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    आय असमानता से जूझ रही दुनिया की आधी आबादी, फिनलैंड की यूनिवर्सिटी ने किया बड़ा दावा

    Updated: Mon, 08 Dec 2025 10:00 PM (IST)

    एक नए वैश्विक अध्ययन के अनुसार, 1990 के बाद से वैश्विक आय में 94% की वृद्धि के बावजूद, दुनिया की आधी आबादी आय असमानता से जूझ रही है। शोधकर्ताओं ने चेत ...और पढ़ें

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    आय असमानता से जूझ रही दुनिया की आधी आबादी (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एक नए वैश्विक अध्ययन में पाया गया है कि 1990 के बाद से दुनियाभर में राष्ट्रीय आय में औसतन 94 प्रतिशत की वृद्धि के बावजूद दुनिया की आधी आबादी आय असमानता से जूझ रही है। शोधकर्ताओं ने आगाह किया है कि आने वाले वर्षों में यह खाई और चौड़ी हो सकती है।

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    अध्ययन में भारत के दक्षिणी राज्यों को उत्तरी हिस्सों की तुलना में कहीं अधिक खुशहाल और समावेशी विकास वाला बताया गया है।फिनलैंड की आल्टो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन 'नेचर सस्टेनेबिलिटी' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

    क्या है रिपोर्ट में?

    रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की एक तिहाई आबादी ऐसे इलाकों में रहती है जहां असमानता घटी है, जबकि एक चौथाई आबादी उन क्षेत्रों में बसती है जहां 1990 के बाद से आय और असमानता दोनों तेजी से बढ़े हैं। अध्ययन में 151 देशों की तीन दशक की असमानता संबंधी सूचनाओं का विश्लेषण किया गया।

    संयुक्त राष्ट्र की विफलता तय शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन न केवल आय असमानता के रुझानों को उजागर करता है बल्कि संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)-10, यानी देशों के भीतर असमानता कम करने से जुड़े संकेतकों के आकलन में भी मददगार है।'सतत विकास एजेंडा 2030', जिसे 2015 में सभी सदस्य देशों ने स्वीकार किया था, मानव विकास, आर्थिक प्रगति और ग्रह के स्वास्थ्य को संतुलित करने का रोडमैप है।

    अध्ययन के आधार पर बताया गया कि संयुक्त राष्ट्र के 'एसडीजी 2030' के सामूहिक तौर पर विफल होने की पूरी आशंका है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र इस लक्ष्य से न केवल कोसों दूर है, बल्कि असमानता का चलन भी बहुत तेजी से मजबूत होता जा रहा है।

    असमानता में गिरावट भी देखी गई शोध में पाया गया कि भले ही वैश्विक आबादी के लिए सकल राष्ट्रीय आय में बड़ा उछाल आया हो, लेकिन उपलब्ध राष्ट्रीय डाटासेट के आधार पर असमानता में 46-59 प्रतिशत तक की वृद्धि भी दर्ज की गई है, हालांकि 31-36 प्रतिशत क्षेत्रों में कमी भी देखी गई।मुख्य लेखक प्रोफेसर मट्टी कुम्मू ने कहा कि नवीनतम उपराष्ट्रीय डाटा से स्पष्ट हुआ है कि देशों के भीतर असमानता की तस्वीर राष्ट्रीय औसत से बिल्कुल अलग हो सकती है।

    दिया गया भारत का उदाहरण

    कई देशों में जहां राष्ट्रीय स्तर पर बदलाव मामूली दिखते हैं, वहीं स्थानीय स्तर पर असमानता में बड़ा अंतर सामने आता है।उत्तर भारत में असमानता अपेक्षाकृत स्थिरअध्ययन में भारत का उदाहरण देते हुए बताया गया कि उत्तर भारत में असमानता अपेक्षाकृत स्थिर रही, जबकि दक्षिणी राज्यों जो वामपंथ के गढ़ माने जाते हैं उनमें बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचे और आर्थिक निवेश के कारण अधिक समावेशी विकास देखने को मिला।

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