दुनिया में बढ़ती चीन की पकड़ को देखते हुए भारत को जल्द अपने सही स्थान पर पहुंचना होगा: ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व पीएम और ऑस्ट्रेलियाई पीएम के विशेष व्यापार दूत टोनी एबॉट ने द ऑस्ट्रेलियन अखबार में लिखे अपने एक लेख में भारत और ऑस्ट्रेलिया के रिश्ते पर बात की। साथ ही भारत का वर्णन एक उभरती हुई महाशक्ति के रूप में भी किया।

नई दिल्ली, एएनआइ। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व पीएम और ऑस्ट्रेलियाई पीएम के विशेष व्यापार दूत टोनी एबॉट ने द ऑस्ट्रेलियन अखबार में लिखे अपने एक लेख में भारत और ऑस्ट्रेलिया के रिश्ते पर बात की। साथ ही भारत का वर्णन एक उभरती हुई महाशक्ति के रूप में भी किया। उन्होंने भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार सौदे पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े व्यापार भागीदार चीन ने पश्चिम की सद्भावना को नुकसान पहुंचाया।
द ऑस्ट्रेलियन में लिखते हुए उन्होंने तर्क दिया कि भारत दुनिया की 'उभरती लोकतांत्रिक महाशक्ति' है और उसे विश्व मामलों में अपने सही स्थान का चयन करते हुए वहां पहुंचने की आवश्यकता है।
उन्होंने लिखा, 'दुनिया की दूसरी उभरती महाशक्ति (चीन) लगभग दिन-ब-दिन और अधिक जुझारू होती जा रही है, यह सभी के लिए जरूरी है कि भारत जितनी जल्दी हो सके राष्ट्रों के बीच अपना सही स्थान ले ले।'
वे आगे कहते हैं, 'व्यापार सौदे राजनीति के साथ-साथ अर्थशास्त्र के बारे में भी हैं, भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक त्वरित सौदा चीन से लोकतांत्रिक दुनिया के झुकाव का एक महत्वपूर्ण संकेत होगा।'
एबॉट ने की चीन की निंदा
एबॉट ने चीन की निंदा करते हुए कहा कि उसने ऑस्ट्रेलियाई कोयले, जौ, शराब और समुद्री भोजन के व्यापार का बहिष्कार करते हुए एक तरह से रणनीतिक हथियार का इस्तेमाल किया है। साथ ही चीन ताइवान को लेकर भी लड़ाई को बढ़ाता नजर आ रहा है।
एबॉट ने कहा कि जब ऑस्ट्रेलिया ने 2014 में G-20 अर्थव्यवस्था के साथ चीन के पहले व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया, तो उनका मानना था कि बढ़ती समृद्धि और अधिक आर्थिक स्वतंत्रता से चीन में राजनीतिक उदारीकरण होगा।
एबॉट ने कहा, 'चीन की चुनौतीपूर्ण शक्ति एक कम्युनिस्ट तानाशाही को वैश्विक व्यापार नेटवर्क में आमंत्रित करने के लिए स्वतंत्र दुनिया के फैसले का परिणाम है।'
उन्होंने कहा कि चीन ने हमारी तकनीक को चुराने और हमारे उद्योगों को कम करने के लिए पश्चिम की सद्भावना का फायदा उठाया है और इस प्रक्रिया में, पुराने सोवियत संघ की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली प्रतियोगी बन गया है।
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