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    दुनियाभर के देश क्यों बढ़ा रहें हैं अपना गोल्ड रिजर्व? रिसर्च में हुआ खुलासा

    Updated: Sat, 25 Oct 2025 02:00 AM (IST)

    एक नए शोध में पता चला है कि दुनिया भर के देश आर्थिक अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनाव के कारण अपना गोल्ड रिजर्व बढ़ा रहे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंका और मुद्रास्फीति के दबाव के कारण देश सोने को सुरक्षित निवेश मान रहे हैं। अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए भी गोल्ड रिजर्व बढ़ाया जा रहा है। केंद्रीय बैंक भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

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    भू-राजनीतिक तनाव का गोल्ड रिजर्व पर असर

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका ने हाल में रूस की सरकारी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इससे भारत और चीन सहित दूसरे रूस से तेल खरीदने वाले देशों के लिए चुनौतियां पैदा हो गई हैं। वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें पांच प्रतिशत तक बढ़ गई हैं। वैश्विक भू राजनीतिक परिदृश्य पहले से अस्थिर है और ट्रंप की टैरिफ नीति ने वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में असुरक्षा का वातावरण पैदा कर दिया है।

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    रूस- यूक्रेन संघर्ष के परिणामस्वरूप रूस के विदेशी मुद्रा भंडार को फ्रीज करने और अन्य प्रतिबंधों ने यह साफ कर दिया है कि डालर को रणनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे में चीन, रूस और भारत सहित तमाम देश अपना गोल्ड रिजर्व बढ़ा रहे हैं। यही कारण है कि पिछले छह माह में सोने की कीमतें 65 प्रतिशत से अधिक बढ़ गई है। आइये जानते हैं कि दुनिया भर के केंद्रीय बैंक सोने की खरीदारी क्यों कर रहे हैं और इससे डालर के प्रभुत्व को कैसे खतरा पैदा हो गया है।

    जोखिम का डर नहीं

    दुनिया के तमाम देशों का अपना गोल्ड रिजर्व बढ़ाने का मुख्य कारण वैश्विक अस्थिरता है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में वैश्विक वृद्धि दर दो प्रतिशत से नीचे अटकी हुई है। इसके बावजूद, मुद्रास्फीति स्थिर है। इस स्थिति में, पारंपरिक सुरक्षित परिसंपत्तियों जैसे सावरेन बांड से मिलने वाला रिटर्न भरोसेमंद नहीं रह गया है। जब केंद्रीय बैंकों का डालर जैसी मुद्राओं में विश्वास कम हो जाता है, तो वे ठोस चीजों की तलाश में निकलते हैं। सोने के साथ कोई जोखिम नहीं जुड़ा है। सोना आप कभी भी बेच सकते हैं। यह कभी डिफाल्ट नहीं कर सकता है और न ही प्रतिबंध लगा कर इसे फ्रीज किया जा सकता है।

    सोना खरीदने के पीछे की रणनीति

    केंद्रीय बैंकों द्वारा गोल्ड रिजर्व में वृद्धि का कारण जोखिम के खिलाफ खुद को मजबूत करने के उपाय से बढ़ चुकी है। यह कदम काफी हद तक डी डालराइजेशन से प्रेरित है। डी डालराइजेशन का मतलब है कि डालर पर अपनी निर्भरता कम करने का प्रयास। चीन, भारत, रूस, तुर्किये और मध्य पूर्व के कई देश इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। गोल्ड रिजर्व बढ़ाने से प्रतिबंधों से सुरक्षा मिलती है, मौद्रिक विश्वसनीयता मजबूत होती है और वित्तीय स्थिरता बढ़ती है। इसके अलावा, यह तेजी से बहुध्रुवीय होती वित्तीय व्यवस्था में स्वतंत्र मौद्रिक नीति के लिए लचीलापन भी प्रदान करता है।

    खरीदारी में जुटे केंद्रीय बैंक

    कई देशों के केंद्रीय बैंक 2025 में सामूहिक रूप से लगभग 900 टन सोना खरीद सकते हैं। यह लगातार चौथा वर्ष होगा जब औसत से अधिक खरीदारी होगी है। व‌र्ल्ड गोल्ड काउंसिल के केंद्रीय बैंक स्वर्ण भंडार सर्वेक्षण के अनुसार, 76 प्रतिशत केंद्रीय बैंकों को उम्मीद है कि अगले पांच वर्षों में उनके पास सोने का अनुपात अधिक होगा। विशेषज्ञों के अनुसार इस खरीदारी ने, उच्च वैश्विक ब्याज दरों के बावजूद, सोने की कीमतों के लिए एक संरचनात्मक आधार तैयार कर दिया है। केंद्रीय बैंकों की खरीदारी सोने को एक भरोसेमंद दीर्घकालिक संपत्ति के रूप में स्थापित कर रही है, जिससे संस्थागत और खुदरा निवेशक दोनों ही ईटीएफ, खनन इक्विटी और सावरेन गोल्ड बांड के माध्यम से निवेश बढ़ा रहे हैं।

    कम हो रहा है डालर का प्रभुत्व

    आइएमएफ के कोफर डाटाबेस के अनुसार, अमेरिकी डालर अभी भी कुल वैश्विक भंडार का लगभग 58 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन यह हिस्सा लगातार कम होता जा रहा है। डालर के प्रभुत्व को आर्थिक कारकों के साथ-साथ राजनीतिक कारकों से भी चुनौती मिल रही है। रूस पर हाल ही में लगाए गए वित्तीय प्रतिबंधों और अन्य देशों के खिलाफ इसी तरह के उपायों की धमकी ने कई सरकारों को बड़ी मात्रा में अमेरिकी संपत्ति रखने को लेकर चिंतित कर दिया है। इसके विपरीत, सोना इस प्रणाली से बाहर है। इसे घरेलू स्तर पर बड़े पैमान पर रखा जा सकता है। वैश्विक स्तर पर कारोबार किया जा सकता है, और यह किसी एक देश की नीतियों से बंधा नहीं है।

    आक्रामक खरीदारों में शामिल है चीन

    चीन से बेहतर इस बदलाव को कोई और देश नहीं दर्शाता। पीपुल्स बैंक आफ चाइना हाल के वर्षों में सोने के सबसे आक्रामक खरीदारों में से एक रहा है, जिसने 2025 के मध्य तक लगातार 18 महीनों तक अपने भंडार में वृद्धि की है। अर्थशास्त्री चीन की स्वर्ण खरीद को संभावित अमेरिकी प्रतिबंधों से बचाव और ब्रिक्स+ समूह के भीतर गैर-डालर व्यापार को समर्थन देने की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा बताते हैं। चीन की इस आक्रामकता का दूरगामी असर देखने को मिलेगा। दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन सोना खरीद रहा है, ऐसे में कीमतें ऊंची बनी रह सकती हैं।