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    आदिमानव की मौत 40 हजार साल पहले हो गई थी, लेकिन पृथ्वी पर उनके डीएनए नहीं मिले

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 02 Sep 2022 07:59 AM (IST)

    होमो हीडलबर्गेंसिस एक विलुप्त प्रजाति या पुरातन मानव की उप-प्रजाति है जो मध्य प्लेइस्टोसिन के दौरान मौजूद थी। इसे 1950 में उप-प्रजाति के रूप में शामिल किया गया था। आदिमानवों का यह विलुप्तीकरण हमें याद दिलाती है कि हमें अपने अस्तित्व को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए।

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    कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सहित तीन विज्ञानियों के अनुसंधान में सामने आया तथ्य

    कोपेनहेगन, प्रेट्र। आदिमानव की खोज वर्ष 1856 में हुई थी, लेकिन आज भी कई मामलों में रहस्य बरकरार है। हालांकि दुनियाभर में चल रहे अनुसंधानों के जरिये समय-समय पर नए तथ्य सामने आते रहते हैं। इस कड़ी में हाल ही में एक नया खोज सामने आया है। कोपेनहेगन विश्वविद्यालय को प्रोफेसर पीटर सी कीजरवर्ग, अर्थ सिस्टम साइंस के प्रोफेसर पी मार्क मास्लिन और आरहूस विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर ट्राइन केलबर्ग नीलसन ने बताया कि आदिमानव की मृत्यु 40 हजार साल पहले ही हो गई थी, लेकिन पृथ्वी पर उनके डीएनए नहीं मिले हैं। माना जा रहा है कि यह शोध आने वाले समय में आदि मानव के बारे में कई नए तथ्यों को उजागर करने में सहायक होगा।

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    आदिमानव को मानव सभ्यता का प्रतिबिंब माना जाता है। अभी तक इसी अवधारणा पर काम किया जाता रहा है कि हमारे सांस्कृतिक रुझान, सामाजिक मानदंड और वैज्ञानिक मानक कहीं न कहीं आदिमानवों के व्यवहार का ही क्रमानुगत विकास है। एक तरह से हम उन्हें ही अपना पूर्वज ही मानते रहे हैैं। ऐसे में कीजरवर्ग सहित तीन विज्ञानियों की यह खोज यह सवाल खड़ा करती है कि आदिमानव यदि विलुप्त हो गए? उनका नामो निशान (डीएनए न मिलना) ही मिट गया तो मानव सभ्यता का विकास कैसे हुआ? आदिमानव और मानव सभ्यता के बीच क्या रिश्ता रहा और यह रिश्ता कैसे बना?

    चार लाख साल पहले धरती पर आए थे आदिमानव

    अभी तक हुए अनुसंधानों के अनुसार आदिमानव चार लाख साल पहले विकसित हुए थे। होमो हीडलबर्गेंसिस

    (एक विलुप्त प्रजाति या पुरातन मानव की उप-प्रजाति है) उनके पूर्वज थे और वे भूमध्यसागर से लेकर साइबेरिया तक के क्षेत्र में फैल गए। वे अत्यधिक बुद्धिमान थे, जिनका दिमाग होमो सेपियन्स (बुद्धिमान प्रजाति, जिनका मानव सभ्यता से सबसे करीबी संबंध है) से औसतन बड़ा था।

    भोजन संग्रहण से लेकर जानवरों के खाल से कपड़े बनाए

    उन्होंने बड़े शिकार किए। उन्होंने पौधों, कवक और समुद्री भोजन को इक_ा किया। खाना पकाने के लिए आग को नियंत्रित किया। जानवरों की खाल से कपड़े बनाए, गोले से मोती बनाए और गुफा की दीवारों पर प्रतीकों को तराशने में सक्षम थे। उन्होंने सामाजिक संरचना भी तैयार किया। इसमें युवा, बूढ़े और कमजोरों की देखभाल की। सुरक्षा के लिए आश्रयों का निर्माण किया, कठोर सर्दियों और गर्म ग्रीष्मकाल में रहते थे और उन्होंने अपने मृतकों को दफनाया। लगभग 14 हजार साल पहले वह हमारे पूर्वजों से मिले और यूरोपीय महाद्वीप को साझा भी किया।

    विलुप्त होने के तीन संभावित कारण

    1. हिमयुग के दौरान जब पृथ्वी पर परिवर्तन का दौर चला तो जानवरों, पौधों सहित उनके खाद्य स्रोतों पर दबाव पड़ा। आदिमानव (निएंडरथल) उस बदलाव के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाए और धीरे-धीरे खत्म हो गए। जैसे डायनासोर एकाएक इस धरती से विलुप्त हो गए।

    2. आदिमानव की संख्या हजारों से अधिक नहीं थी। यह होमो सेपियन्स की तुलना में पांच से 15 व्यक्तियों के समूह में रहते थे। छोटी और पृथक आबादी होने की वजह से आनुवंशिक रूप से अस्थिर रहे।

    3. लगभग 60,000 साल पहले अफ्रीका में जिस मानव सभ्यता ने जन्म लिया, यह धीरे-धीरे उसमें आत्मसात हो गए और क्रमानुगत तरीके से उनके डीएनएन में भी बदलाव आ गया।

    डेनमार्क के संग्रहालय में मौजूद हैं अवशेष, 99.7 प्रतिशत समानता

    आदिमानव के विलुप्त होने के हजारों साल बाद भी धरती पर जो निशान छोड़े हैं वह डेनमार्क स्थित संग्रहालय में मौजूद है। संग्राहालय में मौजूद प्राचीन सबसे प्राचीन डीएनए से जब आदिमानव के जीनोम की मैपिंग की गई तो उनमें 99.7 प्रतिशत समानता पाई गई। इस आधार पर निष्कर्ष निकाला गया कि वे हमारे सबसे करीबी विलुप्त रिश्तेदार हैं।

    निष्कर्ष

    विज्ञानियों ने अपने शोध में यह निष्कर्ष दिया है कि आदिमानवों का विलुप्तीकरण वर्तमान मानव सभ्यता के लिए एक सीख है। हजारों वर्षों तक इस धरती पर राज करने के बाद एक प्रजाति विलुप्त हो गई, क्योंकि वह आने वाले खतरे को न तो भांप पाई और न ही उसके अनुरूप खुद को ढाल पाी। वर्तमान में मानव गतिविधि भी पृथ्वी के जलवायु को बदल रही है। ऐसे में मानव सभ्यता को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए। आदिमानवों का यह विलुप्तीकरण हमें याद दिलाती है कि हमें अपने अस्तित्व को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए।