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    जानें कौन है अली अहमद जलाली, जिन्‍हें बनाया गया अफगानिस्‍तान के अंतरिम सरकार का प्रमुख

    By Arun Kumar SinghEdited By:
    Updated: Sun, 15 Aug 2021 07:14 PM (IST)

    जलाली का जन्म अफगानिस्तान में नहीं बल्कि अमेरिका में हुआ था। जलाली 1987 से अमेरिका के नागरिक थे और मैरीलैंड में रहते थे। बाद में साल 2003 में वे वापस आए। उस समय तालिबान का कहर कम हो रहा था और देश को एक मजबूत सरकार की जरूरत थी।

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    अशरफ गनी का इस्तीफा के बाद अली अहमद जलाली को सत्ता सौंप दी जाएगी।

    नई दिल्‍ली, ऑनलाइन डेस्‍क। अफगानिस्तान में राजनीति में बड़ा बदलाव होने जा रहे हैं। वहां कट्टरपंथी संगठन तालिबान की ताकत अभूतपूर्व तरीके से बढ़ गई है। अब अफगानिस्तान में एक अंतरिम सरकार का गठन होना है, जिसका प्रमुख अली अहमद जलाली को बनाया जा रहा है। अफगानिस्‍तान से ऐसी खबर आ रही है कि अशरफ गनी के इस्तीफा के बाद अली अहमद जलाली को सत्ता सौंप दी जाएगी। उधर, तालिबान के प्रवक्ता का कहना है कि वह 'अगले कुछ दिनों' में अफगानिस्तान में सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण चाहता है।

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    अली अहमद जलाली को मिलेगी सत्ता

    अली अहमद जलाली अफगानिस्तान के एक बड़े नेता हैं। वह कूटनीति के मामले में भी काफी सक्षम माने जाते हैं। अफगानिस्‍तान का प्रतिनिधित्व करने का जलाली के पास लंबा अनुभव रहा है। वह अफगानिस्‍तान के राजदूत से लेकर प्रोफेसर तक और एक कर्नल से लेकर सरकार में मंत्री तक रहे हैं। अली अहमद जलाली ने हर वो पद संभाला है जिस वजह से वे अफगानिस्तान की राजनीति को भी समझते हैं और तालिबान पर भी उनकी अच्छी पकड़ है।

    मौजूदा हालात पर की टिप्‍पणी

    अली अहमद जलाली ने कुछ दिनों पहले मौजूदा हालात पर टिप्पणी करते हुए ट्वीट किया था कि खराब नेतृत्व, स्थिरता की कमी और परिचालन और सामरिक समन्वय की अनुपस्थिति ने समर्पित अफगान सैनिकों के जीवन और प्रतिष्ठा पर भारी असर डाला है। एक सप्ताह के भीतर अफगानिस्तान की प्रांतीय राजधानियों के एक-तिहाई हिस्से का तेजी से पतन अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बलों के दृढ़ता के बहुप्रचारित दावों को खारिज दिया है क्योंकि वे विद्रोही लड़ाकों को आगे बढ़ाने के सामने तेजी से टूट गए थे। इससे एक पुरानी सैन्य कहावत याद आती है, “जिन्होंने अच्छा शासन किया, वे हथियार नहीं रखते थे। जो लोग अच्‍छी तरह से हथियारबंद थे, उन्होंने युद्ध की रेखाएं नहीं खींचीं। जिन्होंने युद्ध की रेखाएं अच्छी तरह खींची थीं, उन्होंने लड़ाई नहीं की। जो अच्छे से लड़े वे हारे नहीं, जो लोग अच्छी तरह से हार गए वे नष्ट नहीं हुए।

    अफगानिस्तान के लिए क्यों अहम जलाली?

    ज्ञात हो कि जलाली का जन्म अफगानिस्तान में नहीं बल्कि अमेरिका में हुआ था। जलाली 1987 से अमेरिका के नागरिक थे और मैरीलैंड में रहते थे। बाद में साल 2003 में वे अफगानिस्तान में वापस आए। उस समय तालिबान का कहर कम हो रहा था और देश को एक मजबूत सरकार की जरूरत थी। उस मुश्किल समय में जलाली को देश का आतंरिक मंत्री बनाया गया था। वह 2003 से सितंबर 2005 तक इस पद पर बने रहे थे।

    80 के दशक में जब अफगानिस्तान में सोवियत संघ संग लंबा युद्ध चला था, तब भी अली अहमद जलाली ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। उस समय वे अफगान सेना में कर्नल के पद पर तैनात थे। वहीं उस दौर में वे अफगान प्रतिरोध मुख्यालय के लिए शीर्ष सलाहकार की भूमिका भी निभाई थी। ऐसे में समय में हर बार अली अहमद जलाली ने अफगानिस्तान के लिए निर्णायक काम किया है।

    तालिबान ने दिया आश्‍वासन

    तालिबान के लड़ाके रविवार को काबुल पहुंच गए। उन्‍होंने कहा कि वे बलपूर्वक काबुल पर कब्जा नहीं करना चाहते हैं। अफगानिस्‍तान सरकार के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के लिए उन्‍होंने बातचीत की मांग की थी। अफगानिस्तान के आंतरिक मंत्रालय ने कहा कि काबुल पर हमला नहीं किया जाएगा और काबुल के लोग सुरक्षित रहेंगे क्योंकि वे एक नई अंतरिम सरकार को सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण की दिशा में काम कर रहे हैं।

    तालिबान का रहेगा ज्‍यादा हस्‍तक्षेप

    अब तालिबान की बढ़ती ताकत के बीच भी उनसे इसी भूमिका की फिर उम्मीद की जा रही है। ऐसे चर्चा हैं कि इस नई अंतरिम सरकार में तालिबान की जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप हो सकता है, लेकिन अभी के लिए अफगानिस्तान के पास कोई और विकल्प नहीं है और जलाली पर भरोसा करना उनकी मजबूरी भी है और उम्मीद भी।

    वैसे अली अहमद जलाली से लोगों की उम्मीद इसलिए भी बंध सकती है क्योंकि जब वे देश के आंतिरक मंत्री थे, तब उनकी तरफ से अफगान नेशनल पुलिस की एक फौज खड़ी कर दी गई थी। उस फौज में करीब 50 हजार जवानों को ट्रेनिंग दी गई थी। सीमा पुलिस के भी 12 हजार अतिरिक्त सैनिक तैयार किए गए थे। इसके अलावा जलाली की 2004 के राष्ट्रपति चुनाव करवाने में और 2005 में संसदीय चुनाव कराने में बड़ी भूमिका थी। ऐसे में अब जब उन्हें अंतरिम सरकार की बागडोर सौंपी जा रही है तो उनके सामने जबरदस्‍त चुनौती है। अब वे कैसे अफगानिस्तान को दशहत से मुक्त करते हैं, ये देखने वाली बात है।

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