Move to Jagran APP

आपका बच्चा मोबाइल देख खुश होता होगा, लेकिन इसके पीछे कई मासूमों का दर्द छिपा है

आपका मोबाइल बनाने के लिए बाल मजदूरों पर जो जुल्म होता है, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उन्हें कुत्तों तक से कटवा दिया जाता है। इनमें छह साल के बच्चे भी शामिल होते हैं।

By Amit SinghEdited By: Published: Thu, 24 Jan 2019 03:15 PM (IST)Updated: Thu, 24 Jan 2019 03:19 PM (IST)
आपका बच्चा मोबाइल देख खुश होता होगा, लेकिन इसके पीछे कई मासूमों का दर्द छिपा है

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आपका मोबाइल आपके बच्चे के लिए खिलौना होगा। वह बड़ी खुशी से आपके मोबाइल से खेलता होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं इस मोबाइल के पीछे कई मासूमों के दर्द और आसुंओं की एक लंबी कहानी छिपी है। बाल मजदूरों की ये कहानी किसी को भी झकझोर सकती है। आपके मोबाइल के लिए इन बच्चों बुरी तरह मारा और प्रताड़ित किया जाता है। कई बार इन मासूमों को कुत्तों से भी कटवा दिया जाता है, ताकि वह मजदूरी करते रहें। वह भी मात्र दो पाउंड (186 रुपये) के लिए।

loksabha election banner

इन मासूमों पर ये अत्याचार किया जाता है आपके मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट आदि की लिथियम आयन बैट्री बनाने के लिए। इस बैट्री में कीमती कोबाल्ट का प्रयोग होता है, जो इसका महत्वपूर्ण घटक है। इस कोबाल्ट के लिए कांगो के कुछ इलाकों में मासूम बच्चों से बंधुआ मजदूरी कराई जाती है। खदान से कोबाल्ट निकालने के लिए बच्चों को 12-12 घंटे तक लगातार कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।

इस दौरान जरा सी लापरवाही करने या काम धीरे करने पर खनन माफिया उनकी बेरहमी से पिटाई करते हैं और कई बार कुत्तों से कटवा देते हैं। इन बाल श्रमिकों में छह साल तक के बच्चे शामिल आसानी से देखे जा सकते हैं। इन्हें बिना किसी सुरक्षा के अपने खुले हाथों, खदानों से खतरनाक कोबाल्ट निकालना पड़ता है। इस कड़ी मेहनत और जोर-जुल्म के बदले इन बंधुआ बाल श्रमिकों प्रतिदिन मात्र दो पाउंड (186 रुपये) ही मिलते हैं।

इन मासूमों को कोबाल्ट से भरी हुई भारी बोरियां अपने कंधों पर उठाकर गोदाम तक पहुंचानी पड़ती हैं। कई बार इन बोरियों का वजन इतना ज्यादा होता है कि मासूम इन्हें उठाते वक्त कराह उठते हैं। बावजूद आंखों में आंसु लिए हुए उन्हें ये जानलेवा मजदूरी करनी पड़ती है। कोबाल्ट की खुदाई का ये मामला केवल बाल श्रमिकों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये मानवाधिकारों का खतरनाक उल्लंघन भी है।

बिना किसी सुरक्षा के कोबाल्ट खदान में काम करना इन मासूमों के लिए जानलेवा भी साबित हो रहा है। दरअसल इन खदानों में हमेशा धूल भरे बादल उड़ते रहते हैं। इस वजह से अक्सर इन मासूमों के नाक से खून भी बहने लगता है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया की खबरों के अनुसार कांगों की इन कोबाल्ट खदानों में तकरीबन 40 हजार बच्चे काम करते हैं। इसी से आपके स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट आदि की बैट्री बनती है।

कई बार इन बच्चों को खदानों में काम करने के लिए नशे का आदि भी बना दिया जाता है। इसके बाद इन बच्चों को 85 फीट गहरी टनल तक खोदने के लिए उतार दिया जाता है। ये टनल इतनी गहरी होती हैं कि बच्चों के लिए उनमें सही से खड़ा होना भी संभव नहीं होता है। इन अंधेरी और कालिख वाली गहरी टनल में मासूमों को उतारने के बाद उनसे घंटों काम कराया जाता है। कई बार इन टनल के धंसने से मासूमों की मौत भी हो जाती है।

कांगो से मिलता है 60 फीसद कोबाल्ट
अंतरराष्ट्रीय मीडिया की खबरों के अनुसार कांगो की इन खदानों से दुनिया का 60 फीसद कोबाल्ट मिलता है। इन खदानों पर चाइनीज कंपनियों का अधिकार है, जो कोबाल्ट निकालने के लिए इन खदानों को अन्य लोगों को पट्टे पर देती हैं।

बाल श्रम रोकने को गंभीर नहीं हैं अन्य देश
बड़ी मोबाइल कंपनियां दावा करती हैं कि वह कांगो की उन खदानों से कोबाल्ट नहीं खरीदती हैं, जिसमें बाल श्रमिक काम करते हैं। जानकारों का मानना है कि कांगो जैसे देश में ये सुनिश्चित करना कि कोबाल्ट वहां से खरीदा जाए, जहां बच्चे काम नहीं करते संभव नहीं है। वर्ष 2016 में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जांच में पाया कि किसी भी देश में ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसमें मोबाइल निर्माता कंपनी को ये बताना आवश्यक हो कि उसने कोबाल्ट कहां से और कैसे खरीदा।

बच्चों ने बताई दर्द भरी कहानी
अंतरराष्ट्रीय मीडिया से बात करते हुए कांगो की खदान में काम करने वाली 18 साल की युवती ने बताया कि जन्म के बाद से उसके मुश्किल दिनों की शुरूआत हो गई थी। उसके पैदा होने के कुछ समय बाद पिता ने उसकी मां और पांच बच्चों को छोड़ दिया था। इसके बाद दुनिया के सबसे गरीब मध्य अफ्रीका के अन्य बच्चों की तरह इस युवती को भी सात साल की उम्र से कोबाल्ट खदानों में काम करना पड़ा, जहां लंबे समय तक उसका उत्पीड़न किया गया।

14 साल के एक किशोर ने बताया कि पिता के अलग होने के बाद बीमार अपने परिवार का पेट पालने और बीमार दादी की देखभाल के लिए उसे खदानों में काम शुरू करना पड़ा। पहले दिन ही उसे समझ में आ गया कि उसे काम करना होगा या मार खाना होगा। किशोर के अनुसार काम करते वक्त उन्हें सुरक्षा उपकरण, कपड़े, मास्क या चश्मे आदि नहीं दिए जाते हैं। वहां बहुत से गार्ड मौजूद रहते हैं, जो काम न करने पर या धीरे काम करने पर बच्चों को छड़ी से मारते रहते हैं। कई बार वह अपने कुत्तों से भी कटवा देते हैं। 12 साल के एक किशोर ने बताया कि काम के दौरान खाना तो दूर उन्हें पानी तक नहीं दिया जाता है। इससे शरीर बुरी तरह से टूट जाता है। इस पर भी उनकी मार बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल होता है। हर वक्त डर लगता है कि अगली छड़ी आप पर पड़ने वाली है।

यह भी पढ़ें-
Train 18 से भारत में शुरू होने जा रहा हाईस्पीड रेल यात्रा का दौर, जानें इसकी खासियतें
Train 18 के संचालन को मिली मंजूरी, जानें- कब से दिल्ली-वाराणसी के बीच शुरू होगा सफर
UP का चुनावी गणितः प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश ही क्यों, वजह गांधी बनाम मोदी तो नहीं
कांग्रेस की नैया पार लगाने को प्रियंका की एंट्री, जानें सक्रिय राजनीति में आने की 5 प्रमुख वजहें
Republic Day Parade: गणतंत्र दिवस से जुड़े 26 रोचक तथ्य, जानें- कहां हुई थी पहली परेड


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.