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    सुपर मॉम से ताकतवर नेता तक.... गणतंत्र दिवस समारोह की मुख्य अतिथि उर्सुला वॉन डेर लेयेन के संघर्ष की कहानी

    Updated: Fri, 19 Dec 2025 10:17 PM (IST)

    उर्सुला वॉन डेर लेयेन, एक सुपर मॉम से ताकतवर नेता तक का सफर तय करने वाली शख्सियत हैं। गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उनकी उपस्थिति, उन ...और पढ़ें

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    उर्सुला वॉन डेर लेयेन। (रॉयटर्स)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 26 जनवरी 2026 को गणतंत्र दिवस समारोह पर मुख्य अतिथि के तौर पर यूरोपियन यूनियन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन भारत आएंगी। 67 साल की उर्सुला का जीवन काफी संघर्ष के साथ आगे बढ़ा है। आतंकियों के खौफ से लेकर सत्ता के शिखर तक पहुंचने का उनका सफर काफी दिलचस्प रहा है।

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    बेल्जियम में जन्मीं जर्मन मूल की उर्सुला वॉन डेर लेयेन यूरोपियन की प्रेसिंडेंट के साथ सुपर मॉम भी हैं। उर्सुला 7 बच्चों की मां और 5 पोते-पोतियों की दादी हैं।

    जब उर्सुला को रातों-रात देश छोड़कर भागना पड़ा

    उर्सुला जब 19 साल की थीं तब उनके पिता अन्सर्ट अल्ब्रेख्ट जर्मनी के मंत्री थे। उस समय वहां उग्रवादी संगठन रेड आर्मी फैक्शन राजनीतिक परिवारों के बच्चों की अपहरण की साजिश रच रहा था। लगातार बिगड़ते हालात के चलते उर्सुला को रातों-रातों जर्मनी छोड़कर लंदन भागना पड़ा।

    बहन की मौत ने डॉक्टर बनने के लिए किया प्रेरित

    अपनी जान बचाने के लिए उर्सुला ने रोज लैडसन नाम अपनाया और एक साल तक गुमनामी में रहकर पढ़ाई की। जब वे 13 साल की थीं तो उनकी छोटी बहन की कैंसर से मौत हो गई। इस घटना ने उन्हें डॉक्टर बनने के लिए प्रेरित किया और बाद में उन्होंने हनोवर मेडिकल स्कूल से डॉक्टर ऑफ मेडिसिन की डिग्री हालिस की।

    वर्क-लाइफ बेलेंस की मिसाल पेश की

    सात बच्चों की मां होने के कारण उर्सुला को करियर की शुरुआत में कड़े विरोध को सामना करना पड़ा। उनके आलोचक उनसे यह कहकर उनकी आलोचना करते थे कि जब घर में नहीं रहना था तो 7 बच्चे क्यों पैदा किए? लेकिन तमाम विरोधों को बावजूद उर्सुला ने न केवल बच्चे संभाले बल्कि अपने करियर में भी ऊंचाईयां हासिल कीं। उनके इसी काबिलयत की वजह से सुपर मॉम भी कहा जाता है। साल 2003 से 2019 तक वो जर्मनी में मंत्री रहीं और वर्क-लाइफ बेलेंस की मिसाल पेश की।

    पैरेंटल पेड लीव की शुरू करने वाली नेता

    उर्सुला साल 2003 में पहली बार मंत्री बनीं और उन्होंने 2005 में जर्मनी में एक क्रांतिकारी नीति पेश की। उन्होंने पेड पैरेंटल लीव में 2 महीने सिर्फ पिता के लिए अनिवार्य किए। उनके इस कदम का उनकी पार्टी वे भी विरोध किया लेकिन वो अपने निर्णय पर अड़ी रहीं और उन्हें जनता का भरपूर समर्थन मिला।

    शरणार्थी के अपने घर में पनाह दी

    साल 2015 में जब यूरोप शरणार्थी संकट से जूझ रहा था, तब जर्मनी की रक्षा मंत्री रहते हुए उर्सुला ने एक सीरियाई शरणार्थी को अपने घर में पनाह दी। उन्होंने कहा कि इस शरणार्थी के साथ रहने से उनके जीवन के अनुभव और गहरे हुए। उर्सुला के इस फैसले से एक संवेदनशील नेता के तौर उनकी पहचान दुनिया में बनी।