India–Jordan Relations: सिर्फ कूटनीतिक नहीं जॉर्डन का भारत से है ये खास कनेक्शन, 78 साल के इतिहास में छिपी है असली कहानी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जॉर्डन यात्रा के दौरान भारत और जॉर्डन के संबंधों पर चर्चा हुई। जॉर्डन के शाही परिवार का भारत से खास जुड़ाव राजकुमारी सरवत ...और पढ़ें
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जॉर्डन का भारत से है ये खास कनेक्शनन। (जागरण ग्राफिक्स)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जॉर्डन यात्रा के दौरान भारत और शाही हाशमाइट किंगडम के बीच संबंधों पर फिर चर्चा शुरू हुई।
सोमवार को PM मोदी ने अम्मान में अल-हुसैनिया पैलेस में किंग अब्दुल्ला II बिन अल हुसैन के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत की। बातचीत में द्विपक्षीय संबंधों, क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद विरोधी सहयोग पर चर्चा हुई।
कूटनीति संबंधों से परे जॉर्डन के शाही परिवार का भारत से एक खास जुड़ाव है। ये खास कनेक्शन राजकुमारी सरवत अल हसन की वहज से है। राजकुमारी का जन्म 1947 में कलकत्ता में सरवत इकरामुल्ला के रूप में हुआ था।
सरवत इकरामुल्ला कौन हैं?
सरवत इकरामुल्ला का जन्म ब्रिटिश-शासित भारत में विभाजन से कुछ हफ्ते पहले कलकत्ता (अब कोलकाता) में प्रभावशाली सुहरावर्दी परिवार में हुआ था, जो एक प्रमुख बंगाली-मुस्लिम वंश था।
उनके पिता, मोहम्मद इकरामुल्ला भारतीय सिविल सेवा में कार्यरत थे। बाद में वह पाकिस्तान के पहले विदेश सचिव बने। उनकी मां, शैस्ता सुहरावर्दी इकरामुल्ला, पाकिस्तान की पहली महिला सांसदों में से एक थीं। इसके साथ ही मोरक्को में राजदूत भी थीं।
उन्होंने ब्रिटेन में पढ़ाई की और यूरोप और दक्षिण एशिया में अपने पिता की डिप्लोमैटिक पोस्टिंग के बीच पली-बढ़ीं। वह पहली बार लंदन में डिप्लोमैटिक सर्कल के जरिए जॉर्डन के हशेमाइट राजवंश के प्रिंस हसन बिन तलाल से मिलीं।
भारत में जन्मी और पाकिस्तान में शादी
28 अगस्त, 1968 को सरवत इकरामुल्ला ने पाकिस्तान के कराची में प्रिंस तलाल से शादी की। इस समारोह में पाकिस्तानी, जॉर्डन और पश्चिमी परंपराओं का मिला-जुला स्वरूप देखने को मिला। यह कपल बाद में अम्मान में बस गया। उन्होंने चार बच्चों - प्रिंसेस रहमा, सुमाया और बदिया, और प्रिंस राशिद को जन्म दिया।
जॉर्डन की क्राउन प्रिंसेस
प्रिंसेस सरवत ने 1968 से 1999 तक जॉर्डन की क्राउन प्रिंसेस के रूप में काम किया। अपने पूरे कार्यकाल के दौरान, उन्होंने शिक्षा, सामाजिक कल्याण और महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया।
उन्होंने 1981 में अम्मान बैकलॉरिएट स्कूल की सह-स्थापना की, जो जॉर्डन का पहला द्विभाषी इंटरनेशनल बैकलॉरिएट संस्थान था। उन्होंने सेंटर फॉर स्पेशल एजुकेशन (1974) और प्रिंसेस सरवत कम्युनिटी कॉलेज (1980) की भी स्थापना की, जो युवा महिलाओं और विकलांगों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण पर केंद्रित था।
वह ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट हासिल करने वाली जॉर्डन की पहली महिला हैं। उन्होंने जॉर्डन बैडमिंटन फेडरेशन की मानद अध्यक्ष के रूप में काम किया है। 1999 में, किंग हुसैन ने अपने बेटे, प्रिंस अब्दुल्ला को उत्तराधिकारी नामित किया, जिससे प्रिंस हसन का क्राउन प्रिंस के रूप में कार्यकाल समाप्त हो गया।
प्रिंसेस सरवत की अंतरराष्ट्रीय पहचान
प्रिंसेस सरवत के काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। उन्हें 1995 में वुमन ऑफ पीस अवॉर्ड, 1994 में ग्रैंड कॉर्डन ऑफ द रेनेसां, 2002 में पाकिस्तान का हिलाल-ए-इम्तियाज और यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ (2015) और यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू ब्रंसविक से मानद उपाधियां मिली हैं।

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