यूनुस सरकार की तानाशाही, आलोचना करने पर पूर्व सेनानी गिरफ्तार; पहले भी 3 लोगों को भेजा जा चुका है जेल
ग्लादेश की अंतरिम सरकार के खिलाफ आलोचनाओं पर लगातार शिकंजा कसा जा रहा है। 1971 के मुक्ति संग्राम सेनानी और सरकार के आलोचक अबू आलम शाहिद खान को गिरफ्तार कर लिया गया है। वह हाल के हफ्तों में गिरफ्तार होने वाले चौथे प्रमुख आलोचक हैं। यह कार्रवाई ऐसे समय में हो रही है जब भारत के नए आव्रजन कानून...

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को जबरन सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद से वहां की मौजूदा अंतरिम सरकार के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने का सिलसिला लगातार जारी है। बांग्लादेश पुलिस ने सोमवार को कहा कि उसने 1971 के मुक्ति संग्राम सेनानी, पूर्व नौकरशाह और मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के कट्टर आलोचक अबू आलम शाहिद खान को गिरफ्तार किया है।
बांग्लादेश सरकार में सचिव के पद से सेवानिवृत्त हो चुके अबू आलम शाहिद खान हाल के महीनों में इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर अंतरिम सरकार की आलोचना करते रहे थे। वह हाल के हफ्तों में गिरफ्तार होने वाले अंतरिम सरकार के चौथे प्रमुख आलोचक हैं।
यूनुस के एक अन्य कट्टर आलोचक और रंगपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रोफेसर नजमुल अहसन कलीमुल्लाह को भी सात अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने एक बयान में कहा, ''खान को ढाका मेट्रोपोलिटन पुलिस की जासूसी शाखा ने शाहबाग थाने में दर्ज एक मामले में गिरफ्तार किया है।''
हालांकि, पुलिस ने आरोपों का विवरण या गिरफ्तारी का समय और स्थान नहीं बताया। बयान में कहा गया है कि अवामी लीग के कार्यकर्ताओं द्वारा सड़कों पर अक्सर विरोध प्रदर्शन में शामिल पांच अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने कहा कि उन्हें तोड़फोड़ की कोशिश करने और कानून व्यवस्था का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
'अल्पसंख्यकों को हाशिए पर जाने से रोके सरकार'
भारत के नए आव्रजन कानून के लागू होने के बाद अल्पसंख्यकों के हाशिए पर जाने से रोकने के लिए बांग्लादेश ¨हदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद (बीएचबीसीयूसी) ने अंतरिम सरकार से प्रभावी उपायों की मांग की है। यह परिषद पड़ोसी देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक संगठन है। एक सितंबर को भारत ने 'आव्रजन और विदेशी अधिनियम, 2025' लागू किया।
यह नया कानून बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के उन अल्पसंख्यकों को छूट प्रदान करता है, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2024 तक भारत में शरण मांगी थी क्योंकि उन्हें धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था या उन्हें इसकी आशंका थी।
पिछले नागरिकता अधिनियम में इन समूहों के लिए 31 दिसंबर, 2014 की समय सीमा निर्धारित की गई थी, लेकिन नए कानून ने इसे 10 साल के लिए बढ़ा दिया है।
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(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट से)
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