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    Bangladesh Election: खालिदा जिया के संदेश के बावजूद भारत की पसंद शेख हसीना, चुनाव में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से परहेज

    By Jagran NewsEdited By: Babli Kumari
    Updated: Mon, 20 Nov 2023 07:37 PM (IST)

    बताया जाता है कि बांग्लादेश की पूर्व पीएम खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी की तरफ से भी भारत को संदेश भेजा गया है कि वह पुरानी भारत विरोधी नीतियों पर अमल नहीं करेगी लेकिन भारत ने इसे कोई खास तवज्जो नहीं दी।खालिदा चाहती हैं कि चुनाव केयर टेकर सरकार के अधीन हो और जमात पर लगा प्रतिबंध खत्म हो।अमेरिका की ओर से भी बांग्लादेश से ऐसी ही अपील की गई।

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    प्रधानमंत्री के साथ बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना (फाइल फोटो)

    जयप्रकाश रंजन, ढाका। यूं तो 7 जनवरी को होने जा रहे बांग्लादेश के चुनाव में भारत का कोई अंदरूनी हस्तक्षेप नहीं हो सकता है और भारत यही दोहराता भी रहा है लेकिन इच्छा है कि फिर से शेख हसीना ही राष्ट्रपति पद पर आसीन हों। दरअसल हसीना की ताजपोशी से ही यह सुनिश्चित होगा कि पिछले दस वर्षों से चल रहे भारत-बांग्लादेश सही दिशा में बढ़ें और दोनों देशों के रणनीतिक हित सधें।

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    बताया जाता है कि बांग्लादेश की पूर्व पीएम खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी की तरफ से भी भारत को संदेश भेजा गया है कि वह पुरानी भारत विरोधी नीतियों पर अमल नहीं करेगी लेकिन भारत ने इसे कोई खास तवज्जो नहीं दी। खालिदा चाहती हैं कि चुनाव केयर टेकर सरकार के अधीन हो और जमात पर लगा प्रतिबंध खत्म हो। अमेरिका की ओर से भी बांग्लादेश से ऐसी ही अपील की गई है। लेकिन भारत ने टू प्लस टू में भी अमेरिका को यह समझाने की कोशिश की है कि बांग्लादेश का चुनाव वहां की व्यवस्था के अनुसार होने दे। दरअसल बांग्लादेश पड़ोस को साधने में अहम भूमिका निभा सकता है।

    भारत विरोधी ताकतों पर लगा लगाम

    बांग्लादेश के वरिष्ठ पत्रकार मुजम्मल बाबू बताते हैं कि यह कोई गोपनीय बात नहीं है कि पूर्व में भारत के खिलाफ साजिश रचने वाले आतंकी संगठनों के बांग्लादेश में 35 कैंप सक्रिय थे। शेख हसीना की सरकार ने ना सिर्फ सभी को बंद कराया बल्कि कई आतंकवादियों को भारत को सौंपा। पूर्व पीएम खालिदा जिया के कार्यकाल में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने ढाका को भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र बना रखा था। इसका असर भारत और बांग्लादेश की सीमा संबंधों पर भी पड़ रहा था। वहीं पीएम हसीना के सहयोग की वजह से भारत बांग्लादेश से जुड़ी सीमा को लेकर ज्यादा परेशान नहीं हैं।

    चीन का बढ़ता दबाव

    शेख हसीना पर दांव लगाने का दूसरा बड़ा कारण है कि उन्होंने पूर्व की सरकारों के मुकाबले चीन और भारत के ज्यादा बेहतर तरीके से सामंजस्य स्थापित किया है। वर्ष 2016 में ढाका दौरे पर राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने बांग्लादेश में 25 अरब डॉलर निवेश करने का ऐलान किया था लेकिन हसीना सरकार ने इसे स्वीकार करने में कोई जल्दबाजी नहीं की। उन्हीं परिस्थितियों को स्वीकार किया है जिसे बांग्लादेश के लिए जरूरी माना गया। दूसरी तरफ भारत ने भी इस पड़ोसी देश की बुनियादी जरूरतों का ख्याल रखा।

    पाइपलाइन से डीजल आपूर्ति करने से लेकर, बांग्लादेश के रेल नेटवर्क को मदद देने और बिजली आपूर्ति को बढ़ाने का काम किया जो सीधे वहां की आम जनता को मदद पहुंचा रहा है। भारत के भावी भारी भरकम निवेश की तैयारियों को देखते हुए हसीना सरकार का रवैया ज्यादा सहयोगात्मक होगा।

    बीएनपी पर भरोसा नहीं

    उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि खालिदा जिया की बीएनपी ने भारत सरकार को सहयोग का संदेश भेजा था लेकिन उसको लेकर नई दिल्ली ने उत्साह नहीं दिखाया। भारत को संदेश भेजने के लिए ही बीएनपी की तरफ से इस्लामिक पार्टी जमीयत से दूरी बनाने की कोशिश की गई है। लेकिन बीएनपी के भीतर काफी उथल-पुथल मची है। खालिदा जिया का स्वास्थ्य बेहद खराब है। यह भी खबर है कि पार्टी के कुछ बड़े नेताओं और जिया के बेटे तारिक जिया के बीच संघर्ष चल रहा है।

    पूर्वोत्तर राज्यों तक बांग्लादेश होकर रास्ता

    भारत सरकार की दीर्घकालिक नीति है कि देश के पूर्वोत्तर राज्यों को बांग्लादेश के जरिए संपर्क का वैकल्पिक रास्ता मिले। हाल ही में हसीना सरकार ने चटटोग्राम और मंगला पोर्ट के जरिए कार्गो ढुलाई की पूरी अनुमति भारत को दी है।। जापान की मदद से दक्षिणी हिस्से में माताबाड़ी पोर्ट के निर्माण का काम शुरू हो चुका है। भारत स्वयं मंगला पोर्ट का विकास करना चाहता है। इन सभी कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिए एक स्थिर और भारत के साथ सहयोग करने वाली सरकार चाहिए जो मौजूदा परिवेश में अवामी देने में सक्षम दिखती है।