चीन के बाद अब नेपाल ने भी बढ़ाया दोस्ती का हाथ, भारत को पड़ोसी देश ने क्या दिया ऑफर?
नेपाली सांसदों ने सरकार से भारत के साथ लिपुलेख दर्रे से जुड़े मुद्दे को कूटनीतिक रूप से सुलझाने का आग्रह किया है। भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार फिर से शुरू होने पर नेपाल ने आपत्ति जताई है क्योंकि वह इस क्षेत्र को अपना अभिन्न अंग मानता है। भारत ने नेपाल के दावों को खारिज करते हुए कहा कि ये दावे ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं हैं।
पीटीआई, काठमांडू। नेपाली सांसदों ने गुरुवार को सरकार से भारत के साथ लिपुलेख दर्रे से जुड़े मुद्दे को कूटनीतिक रूप से सुलझाने का आग्रह किया। इस दर्रे और दो अन्य व्यापारिक मार्गों के जरिए भारत और चीन मंगलवार को सीमा व्यापार फिर से शुरू करने पर सहमत हुए।
लेकिन, इस कदम पर आपत्ति जताते हुए नेपाल ने कहा कि यह क्षेत्र उसका अविभाज्य अंग है। भारत ने इस क्षेत्र पर काठमांडू के दावों को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया और कहा कि यह ''न तो सही है और न ही ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित है''।
प्रतिनिधि सभा में सत्तारूढ़ नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (यूनीफाइड मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के मुख्य सचेतक महेश कुमार बरतौला ने सरकार से क्षेत्रीय मुद्दे का तुरंत समाधान करने का आह्वान किया।
सदन में अपने विचार रखते हुए उन्होंने सरकार से इस मामले को सुलझाने के लिए तत्काल कूटनीतिक कदम उठाने का आग्रह किया। इसी प्रकार, सीपीएन (माओवादी सेंटर) के मुख्य सचेतक हितराज पांडे ने चीन और भारत के बीच हाल ही में हुए समझौते के बारे में सदन को जानकारी देने की मांग की।
'हमारी पार्टी का ध्यान हमारे दो मित्र पड़ोसी देशों पर'
हितराज पांडे ने कहा, ''इस कदम से हमारी भावनाएं आहत हुई हैं। हमारी पार्टी का ध्यान हमारे दो मित्र पड़ोसियों - चीन और भारत के बीच हुए द्विपक्षीय समझौते की ओर आकर्षित हुआ है, जिसमें हमारे देश नेपाल को सूचित किए बिना लिपुलेख दर्रे से व्यापार मार्ग फिर से खोलने का प्रविधान है।''
राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के सांसद शिव नेपाली ने कहा, ''चूंकि पड़ोसी देशों द्वारा लिपुलेख और कालापानी क्षेत्रों के उपयोग का मामला एक गंभीर मुद्दा है, इसलिए सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और हमारे क्षेत्र की रक्षा करनी चाहिए।''
लिपुलेख दर्रे के जरिए चल रहा भारत-चीन सीमा व्यापार
नेपाल ने 2020 में कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को अपने नए राजनीतिक नक्शे में शामिल कर एक बड़ा सीमा विवाद खड़ा कर दिया था, जिसे भारत ने पूरी तरह से खारिज कर दिया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बुधवार को कहा था कि लिपुलेख दर्रे के जरिए भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार 1954 से चल रहा है। हाल के वर्षों में यह व्यापार कोविड-19 महामारी और अन्य कारणों से बाधित हुआ था।
अब दोनों देशों ने इसे फिर से शुरू करने पर सहमति दी है। उन्होंने आगे कहा कि नेपाल के दावे न तो न्यायसंगत हैं और न ही ऐतिहासिक तथ्यों एवं प्रमाणों पर आधारित हैं। इस तरह के दावे केवल बनावटी और एकतरफा हैं, जो स्वीकार्य नहीं हैं।
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