हुआ है।
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