रियल लाइफ 'मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे', जन्म देने के एक घंटे में ही छीनी बच्ची; कहा- तुम मां बनने के काबिल नहीं
फिल्म मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे जैसी एक वास्तविक घटना डेनमार्क में सामने आई है। हालांकि यह पीड़ित महिला ग्रीनलैंड मूल की है। डेनमार्क की नगरपालिका ने 18 साल की इवाना निकोलिन ब्रॉन्लुन्ड से उनकी बेटी अवियाजा-लूना को जन्म के एक घंटे बाद ही छीन लिया। इसका कारण एक मनोवैज्ञानिक टेस्ट में इवाना को मां बनने के काबिल नहीं बताना है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली/कोपेनहेगन। साल 2023 में एक बॉलीवुड फिल्म रिलीज हुई थी। फिल्म का नाम था- मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे (Mrs. chatterjee vs norway)। फिल्म में एक भारतीय महिला देबिका चटर्जी (रानी मुखर्जी) अपने परिवार के साथ नॉर्वे में रहती हैं, जहां उन पर बच्चों का ठीक से पालन-पोषण न करने का आरोप लगाकर नॉर्वे की चाइल्ड केयर संस्था देबिका के बेटा और बेटी को छीन लेती है।
देबिका के किरदार में रानी मुखर्जी नॉर्वे की सरकार से बच्चों को वापस पाने के लिए जो जद्दोजहद करती हैं, जिस तरह रोती-बिलखती, तड़पती और लड़ती नजर आती हैं, उसने फिल्म देखने वालों को झकझोर दिया था। फिल्मी किरदार देबिका चटर्जी चैसी ही वास्तविक घटना ग्रीनलैंड मूल की निवासी 18 साल की इवाना निकोलिन ब्रॉन्लुन्ड के साथ डेनमार्क में हुई है।
इवाना निकोलिन ब्रॉन्लुन्ड ने डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन के एक अस्पताल में बेटी को जन्म दिया। बेटी का नाम अवियाजा-लूना रखा। मां इवाना ने सिर्फ एक घंटे ही बेटी को गोद में उठाया, उसके बाद न बेटी की शक्ल देखने को मिली, न प्यार जताने और दुलारने को वक्त मिला। न फिर गोद में उठा पाईं, न लोरी सुना पाई और न ही डायपर बदल सकीं, क्योंकि घंटे भर बाद ही डेनमार्क की नगरपालिका ने इवाना की बेटी को फोस्टर केयर भेज दिया। इसके पीछे रीजन बताया कि इवाना में मां बनने की काबिलियत नहीं है।
डेनमार्क सरकार ने इवाना से क्यों छीनी उसकी बेटी?
डेनमार्क सरकार ने इवाना निकोलिन ब्रॉन्लुन्ड से उनकी बेटी छीनने का फैसला एक मनोवैज्ञानिक जांच पेरेंटिंग कॉम्पिटेंसी टेस्ट (एफकेयू) के आधार पर लिया था। इस टेस्ट में माता-पिता मानसिक स्थिरता, बौद्धिक क्षमता और सामाजिक कौशल का मूल्यांकन किया जाता है। इस टेस्ट की आलोचना इसलिए हो रही है, क्योंकि इसमें सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को नजरअंदाज किया जाता है
डेनमार्क में ग्रीनलैंड के परिवार इस तरह के परीक्षण का लंबे समय से विरोध करते रहे हैं। सांस्कृतिक असंवेदनशीलता और भेदभाव के आरोपों के बाद जब विवाद बढ़ा तो डेनमार्क सरकार ने जनवरी, 2025 में एलान किया कि पेरेंटिंग कॉम्पिटेंसी टेस्ट ग्रीनलैंडिक पृष्ठभूमि वाले लोगों पर लागू नहीं होंगे। नया कानून मई 2025 से लागू भी हो गया।
फिर कहां फंसा है इवाना का मामला?
विशेष सलाहकार इकाई (वीआईसो) को ऐसे मामलों की समीक्षा की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन इवाना का केस कानून बदलने और लागू होने के बीच की अवधि में फंसा रह गया। इवाना का टेस्ट अप्रैल से जून 2025 के बीच हुआ। यानी कि आंशिक रूप से पुराने नियम के तहत और आंशिक रूप से नए कानून के बाद।
जब यह मामला हाइलाइट हुआ तो नगरपालिका ने तर्क दिया है कि इवाना पर नया कानून लागू ही नहीं होता है, क्योंकि वह पर्याप्त ग्रीनलैंडिंक नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि इवाना के माता-पिता ग्रीनलैंड के ही हैं और इवाना खुद भी ग्रीनलैंड में ही जन्मी हैं।
नगरपालिका के इस तर्क पर विवाद खड़ा हो गया। आखिर किसी की सांस्कृतिक पहचान और मातृत्व क्षमता को किस आधार पर मापा जाए? ऐसे में नगरपालिका ने इवाना के अतीत का हवाला दिया। कहा कि उनके बचपन में पिता द्वारा यौन शोषण और माता-पिता के आपराधिक रिकॉर्ड भी बताए गए। इन सभी आघातों का असर उनकी परवरिश की क्षमता पर पड़ेगा।
इवाना को दी गई यह मोहलत
इवाना को उनकी बच्ची से 15 दिन में एक बार सिर्फ एक घंटे के लिए अधिकारियों की निगरानी में मिलने की मोहलत दी गई है। अपील भी जारी है। हालांकि, न्यायिक इकाई अब तक किसी ठोस निर्णय तक नहीं पहुंच सकी है।
इसी के साथ यह केस ग्रीनलैंड और डेनमार्क के बीच नया राजनीतिक विवाद बन चुका है, बिल्कुल वैसे, जैसे भारत की सागरिका भट्टाचार्य से 2011 में नॉर्वे में बच्चे छीन लिए थे। जिसके बाद भारत सरकार के इंटरप्ट करने के दो साल बाद बच्चे वापस मिले थे। फिल्म 'मिसेज चैटर्जी वर्सेस नॉर्वे' इसी वास्तविक घटना पर बनी है।
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